नई दिल्ली। नई दिल्ली। बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री श्रीदेवी का 54 साल की उम्र में कार्डियक अरेस्ट की वजह से निधन हो गया। बताया जाता है कि वे भांजे की शादी में शामिल होने के लिए पहुंची थीं। नेशनल हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉक्टर के.के. अग्रवाल का कहना है कि महिलाओं में कार्डिएक अरेस्ट को लेकर जागरुकता लाने की जरूरत है।
उन्होंने कार्डियक अरेस्ट को लेकर एक अध्ययन किया है जिसमें उन्होंने महिलाओं व पुरुषों में कार्डियक अरेस्ट के मामलों को लेकर तुलनात्मक अध्ययन किया है। इस बारे में उनका कहना है कि महिलाओं में पुरुषों की तुलना में कार्डिएक अरेस्ट से मौत के मामले कम होते हैं और हृदय रोग की वजह से महिलाओं में अचानक मृत्यु का जोखिम पुरुषों के मुकाबले आधा है। लेकिन महिलाओं में बिना किसी लक्षण के अचानक कार्डिएक अरेस्ट होने के मामले पुरुषों के मुकाबले ज्यादा होते हैं।
इसी कारण से हार्ट फेल्योर या अटैक के मामलों में महिलाओं की मृत्यु की दर पुरुषों के मुकाबले एक तिहाई है और महिलाओं की मौत के मामलों में एक कारण डर और चिंता भी होता है। मधुमेह, उच्च रक्तचाप और ऊंचा सीरम कोलेस्ट्रॉल जैसे चीजें घबराहट व चिंता बढ़ाता है। साथ ही, पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में दिल की बीमारी का पता लगाना ज्यादा मुश्किल होता है।
महिलाओं में एनजाइना (हृदय में रक्त के बहाव में कमी आने से होने वाला सीने का दर्द) होने की संभावना पुरुषों के मुकाबले कम होती है। लेकिन यदि उन्हें हार्ट अटैक या हार्ट फेल्योर होता है तो वह पुरुषों के मुकाबले ज्यादा घातक होता है। एंजियोग्राफी के समय महिलाओं में कोरोनरी रोग के बारे में पता चलने की संभावना पुरुषों के मुकाबले कम होती है और एंजियोग्राफी में महिलाओं के सीने में दर्द या फिर किसी ब्लॉकेज का पता नहीं चलता है।
कार्डियक अरेस्ट और हार्ट अटैक में यह फर्क है कि जब हार्ट मसल्स में ब्लड की सप्लाई किसी कारण से डिस्टर्ब हो जाती है या फिर प्रभावित हो जाती है तो हार्ट अटैक होता है। इस स्थिति में दिल शरीर के दूसरे हिस्सों को ब्लड सप्लाई करता रहता है। पर कार्डिएक अरेस्ट में दिल अचानक ही शरीर में ब्लड पंप करना बंद कर देता है। ऐसे में वह शख्स अचानक से बेहोश हो जाता है।
वह सांस लेना बंद कर देता है या फिर नॉर्मल तरीके से सांस ले नहीं पाता। चिकित्सा की शब्दावली में इसे इलेक्ट्रिक कंडक्टिंग सिस्टम का फेल होना कहा जाता है। हालांकि अगर 10 मिनट के अंदर मेडिकल सुविधा मिल जाए तो मरीज को बचाया जा सकता है। इसमें दिल और सांस रुक जाने के बावजूद दिमाग जिंदा होता है। जिस शख्स को पहले हार्ट अटैक पड़ चुका है, उसे कार्डिएक अरेस्ट होने की आशंका बहुत अधिक होती है।
सामान्य रूप से कार्डियक अरेस्ट अचानक होता है और बॉडी कोई पूर्व चेतावनी भी नहीं देती है। 30 साल की उम्र के बाद ऐसिडिटी या अस्थमा के दौरे इसका संकेत हैं। हार्ट अटैक या मायोकार्डियल इन्फ्रैक्शन तब होता है, जब शरीर की कोरोनरी आर्टरी (धमनी) में अचानक गतिरोध पैदा हो जाता है। इस आर्टरी से हमारे हृदय की पेशियों तक खून पहुंचता है, और जब वहां तक खून पहुंचना बंद हो जाता है, तो वे निष्क्रिय हो जाती हैं।
यानी हार्ट अटैक होने पर दिल के भीतर की कुछ मांसपेशियां काम करना बंद कर देती हैं। धमनियों में आए इस तरह आई ब्लॉकेज को दूर करने के लिए कई तरह के उपचार किए जाते हैं, जिनमें एंजियोप्लास्टी, स्टंटिंग और सर्जरी शामिल हैं और कोशिश होती है कि दिल तक खून पहुंचना नियमित हो जाए।
लेकिन कार्डियक अरेस्ट तब होता है, जब दिल के अंदर वेंट्रीकुलर फाइब्रिलेशन पैदा हो जाए। इस स्थिति में दिल के भीतर विभिन्न हिस्सों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान गड़बड़ हो जाता है, जिसकी वजह से दिल की धड़कन पर बुरा असर पड़ता है। स्थिति पूरी तरह बिगड़ने पर दिल की धड़कन रुक जाती है और व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
कार्डियक अरेस्ट के इलाज के लिए मरीज को कार्डियोपल्मोनरी रेसस्टिसेशन (सीपीआर) दिया जाता है, जिससे उसकी उसकी हृदयगति को नियमित किया जा सके। मरीज को 'डिफाइब्रिलेटर' से बिजली का झटका दिया जाता है, जिससे दिल की धड़कन को नियमित होने में मदद मिलती है। इस तरह हृदय की गति को सामान्य बनाने का प्रयास किया जाता है।