गुरु नानक जयंती : कैसा था नानक जी का बचपन, जानिए प्रेरक प्रसंग

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Guru nanak dev
 
आज सिख धर्म की संस्थापक गुरु नानक देव जी (guru nanak dev) की जयंती है। उनका जन्म सन् 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन तलवंडी गांव में हुआ। वे बचपन से ही अध्यात्म एवं भक्ति की तरफ आकर्षित थे।

आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़े 5 प्रेरक प्रसंग- 
 
1. गुरु नानक जी को बचपन में चरवाहे का काम दिया गया था और पशुओं को चराते समय वे कई घंटों ध्यान में रहते थे। 
 
एक दिन उनके मवेशियों ने पड़ोसियों की फसल को बर्बाद कर दिया तो उनको उनके पिता ने उनको खूब डांटा। जब गांव का मुखिया राय बुल्लर वो फसल देखने गया तो फसल एकदम सही-सलामत थी। यही से उनके चमत्कार शुरू हो गए और इसके बाद वे संत बन गए।
 
 
2. नानक जी के महानता के दर्शन बचपन से ही दिखने लगे थे, क्योंकि उन्होंने बचपन से ही रूढ़िवादिता के विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत कर दी थी, जब उन्हें ग्यारह वर्ष की उम्र में जनेऊ धारण करवाने की रीत का पालन किया जा रहा था। 
 
जब पंडित जी बालक नानक देव जी के गले में जनेऊ धारण करवाने लगे तब उन्होंने उनका हाथ रोका और कहने लगे- 'पंडित जी, जनेऊ पहनने से हम लोगों का दूसरा जन्म होता है, जिसको आप आध्यात्मिक जन्म कहते हैं तो जनेऊ भी किसी और किस्म का होना चाहिए, जो आत्मा को बांध सके। आप जो जनेऊ मुझे दे रहे हो वह तो कपास के धागे का है जो कि मैला हो जाएगा, टूट जाएगा, मरते समय शरीर के साथ चिता में जल जाएगा। फिर यह जनेऊ आत्मिक जन्म के लिए कैसे हुआ? और उन्होंने जनेऊ धारण नहीं किया।' 
 
 
3. गुरु नानक देव जी के जीवन से जुड़े एक प्रसंग के अनुसार पुराने समय में एक राजा था, जो अपनी प्रजा को बहुत कष्ट देता था। वह राजा बहुत ही क्रूर था तथा दूसरों का धन लूट लेता था। 
 
एक दिन गुरु नानक देव उस क्रूर राजा के राज्य जा पहुंचे। जब इस बात का पता राजा को चला तो वे गुरु नानक से मिलने पहुंचा। शिष्यों ने गुरु नानक को राजा के बारे में सबकुछ बता दिया था। इसीलिए जब राजा उनके पास आया तो उन्होंने राजा से कहा कि, हे राजन् मेरी मदद करें, मेरा एक पत्थर अपने पास गिरवी रख लो। ये मुझे बहुत प्रिय है। इसका विशेष ध्यान रखना।
 
 
राजा ने कहा- ठीक है, मैं इसे रख लेता हूं, लेकिन आप इसे वापस कब ले जाएंगे? नानक जी ने जवाब दिया कि जब हमारी मृत्यु हो जाएगी और हम मृत्यु के बाद मिलेंगे तब यह पत्थर आप मुझे वापस कर देना। नानक जी बात सुनकर राजा हैरान रह गया, उसने कहा- यह कैसे संभव है? मृत्यु के बाद कोई भी अपने साथ कुछ कैसे ले जा सकता है ?
 
तब गुरु नानक देव ने कहा- जब आप यह बात जानते हैं तो प्रजा का धन लूटकर अपना खजाना क्यों भर रहे हैं? अब राजा को गुरु नानक की बात समझमें आ गई। उसने नानक जी से क्षमा मांगी और संकल्प लिया कि अब से वह अपनी प्रजा पर कभी भी अत्याचार नहीं करेगा। इसके बाद राजा ने अपने जमा खजाने का धन उपयोग करके प्रजा की देखभाल में करना शुरू कर दिया। 
 
4. गुरु नानक देव एक बार एक गांव गए, वहां के लोग नास्तिक विचारधारा के थे। वे भगवान, उपदेश और पूजा-पाठ में बिल्कुल भी विश्वास नहीं रखते थे। वे साधुओं को ढोंगी की संज्ञा देते। उन्होंने नानक के प्रति कटु वचन कहे और उनका तिरस्कार भी किया, तब भी नानक देव शांत ही रहे। 
 
दूसरे दिन जब वे वहां से रवाना होने लगे तो लोग उनके पास आए और उन्होंने कहा, 'जाने से पहले आशीर्वाद तो देते जाएं।' नानक देव मुस्करा दिए और बोले, 'आबाद रहो।' वे जब पास के दूसरे गांव पहुंचे, तो वहां के लोगों ने उनका उचित सत्कार करके, रहने-खाने का भी उचित प्रबंध किया। 
 
नानक जी ने उनके समक्ष प्रवचन किया। प्रवचन समाप्ति के उपरांत श्रद्धालु लोगों ने उनसे आशीर्वाद देने का आग्रह किया, तो नानक जी बोले, 'उजड़ जाओ।' शिष्यों ने ये विचित्र आशीर्वाद सुने तो उनकी कुछ समझ में न आया। उनमें से एक शिष्य से रहा नहीं गया और उने पूछा- 'गुरुदेव, आपने तो बड़े ही विचित्र आशीर्वाद दिए हैं। आदर करने वालों को तो उजड़ जाने का आशीर्वाद दिया है, जबकि तिरस्कार करने वालों को आबाद रहने का। मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आया। कृपया स्पष्ट करें।' 
 
तब हंसते नानक देव हुए बोले, 'सज्जन लोग उजड़ेंगे तो वे जहां भी जाएंगे, अपनी सज्जनता से वहां उत्तम वातावरण बना लेंगे, किंतु यदि दुर्जन अपना स्थान छोड़ देंगे तो वे जहां भी जाएंगे, वहीं का वातावरण दूषित बनाएंगे, इसलिए उन्हें आबाद रहने का आशीर्वाद दिया।' गुरु नानक देव के मुख से यह वचन सुनकर शिष्य ने चरण स्पर्श किए और कहा, 'गुरु देव आप जो भी करते और सोचते हैं उनसे पीछे ज्ञान छिपा होता है जिसे हम तुच्छ प्राणी समझ नहीं सकते हैं।' 
 
5. एक बार श्री गुरु नानक देव जी एक गांव के बाहर पहुंचे और देखा तो वहां एक झोपड़ी बनी हुई थी। उस झोपड़े में एक आदमी रहता था, जिसे कुष्‍ठ का रोग था। गांव के सारे लोग उससे नफरत करते थे कोई उसके पास नहीं आता था। कभी किसी को दया आ जाती तो उसे खाने के लिए कुछ दे देते।
 
 
गुरुजी उस कोढ़ी के पास गए और कहा- भाई हम आज रात तेरी झोपड़ी में रहना चाहते है अगर तुझे कोई परेशानी ना हो तो। कोढ़ी हैरान हो गया क्योंकि उसके तो पास में कोई आना नहीं चाहता था। फिर उसके घर में रहने के लिए कोई राजी कैसे हो गया?
 
कोढ़ी अपने रोग से इतना दुखी था कि चाह कर भी कुछ ना बोल सका। सिर्फ गुरुजी को देखता ही रहा। लगातार देखते-देखते ही उसके शरीर में कुछ बदलाव आने लगे, पर कह नहीं पा रहा था। 
 
गुरुजी ने मरदाना को कहा- रबाब बजाओ और गुरुजी उस झोपड़ी में बैठ कर कीर्तन करने लगे। कोढ़ी ध्यान से कीर्तन सुनता रहा। कीर्तन समाप्त होने पर कोढ़ी के हाथ जुड़ गए जो ठीक से हिलते भी नहीं थे। उसने गुरुजी के चरणों में अपना माथा टेका। गुरुजी ने कहा- 'और भाई ठीक हो, यहां गांव के बाहर झोपड़ी क्यों बनाई है?' कोड़ी ने कहा- 'मैं बहुत बदकिस्मत हूं, मुझे कुष्ठ रोग हो गया है, मुझसे कोई बात नहीं करता यहां तक कि मेरे घर वालो ने भी मुझे घर से निकाल दिया है। मैं नीच हूं इसलिए कोई मेरे पास नहीं आता।'
 
 
उसकी बात सुन कर गुरुजी ने कहा- 'नीच तो वो लोग है जिन्होंने तुम जैसे रोगी पर दया नहीं की और अकेला छोड़ दिया।' आ मेरे पास मैं भी तो देखूं... कहां है तुझे कोढ़? जैसे ही गुरुजी ने ये वचन कहे कोढ़ी गुरुजी के नजदीक आया तो प्रभु की ऐसी कृपा हुई कि कोढ़ी बिलकुल ठीक हो गया।
 
यह देख वह गुरुजी के चरणों में गिर गया। गुरुजी ने उसे उठाया और गले से लगा के कहा- 'प्रभु का स्मरण करो और लोगों की सेवा करो यही मनुष्य के जीवन का मुख्य कार्य है।'

Guru Nanak Dohe
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