ड्रामा क्वीन यानी ड्रामेबाज़- क्या आपको कभी इस ख़िताब से नवाज़ा गया है? ख़ास तौर पर तब जब आपने किसी ऐसी बात की शिकायत की हो जो आपके जीवन में परेशानी की वजह हो। या आप सिर्फ़ इतना चाहते हैं कि कोई आपकी बात सुन ले।
बीबीसी की हिंदी और उर्दू में नई ऑडियो सीरीज़ ड्रामा क्वीन में हम उन शिकायतों को कहने-सुनने जा रहे हैं जो अक्सर हमारे दिलों में दबी रहती हैं और दुख पहुँचाती रहती हैं।
बीबीसी की पाँच एपिसोड वाली पॉडकास्ट सीरीज़ 'ड्रामा क्वीन' में आप ऐसे लोगों को सुनेंगे, जिन्होंने ड्रामेबाज़ समझे जाने के बावजूद घुट-घुट कर जीने से इनकार किया। दोस्तों और घरवालों की तरफ़ से सीमाओं में बांधने की तमाम कोशिशों के बावजूद उन्होंने अपने रास्ते ख़ुद बनाए, वो भी अपनी शर्तों पर।
शनिवार, 16 अप्रैल से शुरू होने वाली यह ऑडियो सीरीज़ भारत में जन्मीं बीबीसी पत्रकार समरा फ़ातिमा की पेशकश है। इस पॉडकास्ट की होस्ट भी वो ख़ुद ही हैं। इस सीरीज़ के बारे में ख़ास बात यह भी है कि इसमें आप भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के लोगों को एक-दूसरे के साथ अपने दिल का हाल बाँटते सुनेंगे।
समरा ने अपने मेहमानों के साथ हिंदी और उर्दू में उन सामाजिक मुद्दों पर बात की, जिनकी जड़ें दोनों देशों में बहुत गहरी हैं। इस पॉडकास्ट में शामिल मेहमान वो लोग हैं जिन्हें उनके हालात के ख़िलाफ़ शिकायत करने के लिए ड्रामेबाज़ समझा गया, लेकिन ये अपनी बात पर डटे रहने वाले लोग हैं, लोग उन्हें चाहे जो भी समझें।
शनिवार, 16 अप्रैल से शुरू होने वाली साप्ताहिक ऑडियो सीरीज़ बीबीसी हिंदी और बीबीसी उर्दू की वेबसाइटों के साथ-साथ दोनों भाषाओं में यू-ट्यूब चैनलों पर भी उपलब्ध होगी। इसके अलावा, यह पॉडकास्ट बीबीसी हिंदी और बीबीसी उर्दू के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी छोटी किश्तों में उपलब्ध होगा। आप ऑडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म 'स्पॉटिफाई' और 'एप्पल' पर भी हिंदी और उर्दू में ड्रामा क्वीन पॉडकास्ट सुन सकेंगे।
ड्रामा क्वीन 'गाना' और 'जियो-सावन' के डिजिटल ऑडियो प्लेटफॉर्म पर भी उपलब्ध होगा, भारत में यह सीरीज़ एफ़एम रेडियो मिष्टी (सिलीगुड़ी और गंगटोक में), टोमाटो एफ़एम (कोल्हापुर) के साथ-साथ डेलीहंट और जियो सिनेमा स्ट्रीमिंग ऐप पर उपलब्ध होगी। उर्दू में पॉडकास्ट डिजिटल ऑडियो सेवा 'पटारी' पर भी उपलब्ध होगा।
लंदन में रहने वाली समरा न केवल ड्रामा क्वीन की प्रोड्यूसर और होस्ट हैं, बल्कि इस पॉडकास्ट में शामिल गीत "नज़रें मिला के देखें" की गीतकार और गायिका भी हैं। इस गाने के संगीत का श्रेय लाहौर के संगीतकार साद सुल्तान और समरा को जाता है। इस गाने की रचना के लिए साद सुल्तान और समरा ने 'ज़ूम' पर काम करते हुए घंटों बिताए। हज़ारों मील दूर होने के बावजूद दोनों तकनीक की मदद से इस गाने को हक़ीक़त में तब्दील कर सके।
इस पॉडकास्ट के आधे घंटे के हर एपिसोड में समरा उन पुरुषों और महिलाओं से बात करती हैं जिन्होंने दिल ही दिल में घुटने के बजाए सामाजिक चुनौतियों का मुक़ाबला आँख में आँख डाल कर किया।
एपिसोड 1: माँ, क्या तुम सच में ठीक हो?
दुनिया भर में होने वाले शोध से पता चला है कि घर पर रहने वाली लगभग 50 फ़ीसदी मांएं अवसाद और तनाव से पीड़ित होती हैं, लेकिन किसी को नहीं बतातीं। ना तो उन पर पड़ने वाले काम के बोझ को समझा जाता है ना ही मानसिक दबाव को। ये बातें अक्सर मांओं को भावनात्मक रूप से थकाती चली जाती हैं। किसी भी मां को शिकायत करने का अधिकार नहीं है। मांएं अक्सर इस डर से भी अपने दिल की बात नहीं कह पातीं कि कहीं उन्हें बुरी मां ना समझ लिया जाए। हम सभी बड़े हो जाते हैं, लेकिन क्या हम कभी सोचते हैं कि हमारी मांओं पर क्या गुज़रती है?
एपिसोड 2: मुझे मर्द होने से नफ़रत है
मर्दानगी को अक्सर ताक़त, मज़बूती और रौब से जोड़ कर देखा जाता है। लेकिन मर्द ख़ुद ऐसी सामाजिक अपेक्षाओं का सामना कैसे करते हैं? इस कड़ी में, समरा अपने मेहमानों से यह पता लगाने की कोशिश करती हैं कि मर्दानगी के पारंपरिक अर्थ पुरुषों के जीवन में जो दबाव, ज़िम्मेदारी और अकेलापन लेकर आते हैं, हम उन पर ध्यान क्यों नहीं देते हैं?
एपिसोड 3: शादी के लिए 'अच्छी लड़की' की तलाश
क्या किसी भी क्षेत्र में सफल करियर वाली लड़की 'अच्छी गृहिणी' बन सकती है? क्या कारण है कि विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली कई सफल पेशेवर महिलाओं को आपत्तियों आदि का सामना करना पड़ता है? उन्हें इस सवालिया नज़र से देखा जाता है कि क्या वे घर बसा पाएंगी? इस तरह के सामाजिक दबावों के परिणामस्वरूप कई लड़कियां 'पारंपरिक क्षेत्रों' तक में ही करियर बनाने पर मजबूर हो जाती हैं और पारंपरिक तौर पर अच्छी लड़की बनने के चक्कर में अपने ख़्वाबों को क़ुर्बान कर देती हैं।
एपिसोड 4: तलाक़ बेटी की मौत से बेहतर है
भारत और पाकिस्तान में हर साल हज़ारों महिलाएं घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार के कारण आत्महत्या कर लेती हैं। दोनों देशों में तलाक़ को धब्बा समझा जाता है और ऐसे में कई महिलाएं तलाक़ के डर से आजीवन अत्याचार सहती चली जाती हैं। इस कड़ी में, समरा ने यह पता लगाने की कोशिश की है कि इससे उनका मानसिक स्वास्थ्य किस तरह प्रभावित होता है। साथ ही इस एपिसोड में यह भी बताया गया कि महिलाएं घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार से बचने के लिए क्या कर सकती हैं।
एपिसोड 5: ब्वायज़ इन पिंक पाजामा (गुलाबी रंग और लड़के)
ड्रामा क्वीन के इस एपिसोड में समरा इस सवाल का जवाब पता कर रही हैं कि लड़के और लड़कियों को अलग-अलग अंदाज़ में पालना किस हद तक ठीक है। उन्होंने कुछ ऐसी ही मांओं से बात की है जो लड़के और लड़कियों को अलग-अलग तरह से बड़ा करने में विश्वास नहीं रखतीं। वे न केवल अपने आस-पास के लोगों से इस बारे में बात कर रही हैं बल्कि स्कूलों में प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित कर रही हैं। ज़ाहिर है बच्चों की अलग परवरिश के चलते उन्हें अक्सर ड्रामा क्वीन के तौर पर भी देखा जाता है।