Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

मंदिरों, धार्मिक पर्व-आयोजनों पर ही प्रतिबंध क्यों?

हमें फॉलो करें temple in corona
webdunia

कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

देश में कोरोना के बढ़ते हुए प्रकोप के साथ ही लॉकडाऊन में सभी व्यवस्थाओं पर प्रतिबंध लगाए गए जिसका यथासंभव पालन भी सुनिश्चित करवाया गया,लगभग तीन महीने से ज्यादा की अवधि तक देशभर में घरबन्दी रही आई। धीरे-धीरे जब लॉकडाऊन में ढील देने एवं अर्थव्यवस्था को गति देने की शुरूआत हुई तो क्रमशः नियमानुसार अनलॉक के विभिन्न चरणों के माध्यम से लगभग सभी क्षेत्रों में दिशा-निर्देशों के साथ छूट दी गई तथा संचालन के लिए व्यवस्थाएं पुनः उसी गति के साथ शुरु हो गईं।

सरकार ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, उद्योग एवं व्यापार, ट्रान्सपोर्ट, मार्केंटिंग सेक्टर लगभग सभी को धीरे-धीरे अनुमति देकर चालू कर दिया।

अपने-अपने स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों के दबाव के चलते सरकार ने उन्हें आर्थिक राहत देने के साथ ही संचालन में सहयोग करने की दिशा में आवश्यक कदम उठा रही है। लॉकडाऊन एवं कोरोनाकाल में एक चीज जो नहीं रुकी वह है राजनीति जिसे माननीय नीति-नियंताओं ने बड़ी ही बेशर्मी के साथ अंजाम देते रहे आए। अब भी बाजे-गाजे के साथ राजनैतिक दलों के कार्यक्रम, चुनावी सभाएं, मंत्रणाएं, प्रचार प्रसार अभियान एवं जनसंपर्क भी जारी हैं।

सरकार आए दिनों केवल हवाबाजी एवं शिगूफेबाजी करती हुई अपनी पीठ थपथपाने में लगी हुई हैं। कोरोना से बचाव एवं सुरक्षात्मक तौर पर नियमों का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति एवं संस्था की नैतिक एवं अनिवार्य जिम्मेदारी है जिसका पालन हर हाल में किया जाना चाहिए।

इन सबके बावजूद जिस प्रकार से आर्थिक मोर्चे को गति देने के लिए सभी क्षेत्रों यथा-होटल-रेस्टोरेंट, उद्योग एवं निर्माण क्षेत्र,यातायात एवं परिवहन, बाजार सहित लगभग सभी क्षेत्रों को संचालित किया जाने लगा।

किन्तु कोरोना संक्रमण के चलते मन्दिरों एवं धार्मिक आयोजनों पर पाबंदियां लगभग यथावत जारी हैं। आए दिनों जैसे ही कोई भी हिन्दू त्यौहार या पूजन की बात आती है तो सरकार का प्रतिबंधात्मक आदेश आ जाता है। इन घटनाक्रमों को देखते हुए क्या यह माना जाए कि   सरकार यह मानती है कि कोरोना का प्रसार धार्मिक आयोजनों एवं मन्दिरों से ही होगा? जब सभी जगह सोशल डिस्टेंसिन्ग की बात करते हुए संचालन की बात की जाती है तो ऐसे में मन्दिरों एवं धार्मिक संस्थानों, हिन्दू त्यौहारों एवं श्रध्दालुओं के आने-जाने पर ही प्रतिबंध एवं रोक क्यों लगाई जाती है?

अगर सरकार यह मानती है कि सभी व्यवस्थाओं के संचालित होने से कोरोना के संक्रमण में नियंत्रण है, तब ऐसे में मन्दिर, धार्मिक संस्थान, त्यौहारों को भी क्या दिशा-निर्देशों के पालन के साथ नहीं मनाया जा सकता है? आखिर! लोग तो वही हैं, जो विभिन्न व्यवस्थाओं के संचालन में भागीदारी निभा रहे हैं, तब ऐसे में धार्मिक पर्वों, अनुष्ठानों के आयोजन से क्या समस्या है?

ज्यादातर प्रसिद्ध मंदिर एवं धार्मिक संस्थान सरकार के आधीन हैं जिनके पुजारियों एवं अन्य कर्मचारियों को न्यून तौर पर सरकार के स्थानीय बोर्ड एवं प्रशासनिक अधिकारी वेतन भत्ता देते हैं, जबकि इससे जीवन का गुजर-बसर चलना मुश्किल होता है। किन्तु इनके अलावा अन्य जो मन्दिर एवं धार्मिक संस्थान हैं वहां धार्मिक अनुष्ठानों एवं श्रध्दालुओं के न पहुंचने के कारण व्यवस्थाओं के संचालन लिए आर्थिक तंगी जैसी परिस्थिति उत्पन्न हो चुकी है।

सरकार द्वारा इन मन्दिरों एवं धार्मिक संस्थाओं की मदद के लिए किसी भी तरह की व्यवस्था नहीं है। अब ऐसे में सवाल यही उठता है कि इन मन्दिरों एवं धार्मिक संस्थाओं की व्यवस्थाओं का संचालन किया तो किया कैसे जाए? अभी तक तो जैसे-तैसे काम चलता गया लेकिन अनलॉक के बावजूद भी सरकारी प्रतिबंधों के कारण जो समस्याएं इन मन्दिरों, संस्थानों के साथ हो रही हैं, उन पर कब किसकी नजर जाएगी? हिन्दू मन्दिर एवं धार्मिक संस्थान कभी भी सरकारी मदद पर आश्रित नहीं रहे हैं, उल्टे हिन्दू मन्दिरों एवं धार्मिक संस्थानों के द्वारा ही सरकार अपना खजाना भरती रही है। सवाल तो यह भी है कि इन मन्दिरों एवं संस्थानों पर आश्रित परिवारों के भरण-पोषण एवं जीविकोपार्जन का व्यवस्था कैसे हो? हालांकि यह वर्ग कभी भी सरकार से किसी भी मदद के लिए आशा लगाकर न तो भौंहें ताकता है तथा न ही कभी गुहार लगाता है।

सरकार विभिन्न क्षेत्र के विभिन्न वर्गों के लिए मदद एवं उनके रोजगार को गति देने के लिए बात करती हुई दिखती है, किन्तु एक ऐसा विशेष वर्ग जो सरकार द्वारा चिर उपेक्षित है तथा जिसकी गिनती न तो सरकार गिनती है तथा न ही राजनैतिक दलों या संगठनों को उसकी हालत से कोई मतलब होता है। वह तबका और कोई नहीं बल्कि पुरोहित वर्ग है जिसकी आजीविका धार्मिक अनुष्ठानों से ही चलती है। लॉकडाऊन एवं कोरोनाकाल के संक्रमण के चलते पुरोहित वर्ग आर्थिक तंगी से जूझ रहा है।

स्वयं को हिन्दूवादी एवं सांस्कृतिक विरासत की झण्डाबरदार मानने वाली सरकार लगातार धार्मिक आयोजनों, अनुष्ठानों, पर्वों के मनाने पर प्रतिबंध लगा रही है। जब देश में सारी व्यवस्थाएं बड़े ठसक एवं सरकार के अनुसार दिशा -निर्देशों का पालन करते हुए ही संचालित हो रही हैं, तब ऐसे में धार्मिक आयोजनों एवं मन्दिरों में श्रध्दालुओं के आने-जाने पर प्रतिबंध सरकार एवं प्रशासनिक प्रबंधन के किसी तुगलकी फरमान से कम नहीं हैं।

हिन्दुओं की आस्था एवं धार्मिक परंपराओं तथा पध्दतियों के साथ देश की सरकारें वैसे भी दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा ही व्यवहार करती हैं। कोरोनाकाल के दौरान हिन्दू त्यौहार रामनवमी, रक्षा बन्धन, कजलियां, जन्माष्टमी भी इसी तरह सरकारी प्रतिबंधों के साथ ही बीत गए।

धार्मिक स्थल सरकारी कैद में हैं, जहां श्रध्दालुओं के आने जाने एवं पूजन अर्चन पर प्रतिबंध हैं। आने वाले समय में सरकार ने गणेशोत्सव एवं नवदुर्गा उत्सव के लिए भी सार्वजनिक पूजन पंडालों एवं कार्यक्रमों पर बन्दिश के लिए सरकारी आदेश जारी कर दिए हैं।

सवाल यह है कि कोरोना के इस दौर में जब सभी व्यवस्थाएं चालू हैं तो सिर्फ मन्दिरों, धार्मिक आयोजनों एवं हिन्दुओं के त्यौहारों पर ही प्रतिबंध क्यों? जब लोगों के स्वविवेक एवं उनके ऊपर कोरोना से बचाव की जिम्मेदारी थोप दी गई है तो इसी तर्ज पर धार्मिक उपासना, त्यौहारों, अनुष्ठानों एवं श्रध्दालुओं की यात्राओं एवं पूजन से भी प्रतिबंध हटाकर लोगों के जिम्मे छोड़ देना चाहिए।

सरकार जब चाहे तब मजमा लगा सकती है। मंत्री विकास की गाथा गाने के लिए सोशल डिस्टेंसिन्ग एवं सुरक्षात्मक उपायों को जैसे चाहें तैसे धता बता सकते हैं, लेकिन मजाल क्या कि पूजन अर्चन के लिए देवोपासना की बात कोई भी कह दे। इससे माननीयों की नजर में तुरंत कोरोना का संकट बढ़ जाएगा, लेकिन माननीय गण चाहे पार्टी करें या अर्थव्यवस्था सम्हालने के लिए शराब की नदियां बहाने में जुट जाएं,भले भी सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां सरेआम उड़ाई जाती रही हों। लेकिन सरकार यदि किसी पर प्रतिबंध लगाएगी तो उसके आसान से टार्गेट हिन्दू मन्दिर, धार्मिक त्यौहार, अनुष्ठान इत्यादि हैं।

जब आप सब चीजों को संचालित करने के लिए छूट देकर अपने हाथ खड़े कर लेते हो तथा यह कहते हो कि कोरोना से बचाव एवं सुरक्षा, उपचार के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं सरकार ने तय कर ली हैं, इसलिए सबकुछ धड़ल्ले से चलता रहेगा। किसी भी क्षेत्र के संगठन आप पर दबाव बनाते हैं तो आप उन्हें टैक्स, बिजली बिल, राहत पैकेज की बात करते हुए उनके लिए छूट देते हैं लेकिन हिन्दू धार्मिक मन्दिरों, पर्वों, संस्थानों, अनुष्ठानों पर सरकार एवं प्रशासन के हाथ पांव फूलने लग जाते हैं। आखिर! इस तरह के दोहरे मापदंड एवं दोयम दर्जे का व्यवहार क्यों किया जाता है? जब सरकार की नजरों में सबकुछ ठीक-ठाक तरीके से संचालित हो सकता है तो धार्मिक स्थलों, पर्वों, अनुष्ठानों, श्रध्दालुओं के आने-जाने पर प्रतिबंध भी नहीं लगाना चाहिए।

हिन्दूवादी होने का दंभ भरने वाली पार्टी की सरकार के रहते हुए अगर धार्मिक कार्यों एवं आयोजनों पर प्रतिबंध न रहेगा तो आखिर कब रहेगा? विश्व हिन्दू परिषद बजरंगदल जैसे अनेकानेक राष्ट्रवादी एवं हिन्दुत्व की ध्वज पताका का वीणा उठाने वाले संगठन सरकार से इस पर न तो कोई प्रश्न कर रहे हैं न ही कोई बातचीत। विभिन्न धार्मिक संगठनों की चुप्पी भी समझ नहीं आती है कि धार्मिक परंपराओं एवं त्यौहारों के मनाने के लिए मुखालफत करने वालों को अचानक से सांप कैसे सूंघ गया है?

मानों ऐसा लग रहा है जैसे हिन्दू हित एवं धार्मिक आचरण की बात कहने की अब इनमें कोई सामर्थ्य ही न बची हो। क्योंकि इनके अनुसांगिक संगठन की सत्ता है तो इस पर क्यों बोलेंगे? यहीं अगर अभी तक कांग्रेस की सरकार होती तो यही हिन्दूवादी दल और यही भाजपा, सरकार के ऊपर दोषारोपण करने में जुट जाती कि कांग्रेस सरकार हिन्दू धर्म एवं धार्मिक उपासना के साथ सरकार खिलवाड़ कर रही है।

किन्तु सत्ता की पावर में बैठे रहने की अपनी अलग ही मौज होती है,फिर चाहे कुछ भी दांव में लगवा लीजिए किसी को रत्तीभर फर्क नहीं पड़ना है। खैर, इंतजार करिए सरकार के ऐसे ही अनेकानेक फरमानों का जिसमें हिन्दू धार्मिक त्यौहारों, धार्मिक संस्थानों, अनुष्ठानों इत्यादि पर लगातार सरकारी मुहर के साथ प्रतिबंधों का। बाकी तो सत्ता की मदान्धता में डूबे हुए राजनैतिक दलों एवं उनके कारिन्दों की नौटंकी तो चलती ही रहेगी।

नोट: इस लेख में व्‍यक्‍त व‍िचार लेखक की न‍िजी अभिव्‍यक्‍त‍ि है। वेबदुन‍िया का इससे कोई संबंध नहीं है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

श्री गणेश चतुर्थी 2020: कैसी गणपति मूर्ति लाएं घर में, कैसे खुश होंगे बप्पा