Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

प्रायद्वीपीय और तटीय क्षेत्रों में अधिक वर्षा का कारण बने चक्रवात

हमें फॉलो करें Cyclone
, मंगलवार, 12 जनवरी 2021 (14:07 IST)
नई दिल्ली, (इंडिया साइंस वायर) अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण भारत चक्रवातों से प्रभावित होता रहा है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा जारी एक ताजा रिपोर्ट से पता चला है कि बीते वर्ष भारत को पांच चक्रवातों का सामना करना पड़ा, जो जानमाल को क्षति पहुंचाने के साथ-साथ प्रायद्वीपीय और तटीय इलाकों में सामान्य से अधिक वर्षा का कारण बनकर उभरे हैं।

वर्ष 2020 के जलवायु विवरण पर केंद्रित आईएमडी द्वारा जारी इस रिपोर्ट में चक्रवातों को असमय और असमान वर्षा के लिए भी जिम्मेदार ठहराया गया है।

इन चक्रवातों में कुछ प्रचंड वेग, गति और प्रकृति के रहे। इन चक्रवातों ने आर्थिक एवं पर्यावरण के मोर्चे पर भारी क्षति पहुंचाने के साथ-साथ सामान्य जनजीवन को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। आईएमडी के अनुसार गत वर्ष चक्रवातों के कारण देश के मध्य और प्रायद्वीप भारत के क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा का औसत भी सामान्य से अधिक रहा। इस कारण कई इलाके बाढ़ की चपेट में आए, तो कुछ स्थान भूस्खलन के शिकार हुए। इसी कड़ी में तेलंगाना में बाढ़ और केरल के इडुक्की जिले में चट्टान धंसने की दर्दनाक तस्वीरें भी देखने को मिलीं।

पिछले वर्ष तीन चक्रवातों ने बंगाल की खाड़ी को झकझोर दिया, तो दूसरी ओर दो चक्रवातों ने अरब सागर के तट पर दस्तक दी। वर्ष 2020 के इन चक्रवातों में ‘अम्फन’ ने खूब कहर बरपाया। इसकी गति 200-270 किलोमीटर प्रति घंटा थी। इसने भारत के अलावा बांग्लादेश में अपना प्रकोप दिखाया। इसके नाम का अर्थ ही ‘सांप का फन’ है।

इसके अलावा ‘निवार’ चक्रवात की गति 100-120 किलोमीटर प्रति घंटे की मापी गयी। वहीं, चक्रवाती तूफान ‘निसर्ग’ की रफ्तार 120 किलोमीटर प्रति घंटे आंकी गई। चक्रवाती तूफान ‘निसर्ग’ और ‘बुरेवी’  बंगाल की खाड़ी में बने। बुरेवी चक्रवात की गति 45-65 किलोमीटर प्रति घंटे की दर्ज की गई। ये चक्रवात भले ही बहुत खतरनाक प्रवृत्ति के न हों, पंरतु उन्होंने तात्कालिक मौसमी परिदृश्य पर अवश्य अपना प्रभाव डाला।

भारत मौसम विज्ञान विभाग के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. आनंद शर्मा के अनुसार, “चक्रवात जिस क्षेत्र में आते हैं, वहां आमतौर पर वर्षा अधिक होती है और बेहद तेज गति से हवाएं चलती हैं। गत वर्ष देश में वार्षिक वर्षा 117.7 सेंटीमीटर के दीर्घावधि औसत (एलपीए) का 109% रही थी। दक्षिण-पश्चिमी मानसून (जून- सितंबर) के दौरान पूरे देश में सामान्य से अधिक बारिश हुई। इस दौरान मध्य भारत, दक्षिण प्रायद्वीप, और पूर्व तथा उत्तर-पूर्व भारत में क्रमशः दीर्घावधि औसत के 115%, 129% और 106% वर्षा हुई। जबकि, उत्तर पश्चिम भारत में दीर्घावधि औसत के 84% मौसमी वर्षा हुई। उत्तर-पूर्व मानसून ऋतु के दौरान (अक्तूबर-दिसंबर) वर्षा सामान्य (दीर्घावधि औसत के 101%) थी। इसे लौटते मानसून की वर्षा भी कहा जाता है। यह मूल रूप से तटीय क्षेत्रों में होती है।

तटीय आंध्र प्रदेश, रायलसीमा, तमिलनाडु और पुडुचेरी, दक्षिण कर्नाटक और केरल में उत्तर-पूर्व मानसून के दौरान मौसम वर्षा भी सामान्य (दीर्घावधि औसत 110%) थी। केरल को छोड़कर प्रायद्वीप के मूल क्षेत्र के सभी पांचों प्रखंडों में अत्यधिक या सामान्य वर्षा हुई।

डॉ. शर्मा बताते हैं, “मौसम विभाग ने पिछले वर्षों में पूर्वानुमान प्रबंधन को कई गुना बेहतर बना दिया है। इससे चक्रवातों की सटीक जानकारी और उन जानकारियों के आधार पर आपदा प्रबंधन की बेहतर तैयारियों के कारण जनहानि को बहुत हद तक कम करने में मदद मिली है। हमने चक्रवातों से मानवीय जीवन की रक्षा करने में काफी सफलता प्राप्त कर ली है। हमारा लक्ष्य क्षति को पूरी तरह से रोकना है, जिसके लिए हम निरंतर प्रयासरत हैं।” हालांकि उन्होंने भविष्य में संभावित चक्रवातों की स्थिति पर यही कहा कि इस विषय में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। बढ़ते वैश्विक ताप के कारण विशेषज्ञ प्रायः यही आशंका जताते हैं कि चक्रवातों का प्रकोप आने वाले समय में बढ़ेगा, और उनकी मार केवल भारत तक ही सीमित नहीं रहेगी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कोरोना से लड़ने के लिए आप तक ऐसे पहुंचेगी वैक्सीन