Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

ऑनलाइन गेम की गिरफ्त में बचपन, मानसिक बीमार के साथ हिंसक हो रहे बच्चे!

मोबाइल गेम हिंसा और स्ट्रेस बच्चों को बना रहे शिकार!

हमें फॉलो करें ऑनलाइन गेम की गिरफ्त में बचपन, मानसिक बीमार के साथ हिंसक हो रहे बच्चे!
webdunia

विकास सिंह

, शनिवार, 26 जून 2021 (12:38 IST)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑनलाइन और डिजिटल गेम्स के खतरों को लेकर चिंता जताते हुए कहा है कि अधिकांश गेस्स के कांसेप्ट या तो वॉयलेंस कोप्रमोट करते हैं या मेंटल स्ट्रेस का कारण बनते हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि जितने भी ऑनलाइन या डिजिटल गेम्स मार्केट में हैं  उनमें से अधिकतर का कांसेप्ट भारतीय नहीं है। ऑनलाइन गेम्स का बच्चों पर पड़ने वाले खतरनाक प्रभाव के बारे में पीएम मोदी ने चिंता जताकर एक बार फिर इस मुद्दे को गर्मा दिया है और देश में नए सिरे से मोबाइल गेस्स के चलते बच्चों के हिंसक होने औऱ स्ट्रैस होने पर बहस छिड़ गई है। 
 
प्रधानमंत्री ने क्यों ऑनलाइन गेस्म को चिंता जताई है इसको भोपाल की रहने वाली पांच साल की रुचिका (परिवर्तिति नाम) के केस से अच्छी तरह समझ सकते है। 5 साल की रुचिका (परिवर्तिति नाम) चार साल की उम्र से ही मोबाइल पर गेम देख रही है और खेल रही थी। एक दिन अचानक से जब मां ने रुचिका को मोबाइल देखने से मना किया तो रुचिका मां को मारने लगी और कहने लगी मैं तुम्हे मार डालूंगी।

रुचिका का यह बोलना मां के लिए अचंभित करने वाला था। उन्होंने पति के ऑफिस आते ही बातें साझा की और अगले ही मनोचिकित्सक से संपर्क किया। डॉक्टर से बात करते हुए जब माता-पिता ने  रुचिका के व्यवहार के बारे में बताया जो डॉक्टर की बात सुनकर उनके होश उड़। डॉक्टर ने कहा कि रुचिका गेम एडिक्शन की शिकार हो रही है और जैस गेम में दिखाया जा रहा वह ऐसा ही कर रही है। पिछले एक पखवाड़े की थैरेपी के बाद रुचिका अक्रामक व्यवहार में थोड़ा सुधार आया है।
webdunia
यह केवल रुचिका का मामला नहीं है। कोरोना काल में ऐसा व्यवहार करने वाले मासूम बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। दरअसल कोरोना काल में जब ऑनलाइन क्लास का समय चल रहा है, तो कई बार बच्चे पढ़ाई करते-करते लैपटॉप पर प्राइवेट विंडो खोलकर गेम खेलने लगते हैं और गेम खेलते-खेलते यह बच्चे कुछ हिंसात्मक वीडियो देखने लगते हैं या एडल्ट गेम खेलने लगते हैं,जिसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
 
मनोचिकित्सक डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि ऑनलाइन गेम्स की लत के शिकार बच्चों के व्यवहार में अक्रामकता के साथ अवसाद, एडीएचडी, एंग्जायटी और नॉवेल्टी सीकिंग प्रवृत्ति होना देखा गया है। कोरोनाकाल में बच्चों के घर में कैद होने के चलते  मोबाइल पर उनकी निर्भरता बढ़ी है इसलिए गेम एडिक्शन के शिकार बच्चों की संख्या में बड़े पैमाने पर बढ़ोत्तरी है।
 
वह उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जब बच्चे किसी ऑनलाइन गेम में जीतते हैं, तो उस वक्त माता-पिता भी उसको बढ़ावा दे देते है जिससे बच्चा प्रोत्साहित होता और वह बार-बार वह गेम खेलना शुरू कर देते हैं। धीरे-धीरे यह लत लग जाती है और यह उतनी ही खतरनाक है, जितनी किसी व्यक्ति को नशे की लत लगना। इसके लिए पैरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत है।
webdunia
बच्चों पर ध्यान दें पैरेंट्स-मनोचिकित्सक डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि पैरेंट्स को बच्चों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। कोरोना काल में 3-4 साल की उम्र में भी बच्चों में एग्रेशन देखने को मिल रहा है ऐसे में यह पैरेंट्स की जिम्मेदारी है कि बच्चों का अधिक ध्यान रखे। बच्चों के सामने खुद ज्यादा मोबाइल न चलाएं, बच्चों को अपना समय जरूर दें, उनसे बाते करें,बच्चों के मन में क्या चल रहा है जानने की कोशिश करें,बच्चों को ऑनलाइन गेम की का ऑप्शन दें, बच्चों को ड्राइंग, डांस आदि करवाएं। अगर बच्चों को कुछ देर के लिए मोबाइल दे रहे हैं, तो अपने सामने ही गेम खेलने को कहें।
 
पारंपरिक खेलों पर ध्यान दें माता-पिता- ऑनलाइन गेम्स को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चिंता जताते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में कहते हैं कि खतरनाक ऑनलाइन गेम्स को लेकर आयोग लगातार अपनी चिंता जताते आया है और आयोग की ही संस्तुति पर पबजी जैसे खतरनाक गेम को प्रतिबंध किया गया था। 
 
प्रियंक कानूनगो कहते हैं कि ऑनलाइन गेम्स वैसे भी भारतीय संस्कृति के अंग नहीं है। हमें अपने पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देना चाहिए। माता-पिता को अपने बच्चों को समय देने के साथ उनके पारंपरिक खेलों को सिखाना चाहिए।  

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

मथुरा में महिला से चेन लूटकर भागे लुटेरे, विरोध करने पर राहगीर को मारी गोलियां