जम्मू। कोरोना की दो साल की पाबंदियों के उपरांत कश्मीर में इस बार बकरीद पर माहौल खुशनुमा ही कहा जा सकता है। यह इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिछले एक सप्ताह के भीतर करीब पौने दो लाख जानवर कुर्बानी के लिए कश्मीर पहुंच चुके हैं। हजारों अन्य अभी नेशनल हाईवे पर ट्रकों में इंतजार कर रहे हैं।
ऑल कश्मीर होलसेल मटन डीलर्स एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी मेहराजुद्दीन गनई ने भी इसकी पुष्टि की है जिनका कहना है कि 800 से अधिक ट्रक कुर्बानी के जानवर लेकर कश्मीर पहुंच चुके हैं। इतना जरूर था कि इस बार विभिन्न प्रकार के जानवर कश्मीर पहुंचे हैं जिनमें मारवाड़ी से लेकर काजूवाला और सीखर से लेकर नवलगढ़ी जैसी नस्लों की भेड़ें और बकरियां भी शामिल हैं।
कुर्बानी के जानवर बेचने वाले एक विक्रेता अब्दुल क्यूम के बकौल, मारवाड़ी भेड़ औसत कीमत की मानी जाती है और काजुवाला उससे थोड़ी महंगी। उसका कहना था कि कश्मीरी कुर्बानी के जानवरों के लिए अधिक मूल्य देने का अब तैयार हैं इसलिए ऐसी नस्लें कश्मीर में लाई जा रही हैं।
हालांकि कोरोना के पिछले दो सालों के दौरान बकरीद पर कोई खास बिक्री इसलिए नहीं हो पाई थी क्योंकि पाबंदियों के चलते जीवनयापन ही मुश्किल हो गया था। पर इस बार ऐसा नहीं है।
अब देशभर के विभिन्न इलाकों से करीब 20 से 22 नस्ल के जानवर कश्मीर पहुंच चुके हैं जिनकी बिक्री भी जोरों पर हैं। हालांकि 30 जून को अमरनाथ यात्रा शुरू होने के बाद इन जानवरों को बेचने वाले थोड़ी परेशानी में इसलिए थे क्योंकि श्रद्धालुओं की सुरक्षा के नाम पर सैंकड़ों ट्रकों को राजमार्ग पर रोक दिया गया था और फिर उप राज्यपाल के दखल दिए जाने के उपरांत ही उन्हें कश्मीर के लिए रवाना किया गया था। अभी भी सैंकड़ों ट्रक राजमार्ग के दोनों ओर अपने गंतव्य तक पहुंचने के इंतजार में हैं।
कश्मीर में दो सालों के बाद जिस बकरीद को धूमधाम से मनाने की तैयारियां चल रही हैं उसके प्रति खास बात यह है कि इस बार ऊंट की भी जबरदस्त मांग है। पिछली बार भी कई स्थानों पर ऊंट की कुर्बानी दी गई थी और लोगों को उसके मांस के लिए कई कई घंटें इंतजार करना पड़ा था।
जानकारी के लिए देशभर में जितने नान वेज की खपत एक साल में होती है उतना कश्मीरी एक माह में खा जाते हैं। इस बार सवा लाख की कीमत में एक ऊंट अभी तक बिक चुका है।