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AIMPLB ने कहा, ज्ञानवापी पर अदालत ने जल्दबाजी में सुनाया फैसला

एआईएमपीएलबी ने की मुसलमानों से संयम बरतने की अपील

हमें फॉलो करें AIMPLB ने कहा, ज्ञानवापी पर अदालत ने जल्दबाजी में सुनाया फैसला

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

नई दिल्ली , शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2024 (23:56 IST)
  • प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिख सकते हैं मुस्लिम संगठन
  • मुस्लिम पक्ष को अपनी दलीलें रखने का मौका नहीं दिया 
  • वाराणसी की अदालत के आदेश को चुनौती
AIMPLB's statement regarding Gyanvapi case : ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने शुक्रवार को दावा किया कि वाराणसी जिला अदालत ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में स्थित तहखाने में 'पूजा' करने की अनुमति देने संबंधी फैसले पर जल्दबाजी में पहुंची है और कहा कि वह न्याय पाने के लिए इस मामले को उच्चतम न्यायालय तक ले जाएगा।
 
एआईएमपीएलबी के तत्वावधान में मुस्लिम संगठनों ने कहा कि वे अपनी चिंताओं से अवगत कराने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से समय मांग रहे हैं और वे देश के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को भी पत्र लिख सकते हैं। एआईएमपीएलबी के तत्वावधान में मुस्लिम संगठनों ने यह भी कहा कि देश में उत्पन्न होने वाले विवादों को रोकने के लिए पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को अक्षरश: लागू किया जाना चाहिए।
 
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में स्थित तहखाने में पूजा की अनुमति वाले वाराणसी की अदालत के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर मस्जिद कमेटी को तत्काल राहत देने से शुक्रवार को इनकार कर दिया। ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने वाराणसी की अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में अपील दायर की है।
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6 फरवरी को होगी अगली सुनवाई : न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने मस्जिद कमेटी की अपील पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। अगली सुनवाई छह फरवरी को होगी। हालांकि अदालत ने तहखाने में पूजा-अर्चना पर रोक लगाने का कोई आदेश पारित नहीं किया। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि मस्जिद में पूजा की अनुमति देने से न केवल मुसलमानों को बल्कि धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखने वाले अन्य धर्मों के लोगों को भी दुख हुआ है।
 
इस्लाम किसी की जमीन छीनने की इजाजत नहीं देता : उन्होंने कहा, यह धारणा गलत है कि मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को तोड़ा गया था। इस्लाम मस्जिद बनाने के लिए किसी की जमीन छीनने की इजाजत नहीं देता है। रहमानी ने कहा, अदालत ने इस पर जल्दबाजी में फैसला सुनाया और दूसरे (मुस्लिम) पक्ष को विस्तार से अपनी दलीलें रखने का मौका भी नहीं दिया गया। इससे न्यायपालिका में अल्पसंख्यकों के विश्वास को ठेस पहुंची है।
 
उन्होंने कहा, बाबरी मस्जिद के फैसले में यह स्वीकार किया गया था कि मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को नहीं गिराया गया था, बल्कि आस्था के आधार पर दूसरे पक्ष के पक्ष में फैसला किया गया था। अदालतों को तथ्यों के आधार पर फैसला देना चाहिए, न कि आस्था के आधार पर। उन्होंने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम एक बहुत ही महत्वपूर्ण कानून है क्योंकि हम इसके माध्यम से विवादों को रोक सकते हैं।
 
वाराणसी की अदालत ने 31 जनवरी को दिए अपने आदेश में हिंदू श्रद्धालुओं को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित तहखाना में पूजा-अर्चना करने की अनुमति दी थी। अदालत ने कहा था कि जिला प्रशासन अगले सात दिन में इस संबंध में आवश्यक व्यवस्था करे। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी (अरशद मदनी गुट), जमीयत प्रमुख मौलाना महमूद मदनी (महमूद मदनी गुट), एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास समेत अन्य मौजूद थे।
 
मुस्लिम पक्ष को अदालत के समक्ष मामला पेश करने का मौका नहीं दिया : मौलाना अरशद मदनी ने दावा किया कि मुस्लिम पक्ष को अदालत के समक्ष अपना मामला पेश करने का मौका नहीं दिया गया। उन्होंने कहा, हम ऐसा करना चाहते थे और मौका नहीं दिया जाना बहुत निराशाजनक है। उन्होंने कहा, हम इस मामले को उच्चतम अदालत तक ले जाएंगे।
 
उन्होंने कहा, यदि इतना बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय कहता है कि वह न्यायपालिका पर विश्वास खो रहा है, तो यह देश के लिए अच्छी बात नहीं है। मदनी ने कहा कि कुछ लोग कह रहे हैं कि ज्ञानवापी का मामला पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के बाद अस्तित्व में आया, लेकिन कानून का मूल सिद्धांत यह है कि पूजा स्थल जो 1947 में था, वही रहेगा।
 
मुसलमानों को गलत ढंग से पेश किया जा रहा : जमीयत के दूसरे धड़े का नेतृत्व करने वाले मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि यह देश का दुर्भाग्य है कि मुसलमानों को गलत ढंग से पेश किया जा रहा है। एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता इलियास ने कहा कि संगठन मुसलमानों से संयम बरतने की अपील करते हैं क्योंकि अगर उन्होंने धैर्य खो दिया तो यह न तो उनके लिए अच्छा होगा और न ही देश के लिए।
 
मुस्लिम संगठनों ने एक बयान में कहा, हमारा मानना है कि इस बार देश की गरिमा और न्यायिक प्रणाली तथा प्रशासनिक मामलों की निष्पक्षता से समझौता किया गया है। समय पर इसका संज्ञान लेना सभी संवैधानिक अधिकारियों की प्रमुख जिम्मेदारी है।
इसमें कहा गया है, इस महत्वपूर्ण समय में भारतीय मुसलमानों के प्रतिनिधियों के रूप में हमने राष्ट्रपति को इन चिंताओं से अवगत कराने के लिए समय देने का अनुरोध किया है। हमें उम्मीद है कि वह अपने स्तर पर इन मुद्दों के समाधान के लिए कदम उठा सकती हैं। इसके अतिरिक्त, हमारा इरादा मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को भारत के प्रधान न्यायाधीश तक सम्मानजनक और उचित तरीके से पहुंचाने का भी है।
 
मुस्लिम संगठनों ने ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में अचानक पूजा शुरू करने पर गहरा अफसोस और चिंता व्यक्त की। मुस्लिम संगठनों के नेताओं ने वाराणसी जिला न्यायाधीश के फैसले पर आश्चर्य और निराशा व्यक्त की। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour 

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