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मतदान जागरूकता : प्रचार-प्रसार में खर्च, जमीनी कार्य पर ध्यान नहीं

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अनिल शर्मा

लोकतांत्रिक व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी यही है कि लापरवाही, अनियमितता और भ्रष्टाचार का बोलबाला रहता है और इसी वजह से लोकतांत्रिक चुनाव में मतदान का प्रतिशत कम होता है। ये लापरवाही, अनियमितता और भ्रष्टाचार जनता की तरफ से जहां होता है, वहीं सरकारी मशीनरी यानी सरकारी नुमाइंदे भी इसमें बराबर के शरीक कहे जा सकते हैं।

 
यही वजह है कि सरकार को मतदाताओं को जगाने के लिए लाखों रुपए खर्च करना पड़ते हैं, लेकिन शत-प्रतिशत मतदान नहीं हो पाता। आबादी में गुणात्मक वृद्धि होने के साथ-साथ मतदान प्रतिशत में भी इजाफा होना चाहिए, बल्कि हो इसका उल्टा रहा है। आबादी जहां बढ़ रही है, वहीं मतदाताओं की संख्या में कमी आती जा रही है।
 
मतदान करता कौन? सच्चाई के धरातल पर देखा जाए तो मतदान करने में निम्न आय वर्ग के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा होती है यानी निम्न आय वर्ग की आबादी का लगभग 97 प्रतिशत हिस्सा मतदान करता है। इससे पहले निम्न आय वर्ग के मतदाताओं की संख्या प्रथम लोकसभा चुनाव से लेकर 8वें लोकसभा चुनाव तक लगभग 55 प्रतिशत मानी जा सकती है। इस वर्ग में मतदाताओं की संख्या में वृद्धि का सबसे बड़ा कारण प्रलोभन माना जा सकता है।

 
मतदाताओं को प्रत्याशियों द्वारा दी जाने वाली सुविधा, उन्हें लाने-ले जाने में परोक्ष मदद और यहां तक कि उनके शराब-पाव आदि की व्यवस्था। चूंकि निम्न आय वर्ग वोटरों की संख्या ज्यादा होने से प्रत्याशी सबसे पहले उनका ध्यान रखते हैं, क्योंकि जीत-हार में इनके मतदान का काफी महत्व होता है। निम्न आय वर्ग के मतदाताओं के लिए प्रलोभन बहुत काम की चीज है।
 
सरकार ने बरसों से शिक्षा के विभिन्न कार्यक्रम चला रखे हैं, फिर भी निम्न आय वर्ग की आबादी का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा अशिक्षित है और इसीलिए निम्न आय वर्ग के मतदाता केवल प्रलोभन में आकर ही मतदान करते हैं। मतदान के आंकड़ों का यह संकेत भी उभरकर आ रहा है कि साक्षरता दर बढ़ने के बावजूद मतदान प्रतिशत नहीं बढ़ रहा है। अब तो युवा मतदाताओं की संख्या में इजाफा हुआ है। यह भी माना जा रहा है कि युवा मतदाता चुनावों में आगे बढ़कर हिस्सा ले रहे हैं, ऐसे में कम मतदान होना मतदान के प्रति उदासीनता ही दर्शाता है।

 
मध्यम आय वर्ग के मतदाताओं की संख्या वर्तमान में लगभग 65 से 70 प्रतिशत कही जा सकती है। आगे भविष्य में यह संख्या हर लोकसभा या विधानसभा चुनाव में लगभग 10 से 15 प्रतिशत के हिसाब से कम होने लगेगी। इसका सबसे बड़ा कारण है मध्यम आय वर्ग के मतदाताओं की लापरवाही।
 
उच्च आय वर्ग के मतदाताओं की संख्या लगभग 10 से 15 प्रतिशत कही जा सकती है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि उच्च आय वर्ग के मतदाता विशेषकर नई पीढ़ी के युवा मतदाता मतदान दिवस पर एंजॉय करने, पार्टी-वार्टी करने में ज्यादा इंट्रेस्ट लेते हैं। उच्च आय वर्ग की आबादी का 50 से ऊपर आयु वर्ग का लगभग 40 से 60 प्रतिशत हिस्सा मतदान करता है जबकि 18 से 25 आयु वर्ग का लगभग 5 से 7 प्रतिशत और 25 से 45 आयु वर्ग का लगभग 22 से 25 प्रतिशत के लगभग हिस्सा मतदान करता है।

 
इन्हीं के नक्शेकदम पर मध्यम आय वर्ग के मतदाता भी चलते हैं जिनमें मतदान न करने वाले 18 से 25 आयु वर्ग के युवा मतदाताओं की संख्या लगभग 45 प्रतिशत होती है, वहीं 25 से 40 आयु वर्ग के मतदान न करने वाले इस आय वर्ग के लोगों की संख्या लगभग 20 प्रतिशत होती है। 40 आयु वर्ग से ऊपर के मतदान न करने वालों की संख्या लगभग 10 से 15 प्रतिशत होती है।
किराएदार
 
मतदान कम होने के कारकों में किराएदार सबसे पहला कारक माना जा सकता है। किराएदार जो मकान में किराए से रहते हैं। निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोग ही किराएदार होते हैं। किराएदारों की संख्या संपूर्ण आबादी का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा माना जा सकता है। इसमें से भी लगभग 60 से 65 प्रतिशत हिस्सा उन किराएदारों का माना जा सकता है जिनकी पीढ़ियां किराएदार के रूप में जीवन खपा चुकी हैं और खपा रही हैं। इनमें से भी लगभग 55 प्रतिशत किराएदार कहीं ज्यादा नहीं रहते यानी उनका आवागमन जारी रहता है। आज इस मुहल्ले में तो कल उस मोहल्ले में। ऐसे में मतदाता सूची में नाम जुड़ने से रह जाता है या तो ऐसे मतदाता नाम नहीं जुड़वाते या फिर सरकारी मशीनरी वाले कर्मचारी नाम नहीं जोड़ते।
 
 
सबसे बड़ी दिक्कत मूल निवास का पता होता है। जिन किराएदारों को शहर या गांव में किराए से रहते हुए ही लगभग 50 साल से ज्यादा हो गए हैं, वे तो अपने मकान मालिक का एड्रेस मूल नाम-पते में लिखा देंगे लेकिन जो मकान बदलते रहते हैं, वे किराएदार कहां से मूल पता लाएं? जबकि उसी शहर में उनकी जिंदगी व्यतीत हो गई है?
 
सरकारी नुमाइंदों द्वारा मतदाताओं का नामांकन आदि का काम सरकारी तरीके से होता है। कहीं नाम गलत, तो कहीं उम्र गलत, तो कहीं फोटो तक गलत। वैसे ऐसे हादसे कम होते हैं, फिर भी सरकारी नुमाइंदों की लापरवाही का खामियाजा मतदाताओं को भुगतना पड़ता है। कायदे से तो मतदान के पूर्व ही (जैसा कि होता है) मतदाताओं की सूची का पुनरीक्षण और नए मतदाताओं का नामांकन किया जाना चाहिए।

 
और इसके साथ ही बार-बार मकान और मुहल्ला बदलने वालों के लिए मूल पते के स्थान पर कोई अन्य विकल्प होना चाहिए। जो किराएदार पुराना मोहल्ला या मकान छोड़कर नए मकान में है, उसका वहीं का पता मान्य किया जाना चाहिए। पुराना एड्रेस तो पहले ही काट दिया जाता है। मतदान से पहले वोटर लिस्ट में अगर ऐसे किराएदारों को शुमार किया जाए, जो कहीं भी रहें तो मतदान का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा बढ़ सकता है।
 
मतदान न करने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो वोट नहीं देते, उन्हें सरकार से कुछ सवाल पूछने या सरकार को दोष देने का हक भी नहीं है। वास्तव में यह लोकतंत्र का मजाक उड़ाने वालों के गाल पर बड़ा तमाचा है। मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए मतदान से पहले ही सबकुछ व्यवस्थित करने के अलावा मतदाताओं विशेषकर उच्च और मध्यम आय वर्ग के उन मतदाताओं को साधने का प्रयास करना होगा, जो मतदान के दिन एंजॉय करते हैं। मतदाता जागरूकता में लाखों-करोड़ों खर्च करने के बजाए वास्तविक रूप से काम किया जाए, तो ही मतदान का प्रतिशत बढ़ सकता है।

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