सचमुच ही ये हेडिंग पढ़कर यदि आप सेकुलर हैं तो मुझे निश्चित ही दक्षिणपंथी घोषित कर देंगे। कोई बात नहीं, आप यह लेख पूरा जरूर पढ़ें और इस पर सोचें जरूर। यहां कुछ सवाल हैं जिसके जवाब आपको खुद को ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ेगी और मैं भी नहीं दूंगा। आप सोच रहे होंगे कि यह कैसी बात है। हालांकि यह जो लेख लिखा गया है, वह बहुत ही बेतरतीब तरह से लिखा गया है। आप सिर्फ पढ़िए और सोचिए...
#
पुलवामा हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जिस तरह की कार्रवाई, कार्यवाही और कूटनीति चली है उसका विश्लेषण करने वाले वैसे भी लोग हैं जिन्हें शायद ही राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय राजनीति की समझ हो, क्योंकि इसके लिए आपको धर्म, युद्ध और राजनीति के इतिहास के हर पहलू को अच्छे से समझने की जरूरत होती है।
पुलवामा हमले के बाद इमरान खान ने जिस तरह से युद्ध के डर से या कूटनीति का इस्तेमाल करते हुए जितनी बार संबोधन दिया उसमें उन्होंने शांति और बातचीत से समाधान की बात के बीच धमकी की बात भी कही। दूसरा, उन्होंने विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा करके भी उनके देश में नहीं, बल्कि भारत के कुछ तबकों में खूब तारीफ बटोरी। इस बीच उनकी सेना ने भारत द्वारा की गई एयर स्ट्राइक के सबूतों पर पर्दा ढंकने के लिए किसी भी मीडिया को मुख्य स्थल पर नहीं जाने दिया। सिर्फ सैटेलाइट चित्रों के आधार पर ही एयर स्ट्राइक से आतंकियों के मारे जाने या नहीं मारे जाने के दावे किए जाते रहे। मीडिया ग्राउंड रिपोर्ट का दावा करती है लेकिन वे सारे ग्राउंड मुख्य स्थल से लगभग 5 से 10 किलोमीटर दूर के हैं। पाकिस्तान का इस संबंध में बयान था कि हमारे दरख्तों को नुकसान पहुंचाया गया।
#
भारत में इमरान खान की तारीफ करते लोग थक नहीं रहे हैं। कुछ मीडिया समूह और सेकुलर फोर्स के लिए तो पीएम मोदी कूटनीति में हार गए हैं। सचमुच तारीफ करने में कोई बुराई नहीं है। नरेन्द्र मोदी की भी दुनिया के दूसरे देशों के नागरिक तारीफ करते हैं। भारत में ऐसे हजारों लोग मिल जाएंगे, जो व्लादिमीर पुतिन की तारीफ करते हैं। लेकिन एक सवाल यहां पूछना जरूरी है कि जब किसी देश ने किसी दूसरे देश पर किसी भी प्रकार से आक्रमण किया है, तो उस वक्त क्या शत्रु देश या उसके पीएम की तारीफ करना उचित है? सिर्फ नरेन्द्र मोदी को नीचा दिखाने के चक्कर में क्या हमें अपने राष्ट्रीय हितों को भी ताक में रख देना चाहिए?
निश्चित ही पाकिस्तान के पीएम इमरान खान के दोस्त यह अभी नहीं समझ पाएंगे कि इमरान खान ने उनके माध्यम से भारत को बोल्ड करने की रणनीति को आजमाया है। आप क्रिकेट की दोस्ती निभाते रहें और वे दोस्ती के साथ और भी बहुत कुछ निभाएंगे। आप सोचिए इस बारे में कि मोहम्मद अली जिन्ना और शेख अब्दुल्ला भी जवाहरलाल के पक्के दोस्त थे। खैर, जाने दीजिए अब हम दूसरी बात करते हैं। इमरान खान के भी भारत में बहुत से पक्के दोस्त हैं।
ग्लोबलाइजेशन के युग में क्या आपके विचार भी राष्ट्रीयता से उठकर अब ग्लोबल होने लगे हैं? निश्चित ही बहुत से लोगों के लिए धर्म, राजनीति और राष्ट्र कोई मायने नहीं रखता। वे सोचते हैं कि यह सभी मानव द्वारा आविष्कृत विकार हैं। ऐसे लोगों की सोच इससे भी आगे है। वे परिवार और समाज को भी नहीं मानते हैं। उनके लिए उनका जीवन ही सबसे महत्वपूर्ण होता है। लेकिन ऐसी सोच के साइड इफेक्ट आपको सिर्फ भारत में ही मिलेंगे, क्योंकि सच तो यह है कि भारतीय लोगों का दिमाग आधुनिकता और खुले विचारों के नाम पर बहुत जल्दी ही बदला जा सकता है। उन्हें आसानी से जातियों में विभाजित किया जा सकता है। उन्हें आसानी से वामपंथ या दक्षिणपंथ के खिलाफ किया जा सकता है। आप देखिए वामपंथ और बाजारवाद ने यह संभव करके दिखा दिया है।
#
अब आपके दिमाग में दो सवाल होंगे। पहला यह कि इसके क्या साइड इफेक्ट है? और दूसरा आप सोच रहे होंगे कि मैंने यहां बाजारवाद और वामपंथ की बात कही तो इसका मतलब यह कि मैं दक्षिणपंथी हूं? नहीं, बाजारवाद का विरोधी दक्षिणपंथी, नहीं वामपंथी होता है और वामपंथ का विरोधी दक्षिणपंथी होता है। मैं यहां दोनों का विरोध करके आपको एक तीसरी दिशा में सोचने के लिए कह रहा हूं। आपको थोड़ा और सोचने की जरूरत है। जहां तक साइड इफेक्ट की बात है तो आप हर समाज के युवाओं की दशा और दिशा की समीक्षा कर लें। समीक्षा कर लें कि किस तरह धर्म, संस्कृति, भाषा और राजनीति का पतन हो रहा है। खैर, बात को आगे बढ़ाते हैं।
दरअसल, मैंने देखा है कि जिस व्यक्ति ने अपने कॉलेज के दौरान वामपंथ को अपनाया है (भले ही पढ़ा या समझा नहीं हो) उनमें से अधिकतर अपने जीवन के एक मुकाम पर जाकर तब दक्षिणपंथी बन गए हैं जबकि उन्होंने उनकी बातों को पढ़ा और समझा। इसी तरह ऐसे कई दक्षिणपंथी हैं जिन पर वामपंथ के तर्कों का गहरा असर हुआ है। अब आपको मैं बताना चाहता हूं कि एक वह व्यक्ति जो कट्टरपंथी वाम है और दूसरा दक्षिण है, लेकिन एक तीसरा भी है, जो अभी तक कन्फ्यूज है और एक चौथा भी, जो दक्षिणपंथी होकर भी वामपंथ के साथ इसलिए है, क्योंकि उसे हिन्दुत्व से मुकाबला करना है। कॉलेज में अक्सर लड़के किसी भी विचारधारा को जाने बगैर ही कुछ किताबों को या अपने नेताओं की बातों से प्रभावित होकर छात्र संगठन ज्वॉइन कर लेते हैं। दरअसल, यह उनकी खुद की च्वॉइस कम ही होती है। होती भी है तो वे यह नहीं जानते हैं कि इस च्वॉइस के पीछे कौन है?
दरअसल, भारत में विदेशी विचारधारा का प्रभुत्व प्रारंभ से ही रहा है। पहले लोग मुगलों के भक्त थे, फिर अंग्रेजों के बने। अब लोग मार्क्स, लेनिन और माओ के साथ ही आप देख ही रहे होंगे कि किन-किन लोगों के भक्त बन बैठे हैं। यह भी जान लें कि आज भी मुगलों और अंग्रजों के भक्त मौजूद हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि मैं यहां स्वदेशी विचार का पक्ष ले रहा हूं?
#
आप ही बताइए कि स्वदेशी विचार क्या है? दरअसल, यह किसी को शायद ही मालूम होगा। आप जिन महान स्वदेशी लोगों के फॉलोअर्स हैं, उनमें से अधिकतर तो विदेशी सोच और विदेशी राजनीतिज्ञ या दार्शनिक लोगों के फॉलोअर्स रहे हैं। भारत के साहित्यकारों, सिनेमाकारों और महान राजनीतिज्ञों की जीवन और आत्मकथा पढ़िए या उनका जीवन और उनकी जीवनशैली देखिए। उनमें से अधिकतर विदेशियों के भक्त हैं जिनके आप भक्त हैं। तब आप कैसे स्वदेशी भक्त हो गए?
एक समय था जबकि चाणक्य ने विदेशी आक्रमण और विदेशी महिला हेलेना के पुत्र को राजगद्दी पर बैठाने का विरोध किया था। क्या इस विरोध के कारण चाणक्य दक्षिणपंथी या कट्टरपंथी था? क्या राष्ट्रवादी होना दक्षिणपंथी होना है? क्या चाणक्य विदेशी विचारधारा से प्रभावित था? क्या उन्होंने जो चाणक्य नीति या अर्थशास्त्र लिखा? वह दुनिया के अर्थशास्त्र या नीति को पढ़कर लिखा?
हमारे देश में प्राचीन और मध्यकाल में ऐसे कई महान राजनेता, दार्शनिक और विचारक हुए हैं जिनके विचारों के आधार पर ही दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और राजनीति की नई शुरुआत हुई है और उनके विचारों से ही दुनिया के देशों ने अपने यहां की हर समस्या का हल निकाल लिया है लेकिन भारतीय लोग उनके फॉलोअर नहीं हैं। क्यों?
#
खैर, अब मूल मुद्दे पर आते हैं। सबसे ऊपर हेडिंग के बाद जो पैरा लिखा था पहले उस पर आते हैं। दरअसल, सवा सौ करोड़ भारतीयों में भारतीयों को ढूंढना बहुत मुश्किल है। कैसे? हमारे देश में बहुत-सी विचारधाराएं और किताबें प्रचलित हैं। सभी के अपने अपने फेवरेट देश हैं। किसी को पाकिस्तान पसंद है, किसी को चीन, किसी को ब्रिटेन, किसी को कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और रशिया। हालांकि बहुत से ऐसे भारतीय भी हैं, जो खुद को अमेरिकन कहलाना पसंद करते हैं।
खैर, इमरान खान के बहुत से भारतीय दोस्त हैं। उनमें से उनका एक प्रसिद्ध दोस्त भी है। उस प्रसिद्ध दोस्त जैसे कई हैं, जो इमरान खान को एक सुलझा और अच्छा व्यक्ति मान रहे हैं, जबकि पाकिस्तान में कहा जाता है कि जो व्यक्ति अपनी एक पत्नी नहीं संभाल पाया, वह देश कैसे संभालेगा? सुलझा हुआ और अच्छा व्यक्ति होने का क्या मतलब है? रेहम खान कहती हैं कि इमरान खान को किसी से भी प्यार नहीं है। उन्हें सिर्फ अपने कुत्तों से प्यार है। रेहम ने कहा कि इमरान खान पत्नी के साथ मार-पीट करते हैं। वे ड्रग्स लेते हैं। उनके शादीशुदा मर्द के साथ भी संबंध रहे हैं। यही नहीं, रेहम खान इमरान खान के 5 नाजायज बच्चे होने का दावा भी करती हैं।
रेहम ने अपनी किताब में इसका खुलासा किया कि 65 वर्षीय इमरान खान कुरान नहीं पढ़ सकते, उनका काला जादू पर विश्वास है और उन्होंने खुद (इमरान ने) बताया कि भारत में उनके कुछ नाजायज बच्चे भी हैं। रेहम के मुताबिक ये सभी बातें उनके अलावा इमरान की पहली पत्नी जेमिमा गोल्डस्मिथ को ही पता हैं। यह भी कहा जाता है कि इमरान खान का तालिबान से बहुत नजदीकी संबंध रहा है इसीलिए उन्हें 'तालिबानी खान' भी कहते हैं।
इमरान खान के भारतीय समर्थकों को संभवत: इसके बारे में पता ही होगा। अब सवाल यह उठता है कि इमरान खान के भारतीय समर्थक कितने भारतीय हैं? 'कितने भारतीय' का मतलब संख्या से है। आप क्या समझे?
निश्चित ही आपने हेडिंग का 'भारतीयता' से मतलब निकाला होगा। यह बात तो छोड़ ही दीजिए। यह मैं ऊपर लिख ही आया हूं कि कैसे एक भारतीय, अमेरिकन कहलाना ज्यादा पसंद करता है। यदि हम संख्या की बात करें तो आप एक पोल कर लीजिए कि कितने लोग नरेन्द्र मोदी और कितने लोग इमरान खान को पसंद करते हैं। आपको सचाई का पता चल जाएगा कि देश में ही कितने अराष्ट्रीय सोच के लोग हैं...।
#
अब आप फिर कहेंगे कि मैं राष्ट्रवाद की बात कर रहा हूं। अजीब विडंबना है कि आप कैसे राष्ट्रवाद को दक्षिणपंथ से जोड़कर देखते हैं? क्या राष्ट्रवादी होना भाजपा, आरएसएस या मोदीभक्त होना है? क्या कोई कांग्रेसी राष्ट्रवादी नहीं है? राष्ट्रवाद क्या है? राष्ट्रीयता क्या है? क्या अपने राष्ट्र का भक्त होना दक्षिणपंथी विचार है? जब कोई शत्रु देश मेरे राष्ट्र पर छद्म या प्रत्यक्ष हमला करता है, तो क्या मुझे अपने राष्ट्र का साथ न देकर उस शत्रु देश का साथ इसलिए देना चाहिए, क्योंकि मेरी विचारधारा का व्यक्ति सत्ता में नहीं बैठा है? क्या मैं सरकार का विरोध करते-करते अपने तर्कों के द्वारा राष्ट्रीय हितों को भी क्षति पहुंचाऊं? क्या भारत में ऐसे कई लोग, संस्थान, संगठन आदि हैं, जो निष्पक्षता की हदें पार करके विरोधी या शत्रु पक्ष को जाने-अनजाने में हित पहुंचा गए हैं?
यहां राष्ट्रीयता के किसी निबंध में लिखे हुए सूत्रों की बात नहीं की जा रही है। एक सामान्य तौर पर मैं पहले भारतीय हूं या कि कुछ और? आप खुद से सवाल कीजिए कि आप जन्म से क्या हैं? आनुवांशिक रूप से आप क्या हैं? आपके खून में क्या है? क्या आपको पता है कि किस तरह आपको राष्ट्रीयता से दूर किया जा रहा है? कौन आपको राष्ट्रीयता से दूर कर रहा है? क्या इसकी पूरी प्लानिंग बाजारवाद और वामपंथ करता है? यदि नहीं तो नीचे की बातें जरूर पढ़ें...
#
आपकी भाषा हिन्दी है, अंग्रेजी है, हिंग्लिश है, अरबी है या फारसी? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आपकी भूषा भारतीय है, अमेरिकन है, अरबी है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आपका भोजन भारतीय है, इटालियन या अमेरिकन, इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। आपको पता है कि आपने कब देशी टमाटर खाया था? कब देशी भुट्टा खाया था? आपने कब भारतीय इमली, कबीट और बेर का स्वाद चखा था? लास्ट टाइम कब बेशरम की झाड़ी और देशी आम का पेड़ देखा था? लास्ट टाइम कब देशी मुर्गे और तीतर को देखा था?
क्या किसी ने देशी कुत्ते को पाल रखा है? आपको कब से विदेशी मछलियों का शौक हो गया? और अजीब है कि इन देशी मछलियों का भी भारतीयों से क्यों जी उचट गया है, जो अब अंग्रेजों के सपने देखने लगी है? क्या आपको पता है कि भारतीयता को कैसे, किस तरह से व किस स्तर पर खत्म किया जा रहा है? और वे कौन हैं, जो यह खत्म कर रहे हैं? वह कोई नहीं हम और आप ही हैं। ऐसे समय में यह सोचने वाली बात है कि क्यों चीन, जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका, रशिया और जापान अपनी पहचान को बचाने में लगे हैं? क्या आपको पता है कि जब वियतनाम पर अमेरिका ने हमला किया था तब बच्चा-बच्चा सिर्फ वियतनामी ही था?
अंत में ऊपर मैंने कुछ सवाल लिखे हैं जिसके जवाब आपको खुद को ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ेगी और मैं भी नहीं दूंगा। आप सोच रहे होंगे कि यह कैसी बात है? दरअसल, आप सोचने लगेंगे तब आपको खुद ही इनके जवाब मिलने लगेंगे। लेकिन मैं यह गारंटी जरूर देता हूं कि आपके पास ऐसे तर्क हैं, जो कि किसी के भी विचारों का खंडन करने की ताकत रखते हैं। आखिर तर्कों का काम ही होता है किसी भी अच्छे और बुरे विचारों का खंडन करना। तर्क तो होते ही वेश्याओं की तरह हैं!