नई दिल्ली, एकाग्रचित होकर ध्यान लगाने से व्यक्ति का मन संयत होता है, आतंरिक शांति मिलती है। ध्यान (मेडिटेशन) की मस्तिष्क के तनावों को कम करने की क्षमता की पुष्टि विशेषज्ञों द्वारा किये गए एक अध्ययन से हुई है।
त्रिवेंद्रम स्थित श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी संस्थान के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि मेडिटेशन (ध्यान) कई मानसिक विकारों के इलाज में प्रभावी हो सकता है। इसके साथ ही ध्यान से याददाश्त संबधित कई बीमारियों पर भी कुछ हद तक काबू पाया जा सकता है।
अध्ययन के अनुसार, योग्य प्रशिक्षक की देखरेख में किया गया माइंडफुलनेस मेडिटेशन हलकी संज्ञानात्मक दुर्बलता वाले रोगियों और आरंभिक अल्जाइमर से पीड़ित लोगों के लिए लाभदायक है।
माइंडफुलनेस मेडिटेशन एक ऐसा मानसिक प्रशिक्षण है जो मस्तिष्क से नकारात्मकता दूर करता है और किसी भी परिस्थिति में मन और शरीर दोनों को शांत करना सिखाता है। यह ध्यान को माइंडफुलनेस के अभ्यास के साथ जोड़ता है, जिसे एक मानसिक स्थिति के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है।
वहीं, हल्की संज्ञानात्मक दुर्बलता यानि माइल्ड कॉग्निटिव इम्पेयरमेंट (एमसीआई) और अल्जाइमर का प्रारंभिक रूप एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें याददाश्त कमजोर हो जाती है, लेकिन व्यक्ति कार्यात्मक रूप से स्वतंत्र रहता है। ऐसे रोगियों को राहत दिलाने के लिए कई उपचार विकल्पों में से ध्यान भी एक संतुलित और प्रभावी तरीका हो सकता है।
शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन दो चरणों में किया। प्रत्येक चरण के लिए अलग-अलग उद्देश्य निर्धारित किये गए थे। पहले चरण को अनुभवी माइंडफुलनेस प्रैक्टिशनर्स और स्वस्थ नॉन-प्रैक्टिशनर्स के बीच माइंडफुलनेस और ब्रेन एक्टिवेशन एन्हांसमेंट के अध्ययन क्षेत्रों के तंत्रिका सह-संबंधों का पता लगाने के लिए इमेजिंग बायोमार्कर के माध्यम से तैयार किया गया था।
दूसरे चरण का उद्देश्य माइल्ड कॉग्निटिव इम्पेयरमेंट (एमसीआई) के साथ रोगियों के संज्ञानात्मक कार्य-निष्पादन में पहले और साथ ही बाद में माइंडफुलनेस मेडिटेशन प्रशिक्षण के दौरान होने वाले बदलाव की पुष्टि करना था।
शोधकर्ताओं की टीम ने साप्ताहिक रूप से 1 घंटे के लिए व्यवहारात्मक माइंडफुलनेस मेडिटेशन का पुनः प्रशिक्षण किया और प्रत्येक सत्र के आखिर में प्रशिक्षण के दौरान लाभार्थियों के प्रदर्शन पर अपनी प्रतिक्रिया दी। मरीजों को बाकी दिनों के दौरान अभ्यास करने के लिए घर पर हो सकने वाले कार्य प्रदान किये गए थे। इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने मरीजों के लिए 10 सप्ताह का पूर्ण मानसिक ध्यान आधारित 'माइंडफुलनेस यूनिफाइड कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी (एमयूसीबीटी)' प्रशिक्षण कार्यक्रम भी विकसित किया है।
अध्ययन के दौरान प्रारंभिक चरण में देखा गया कि समान आयु वर्ग वाले स्वस्थ लोग जिन्होंने अपनी नियमित जीवन शैली में ध्यान अभ्यास को किसी रूप में नहीं अपनाया, उनकी तुलना में माइंडफुलनेस मेडिटेशन प्रैक्टिशनर्स ने मस्तिष्क के उन क्षेत्रों से, जो भावनाओं, तनाव प्रतिक्रिया, पर्यावरणीय उत्तेजनाओं और व्यवहार के प्रति व्यक्ति की प्रतिक्रिया से संबंधित हैं, बेहतर कनेक्टिविटी स्थापित की है।
वहीं, दूसरे चरण के नतीजे यह बताते हैं कि, व्यवहारात्मक अन्य कार्यों के बीच संज्ञान, विशेष रूप से ध्यान, व्यवहार, तनाव प्रतिक्रिया तथा पर्यावरण के प्रति प्रतिक्रिया या अनुकूलन के साथ तंत्रिका संबंधी कार्यों को सक्रिय कर सकती है।
इस अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि माइंडफुलनेस मेडिटेशन का लगातार अभ्यास आंतरिक और बाहरी जागरूकता के साथ मध्यस्थता स्थापित कर सकता है और इस तरह से मनोवैज्ञानिक व संज्ञानात्मक स्वास्थ्य को पुष्ट करने में मददगार हो सकता है। इसके साथ ही माइंडफुलनेस मेडिटेशन में ध्यान, भावना, तनाव-प्रतिक्रिया और व्यवहार से संबंधित मस्तिष्क क्षेत्रों के मॉड्यूलेशन की क्षमता होती है जो हृदय, रक्त परिसंचरण और मटैबलिज़म पर भी प्रभाव डालती है।
इसके अलावा, एक कठोर माइंडफुलनेस मेडिटेशन - आधारित हस्तक्षेप कार्यक्रम में एमसीआई और प्रारंभिक अल्जाइमर रोग से पीड़ित मरीजों के बीच संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली के साथ-साथ जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने या इसको स्थिर करने की क्षमता है।
इस अध्ययन में श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी संस्थान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ रामशेखर एन मेनन, डॉ सी. केशवदास, डॉ बिजॉय थॉमस और डॉ एले अलेक्जेंडर और सरकारी मेडिकल कॉलेज त्रिवेंद्रम के डॉ एस कृष्णन शामिल हैं। (इंडिया साइंस वायर)