विश्व के राजनीतिक मंच से दो सुकून भरी खबरें

शरद सिंगी
लेख की विषयवस्तु पर आने से पहले हम विश्व की वर्तमान राजनीतिक वीथिका पर एक नज़र डालते हैं। सन् 2018 का लगभग आधा वर्ष बीत चुका है किन्तु विश्व मंच से अभी तक कोई ऐसी खबर नहीं थी जो मन को प्रसन्न करने वाली हो। राष्ट्रपति ट्रम्प, विश्व मंच को अखाड़ा समझकर अकेले बनेठी (लाठी) चला रहे हैं और सामने सहयोगी हों या दुश्मन वे सबसे लड़ने को तैयार दिख रहे हैं।
 
ट्रम्प ने अपने घनिष्ट सहयोगी राष्ट्रों के साथ कनाडा में हुई ग्रुप-7 की मीटिंग के दौरान अमेरिकी हितों का राग बजा दिया और मीटिंग के निष्कर्षों पर बिना हस्ताक्षर किए निकल गए। जाते समय सारी मर्यादाओं को ताक में रखकर रास्ते में से ही ट्विटर के माध्यम से मेजबान देश कनाडा के प्रधानमंत्री को खरी खोटी और सुना दी। अब आगे से उनकी मेजबानी करने से पहले कोई राष्ट्र दस बार सोचेगा।
 
उधर रूस के राष्ट्रपति पुतिन भी कुछ कम नहीं। उन्होंने कुछ ऐसे राष्ट्रों को समर्थन दे रखा है जो विश्व शांति में निरंतर खलल डाले हुए हैं। पश्चिमी देशों की परवाह न करते हुए वे विश्व मंच पर अपनी जगह खुद बना रहे हैं। उनसे अनेक देश रुष्ट हो चुके हैं और वे बिना किसी की परवाह किए अमेरिका के सामने भी चुनौती बनकर खड़े हैं। क्रीमिया पर कब्ज़ा हो या सीरिया अथवा ईरान की तरफदारी, उनकी तूती अलग बज रही है।
 
इधर एक अन्य महाशक्ति चीन, लगातार अपनी सीमाओं को बढ़ाने की मंशा से दक्षिण चीन सागर में बार बार अपनी सैन्य क्षमता  दिखाकर पड़ोसी कमजोर राष्ट्रों को भयभीत कर रहा है। इन हालातों में नए समीकरण बनना तो छोड़िये, पुराने बने समीकरण बिगड़ रहे हैं।
 
परिणाम यह हुआ है कि विश्व व्यवस्था में तालमेल लगभग समाप्त हो चला है और विश्व वैश्वीकरण के मार्ग से हटकर पुनः राष्ट्र केंद्रित हितों की ओर बढ़ने लगा है।  
 
ऐसे चुनौतियों भरे समय में  पिछले सप्ताह की दो ख़बरें थोड़ी सुकून देने वाली थीं। पहली थी अमेरिका के राष्ट्रपति के साथ किम की बहुप्रतीक्षित और बहुचर्चित महामुलाकात और दूसरी दुनिया की तनाव भरी वर्तमान स्थिति को ठेंगा बताती हुई रूस में विश्व के फुटबॉल कुम्भ की शुरुआत। भारत की इन दोनों ही महत्वपूर्ण घटनाओं में कोई सीधी भागीदारी नहीं थी। बावजूद इसके भारतीयों में भी दोनों ही घटनाओं को लेकर उत्साह कम नहीं था।
 
ट्रम्प और किम का  हाथ मिलाना विश्व के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था। इस दृश्य को देख दक्षिण कोरिया और जापान में लोग ख़ुशी के मारे उछल पड़े। कोरियाई प्रायद्वीप के लिए यह घटना सदी की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी। जो लोग वर्षों और पीढ़ियों से युद्ध के तनाव में जी रहे हैं उनके लिए इस मिलन का कितना महत्व होगा शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।
 
उत्तरी कोरिया के तानाशाह की अनियंत्रित मिसाइलें जापान और दक्षिण कोरिया के लोगों को पूरे समय तनाव में रखती थी। पूरे विश्व से नामी पत्रकार सिंगापुर में उलट चुके थे इन ऐतिहासिक पलों को अपने कैमरे में कैद करने के लिए। 
 
विश्व के बिगड़ैल युवक और क्रूर तानाशाह का सिंगापुर में एक हीरो की तरह स्वागत हुआ। वह दुनिया के सबसे बुरे मानवाधिकार रिकॉर्डों वाले देशों में से एक देश का नेता है, किन्तु उसके साथ सिंगापुर के प्रधान मंत्री ली हसीन लूंग को भी दोस्ताना व्यवहार करना पड़ा।
 
सिंगापुर की एक लक्जरी होटल में उसके रहने तथा सुरक्षा के लिए सिंगापुर सरकार ने लगभग सौ करोड़ का भुगतान किया। इसमें कोई संदेह नहीं कि विश्व शांति के लिए यह मीटिंग एक मील का पत्थर है किन्तु यहाँ कुछ प्रश्न भी खड़े हो जाते हैं। दुनिया को झुकाने के लिए तानाशाह ने जो परमाणु बम का खेल खेला वह कितना जायज था ? यदि वह नहीं खेलता तो क्या अमेरिका के राष्ट्रपति को अपनी शर्तो पर सामने टेबल पर बैठा पाता? हमारे यहाँ कहावत है कि घी को निकालने के लिए ऊँगली को टेड़ा ही करना पड़ता है।
 
महाशक्तियों के राज में छोटे छोटे देश कभी अपनी ऊँगली टेढ़ी भी कर लें तो कौनसा गुनाह है? महाशक्तियों की तो ऊँगली हमेशा ही टेढ़ी रहती है। खैर अब विश्व के परिदृश्य में फुटबॉल का महाकुम्भ उतर चुका है जहाँ सारे देशों के नेता से लेकर आम आदमी तक अपने मतभेदों को किनारे रख एक अलग दुनिया में खो जायेंगे। राजनीतिक रूप से अछूत बना रूस अभी हलचल का केंद्र है। अगले माह कूटनीति छुट्टी पर है। फुटबॉल के जादुई संसार का आनंद लें। 

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