अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के बीच मुगल बादशाह बाबर के वंशज प्रिंस हबीबुद्दीन तुसी ने एक बार फिर विवादित जमीन पर अपना मालिकाना हक ठोंका है। इसके साथ ही प्रिंस हबीबुद्दीन तुसी ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि अयोध्या में अब विवादित जमीन पर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती है। इसके पीछे वे इस्लाम और हदीस की मान्यताओं का हवाला देते हैं।
प्रिंस हबीबुद्दीन तर्क देते हुए कहते हैं कि चूंकि इस समय वहां पर पूजा हो रही है और इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता है कि किसी भी धार्मिक स्थल को हटाकर वहां पर मस्जिद बनाई जाए। वे तर्क देते हुए कहते हैं कि कुरान और हदीस बताता है कि नमाज ऐसी जगह हो सकती है, जो जगह पाकजमा हो और सभी मुसलमान भाई वहां आपस में मिल सकें।
इस वक्त अयोध्या में जिस जगह को लेकर विवाद चल रहा है, वहां पर हिन्दू धर्म के भगवान राम की मूर्तियां रखी गई हैं और उनकी पूजा की जाती है। ऐसे में किसी भी धर्म की मूर्ति को हटाकर वहां पर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती है। वे मुसलमानों से अपील करते हैं कि वे भी अयोध्या में राम मंदिर बनने का स्वागत करें।
बाबरी मस्जिद मुगलों की प्राइवेट प्रॉपर्टी- बाबर के वंशज प्रिंस हबीबुउद्दीन तुसी का कहना है कि अयोध्या में विवादित जमीन पर उनका मालिकाना हक है और वो उनकी प्राइवेट प्रॉपर्टी है। विवादित जमीन पर मुस्लिम वक्फ बोर्ड के दावे को नकारते हुए प्रिंस हबीबुद्दीन अपना तर्क देते हुए कहते हैं कि मुगल साम्राज्य में स्थापित या बनाई गई अन्य मस्जिदों का वक्फनामा मिलता है लेकिन बाबरी मस्जिद का कोई वक्फनामा नहीं है।
वे कहते हैं कि बाबर ने जो मस्जिद बनाई तो वह उनके वंश की निजी प्रॉपर्टी है और इस पर मुसलमानों का कोई हक नहीं है। वे कहते हैं कि 1529 में बाबर ने अपने सैनिकों के लिए मस्जिद बनाई थी, न कि मुसलमानों के लिए। जब मस्जिद मुसलमानों के लिए बनाई ही नहीं गई थी तो उस पर वक्फ बोर्ड किस आधार पर दावा कर रहा है?
प्रिंस तुसी कहते हैं कि अयोध्या में आज भी जब केंद्र सरकार ने एक्ट बनाकर 67 एकड़ जमीन को अधिग्रहीत कर लिया है और उसके बाद भी आज भी 2.77 एकड़ जमीन उनकी प्राइवेट प्रॉपर्टी है। ऐसे में वक्फ बोर्ड बिना किसी कागजात के विवादित जमीन पर दावा कर रहा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट उनको भी पक्षकार बनाकर उनकी बात को भी सुने।
वे अयोध्या विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर भी सवाल उठाते हुए कहते हैं कि कोर्ट ने उनको बिना नोटिस दिए या उनकी बात बिना सुने ही फैसला दे दिया। इसलिए वे चाहते हैं कि अब जब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर अंतिम सुनवाई हो रही है, तब कोर्ट उनका पक्ष भी सुने।