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क्या गगन सिस्टम और GPS उपग्रहों का हम कृषि क्षेत्र में उपयोग कर सकते हैं?

हमें फॉलो करें क्या गगन सिस्टम और GPS उपग्रहों का हम कृषि क्षेत्र में उपयोग कर सकते हैं?
, रविवार, 1 मई 2022 (14:11 IST)
-गिरीन्द्र प्रताप सिंह
 
1. दिनांक 29-04-2022 को समाचार पत्रों में खबर आई कि इंडिगो एयरलाइन के एक टी आर विमान ने गगन तकनीक से राजस्थान में किशनगढ़ एयरपोर्ट पर सफल लैंडिंग करी। इसमें यह भी था की इस प्रौद्योगिकी को इसरो और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने संयुक्त रूप से विकसित किया है। इस खबर का महत्व हम ट्रैफिक देखकर लगा सकते हैं। ट्रैफिक एक बड़ा ही महत्वपूर्ण विषय है चाहे वो अंतरिक्ष का ट्रैफिक हो या आसमान का या समुन्दर का। ट्रैफिक की परिस्थिति देखकर 2020 में यह 84‍ ट्रिलियन की वैश्विक अर्थव्यवस्था अच्छे से समझ में आती है जैसे की अभी शुक्रवार दिनांक 29-04-2022 को रात 11.30 बजे वाराणसी में बैठ कर अगर इंटरनेट पर लाइव एयर ट्रैफिक देखें तो ऐसा दिखता है।

इस तस्वीर को थोड़ा बड़ा, चौड़ा और दोहरावित इस लिए किया है की दिन और रात का अंतर एकदम स्पष्ट दिखे। आप यह देखिए कि लंदन के ऊपर कितनी ज्यादा भीड़ है। फ्लाइटराडार 24 वेबसाइट से ली गई इस तस्वीर में संपूर्ण विश्व का लाइव ट्रैफिक है और दूसरी तस्वीर में सिर्फ भारतीय और दुबई के ट्रैफिक को दिखाती हुई तस्वीर है-
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2. आप देखिए कि दुनिया में हवाई जहाजों की कितनी ज्यादा भीड़ है। फ्लाइटराडार 24 वेबसाइट से वैश्विक एयर ट्रैफिक देखने के बाद अगर मरीनट्रैफिक वेबसाइट से वैश्विक समुद्रीय ट्रैफिक को देखें तो कुछ ऐसा दिखता है जिसमें समुन्दर में दिख रहे छोटे छोटे बिंदु पानी के बड़े बड़े जहाज हैं अगर पहले चित्र में संपूर्ण विश्व का लाइव ट्रैफिक है और दुसरे में सिर्फ भारतीय महासागर का ट्रैफिक है- 
 
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3. इस एयरट्रैफिक और मरीनट्रैफिक की दिन पर दिन बढ़ती हुई भीड़ की समस्या का निदान करने के लिए प्रौद्योगिकी हमेशा से आगे है। हवाई जहाज की प्रथम उड़ान राइट बंधुओं ने 1903 में की थी। जब हवाई जहाज उड़ता है तो बहुत आवाज करता है लकिन जब वह 10-11 किलोमीटर तक पहुंचता है तब आवाज नीचे तक नहीं आती। बादलों की वजह से दूरबीन से दिखता भी नहीं है। सिर्फ राडार ऐन्टेना से हवाई जहाज के द्वारा किए गए रेडियो वेव के डिस्टर्बेंस ढूंढ ढूंढ के हवाई जहाज की लोकेशन लेते हैं। राडार के आविष्‍कार का श्रेय उस देश के वैज्ञानिक मुताबिक बताया जा सकता है। अमेरिका में नौसैनिक अनुसंधान प्रयोगशाला के वैज्ञानिक हाईलैंड को और ब्रिटेन में इनके वैज्ञानिक रोबर्ट वॉटसन वाट को। बाकि देशों के वैज्ञानिकों के नाम खोजने पड़ेंगे। लेकिन सभी के श्रेय का स्त्रोत सम्मानीय वैज्ञानिक मैक्सवेल साहब के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के अनुसंधान और जर्मनी के सम्मानीय वैज्ञानिक हेनरिच हर्ट्ज के अन्वेषण में है। भारत में राडार के आविष्‍कार का श्रेय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के पद्म श्री स्वर्गीय रामदास शेनॉय साहब का है।
 
4. राडार के बाद जीपीएस उपग्रह आए और उन्होंने रियल टाइम में देशांतर और अक्षांतर बताना शुरू कर दिए। अब उन जीपीएस उपग्रहों के सिगनलों को एक और उपग्रह रियलटाइम में सिगनल देगा और फिर उन सभी उपग्रहों का समन्वय एयरपोर्ट के एयर ट्रैफिक कंट्रोल रूम से होगा। इस गगन सिस्टम की तस्वीर कुछ ऐसी दिखती है जिसमें हवाईजहाज के पास 4 जीपीएस उपग्रह और एक और उपग्रह दिख रहा है। नीचे एक बड़ा सा डिश ऐन्टेना और 15 स्टेशनों की बादलों की तरह एक छोटी सी फोटो बनी है। इस चित्र में एक छुटकू सा जहाज, एक ट्रक और एक रेलगाड़ी भी बनी है।
 
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5. इसरो के गगन सिस्टम के अलावा विश्व में जीपीएस सिगनलों को एक्यूरेट करने के लिए उपग्रह आधारित और भी सिस्टम है जो कि निम्न तस्वीरों में दिख रहे हैं। यह तस्वीर यूरोपियन स्पेस एजेंसी से ली गई है। इस चीन में हमारा गगन सिस्टम अपने भारत के ऊपर दिख रहा है।
 
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6. फिलहाल तो वर्तमान में गगन एक मुफ्त सेवा है लेकिन यह हमारे देश की प्रौद्योगिकी की असीम क्षमताओं का एक छोटा सा परिचय भी है जिसका बाकी क्षेत्रों में उपयोग हमारी कल्पनाओं तक ही सीमित है। तो क्या हम कल्पना करने में सक्षम हैं? क्या हम गगन को कृषि और किसानों के लिए लगा सकते हैं? फिर से कुछ मि‍त्र बोलेंगे कि कहां अंतरिक्ष और कहां कृषि? और फिर से हमारे सबसे फेवरेट विक्रम साराभाई की वही लाइन सुनाएंगे। लेकिन आज संत तिरुवल्लुवर की कुछ पंक्तियां और भी हैं।
 
बहुत सारे मित्रों ने पिछले लेख में 100 ट्रिलियन की हेडलाइन पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर करी कि इसका अंतरिक्ष से संबंध नहीं है। आप यह देखिए कि अंतरिक्ष क्षेत्रक भी वैश्विक अर्थव्यवस्‍था का एक छोटा सा लेकिन महत्वपूर्ण क्षेत्रक है जो सभी की नजरों में काफी विकसित और अमीर क्षेत्रक है। मेरी नजर में 100 ट्रिलियन का सीधा संबंध गरीबी से है और अंतरिक्ष क्षेत्रक, नाभिकीय क्षेत्रक, सामुद्रिक क्षेत्रक या अस्त्र शस्त्र का क्षेत्रक हमारे विश्व की सबसे विकसित प्रौद्योगिकी है। अगर हम अपनी प्रौद्योगिकी के क्षेत्रक के माध्यम से गरीबी के उन्मूलन का प्रयास करेंगे तो सकारात्मक और सार्थक परिणाम हो सकते हैं। गरीबी पर संत तिरुवल्लुवर ने अपनी थिरुक्कुरल में कहा था कि - 
 
निर्धनता की पापिनी, यादि रहती है साथ। 
लोक तथा परलोक से, धोना होगा हाथ।।
 
निर्धनता के नाम से, जो है आशा - पाश।
कुलीनता, यश का करे, एक साथ ही नाश।।
 
कंगाली जो कर चुकी, कल मेरा संहार।
अयोगी क्या आज भी, करने उसी प्रकार।।
 
7. अगर हम संत तिरुवल्लुवर की थिरुक्कुरल के उपरोक्त पंक्तियों को डॉक्टर‍ विक्रम साराभाई की 'किसी से भी कम नहीं' की पंक्तियों से साथ मिलकर पढ़ें तो यही समझ में आता है की हमें वैश्विक अर्थव्यवस्था की जटिलता और स्वरूपों का बड़ी गहराई से अन्वेषण करना चाहिए। क्या पता कि इसके किस आर्थिक क्षेत्रक या इसकी किस सार्वभौमिक और प्रभुत्व सरकार में आर्थिक मौका छुपा हुआ है? मेरा यह यकीन है कि अगर भारत में अलग अलग प्रदेशों को अपनी अर्थव्यवस्था को ट्रिलियन के पार पहुंचाकर अपने यहां की गरीबी को अमीरी में बदलना है तो उन्हें वैश्विक अर्थव्यवस्था के 100 ट्रिलियन पहुंचने का सेक्टर वाइज प्रेक्षण करना होगा।

चूंकि मेरा 8 वर्ष का अनुभव उपग्रह और रॉकेटों जैसे उन्नत और जटिल प्रौद्योगिक प्रणाली में कार्य करने का हैं इसलिए मैंने ट्रिलियन के लिए अपने लेख प्रौद्योगिकी पर केंद्रित किए हैं। खैर इस प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में इस लेख की आखरी पंक्तियों में प्रश्न यह है कि क्या गगन सिस्टम और जीपीएस उपग्रहों का हम कृषि के क्षेत्र में कुछ बड़े पैमाने पर उपयोग सोच सकते हैं? और आज इस सन 2022 की खबर के सन्दर्भ में यह प्रश्न अप्रासंगिक नहीं हैं।    
(लेखक भारतीय राजस्व सेवा में अतिरिक्त आयकर आयुक्त के पद पर वाराणसी में नियुक्त हैं और मूलत: बुंदेलखंड के छतरपुर जिले के निवासी हैं। इन्होंने लगभग 8 वर्ष इसरो में वैज्ञानिक के तौर पर प्रमुखतया उपग्रह केंद्र बेंगलुरु में कार्य किया जिसमें अहमदाबाद, त्रिवेंद्रम, तिरुपति जिले की श्रीहरिकोटा एवं इसराइल के वैज्ञानिकों के साथ भी कार्य किया।) 
 

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