same sex marriage : उच्च न्यायालयों के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और पूर्व नौकारशाहों समेत 120 से अधिक प्रख्यात नागरिकों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर समलैंगिक विवाहों को कोई वैधानिक मंजूरी दिए जाने का विरोध करते हुए इसे अत्यंत आपत्तिजनक प्रयास करार दिया है। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज और संस्कृति समलैंगिक व्यवहार वाली संस्था को स्वीकार नहीं करती क्योंकि यह अतार्किक और आप्राकृतिक है।
हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा कि वे देश की आधारभूत सांस्कृतिक परंपराओं और धार्मिक सिद्धांतों के खिलाफ लगातार हमले से हैरान हैं, खासकर समलैंगिकता को वैधता प्रदान करने की दिशा में किए जा रहे अत्यधिक आपत्तिजनक प्रयासों से।
उन्होंने कहा कि इस मामले पर फिलहाल उच्चतम न्यायाल की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है और कुछ विशिष्ट छद्म उदारवादियों के लिए यह मामला विशिष्ट बन गया है, जो पहले से ही प्रगतिशील और मुक्त सोच का हौआ खड़ा करके भारतीय मूल्यों से अलग हो चुके हैं।
पत्र 27 अप्रैल को लिखा गया जिस पर हस्ताक्षर करने वालों में पूर्व नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) राजीव महर्षि, पूर्व गृह सचिव एल सी गोयल, पूर्व विदेश सचिव शशांक, पूर्व रॉ प्रमुख संजीव त्रिपाठी, न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) एस एन धींगरा और न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) लोक पाल सिंह शामिल हैं। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय को इस तरह के सांस्कृतिक रूप से विनाशकारी कदम के परिणाम से अवगत कराना जरूरी है।
क्या बोले शंकराचार्य : गोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने समलैंगिक विवाह को मानवता के लिए कलंक बताते हुए कहा कि अगर उच्चतम न्यायालय इसे कानूनी मान्यता देता भी है तो उसे फैसले को मानने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा फैसला आता है तो प्रकृति न्यायाधीशों को दंडित करेगी। उन्होंने कहा कि यह मामला धार्माचार्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है, यह अदालती फैसले का विषय नहीं है।