अमेरिकी धार्मिक रिपोर्ट भारत के लिए अस्वीकार्य

अवधेश कुमार
international religious freedom report 2023
अवधेश कुमार 

अमेरिका ने फिर अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी वार्षिक रिपोर्ट में भारत को अल्पसंख्यक विरोधी देश साबित करने की कोशिश की है। अमेरिका इसे विश्व भर के देशों में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति का तथ्यात्मक एवं प्रामाणिक दस्तावेज घोषित करता है। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता कार्यालय के विशेष राजदूत राशद हुसैन ने कहा कि रिपोर्ट विश्व भर के लगभग 200 देशों और क्षेत्रों में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति के बारे में एक तथ्य आधारित व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने इसे जारी करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य उन क्षेत्रों को उजागर करना है जहां धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता का दमन किया जा रहा है और अंततः प्रगति को ऐसे विश्व की ओर ले जाना है जहां धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता हर जगह हर किसी के लिए एक वास्तविकता हो। ब्लिंकन ने भारत का उल्लेख नहीं किया, पर रिपोर्ट में भारत का संदर्भ भयानक तस्वीरों से भरी है। राशद हुसैन के बयान में भारत का जिक्र है। उन्होंने कहा कि कई सरकारों ने अपनी सीमाओं के भीतर धार्मिक समुदाय के सदस्यों को खुले तौर पर निशाना बनाना जारी रखा है। इन सरकारों के संदर्भ में रिपोर्ट के महत्वपूर्ण निष्कर्षों का उल्लेख करते हुए उन्होंने भारत का नाम स्पष्ट तौर पर लिया। उसके बाद चीन और अफगानिस्तान समेत कई देशों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में विविध धार्मिक समुदाय से जुड़े कानून के हिमायती और धार्मिक नेताओं ने हरिद्वार शहर में मुस्लिमों के खिलाफ घोर नफरत भाषा का इस्तेमाल किया जो निंदनीय है।

इसमें 20 से अधिक ऐसी घटनाओं का जिक्र है जिससे आभास होता है कि भारत की वर्तमान सरकार के अंदर बहुसंख्यक समुदाय यानी हिंदू अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले कर रहा है, उनके भवनों को तोड़ रहा है , जला रहा है , उनके धार्मिक अधिकारों के पालन में बाधाएं खड़ी कर रहा है। उदाहरण के लिए कहा गया है कि इस वर्ष कई राज्यों में धार्मिक अल्पसंख्यक सदस्यों के खिलाफ कानूनी एजेंसी अधिकारियों द्वारा हिंसा की रिपोर्ट सामने आई। गुजरात में सादी वर्दी में पुलिस द्वारा अक्टूबर में एक त्यौहार के दौरान हिंदुओं को घायल करने के आरोपी चार मुस्लिम पुरुषों को सार्वजनिक रूप से पीटने और मध्यप्रदेश सरकार द्वारा अप्रैल में खरगोन में सांप्रदायिक हिंसा के बाद मुस्लिमों के घरों और दुकानों पर बुलडोजर चलाने की बात कही गई है। इसे मुस्लिमों पर अत्याचार के रूप में पेश किया गया है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा बुलडोजर से घर और संपत्तियां ध्वस्त करने का भी इसी रूप में उल्लेख है। कोई निष्पक्ष और विवेकशील व्यक्ति इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं कर सकता। भारत जैसे विविधताओं के देश में समुदायों के बीच कभी-कभार विवाद, टकराव आदि होते हैं, किंतु यह कहना कि केंद्र व राज्य सरकारों की भूमिका से इसे प्रोत्साहन या संरक्षण मिलता है गलत है। न्यायपालिका के हाथों ही ऐसे मामलों में अंतिम कानूनी फैसले का अधिकार है। अमेरिकी रिपोर्ट में भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका की भूमिका को नजरअंदाज किया गया है। इसमें तथ्यात्मक गलतियां भी हैं। उदाहरण के लिए हरिद्वार की जिस सभा का जिक्र है उसके कई लोगों पर न केवल मुकदमे हुए बल्कि उन्हें जेलों में भी डाला गया। भारत को पाकिस्तान, चीन,अफगानिस्तान आदि की श्रेणी में रखना साफ करता है कि रिपोर्ट तैयार करने वालों का उद्देश्य क्या हो सकता है।

हालांकि इसमें हैरत की कोई बात नहीं है। अमेरिका की धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी रिपोर्ट में न जाने कितने वर्ष ऐसी बातें अलग - अलग तरीके से कही गई हैं। पिछले 2 मई को ही अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग यानी यूएससीआईआरएफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत को उन देशों की सूची में शामिल किया जाए जो धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर चिंताजनक माने जाते हैं। यह अमेरिका की काली सूची यानी ब्लैक लिस्ट  है। इसमें चीन, रूस, सऊदी अरब, ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान आदि शामिल है। इस वर्ष निकारागुआ, वियतनाम और भारत को शामिल करने की सिफारिश की गई है। यह आयोग पिछले 4 वर्षों से ऐसी सिफारिश कर रहा है। हां,अमेरिकी विदेश विभाग इसे स्वीकार नहीं करता। कल्पना कर सकते हैं कि रिपोर्ट बनाने वालों की मानसिकता कैसी होगी? भारत को निकारागुआ ,अफगानिस्तान ,पाकिस्तान की श्रेणी में रखने वाले लोगों की सोच पर तरस आना चाहिए। किंतु दूसरी ओर यह बताता है कि भारत और यहां के हिंदू समाज को लेकर विश्व भर में कैसी मानसिकता बनाई गई है खासकर मोदी सरकार आने के बाद।

 वर्तमान धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी रिपोर्ट मीडिया एडवोकेसी रिसर्च ग्रुप्स के द्वारा तैयार किया गया है। इस समूह में कौन-कौन संस्थाएं और लोग शामिल हैं इनकी जानकारी सामने आनी चाहिए । राशद हुसैन पाकिस्तानी मूल के हैं। रिपोर्ट जारी होने के बाद वैश्विक स्तर पर एएफपी न्यूज़ एजेंसी द्वारा एक शीर्ष अमेरिकी अधिकारी से बातचीत प्रकाशित हुई जिनका नाम नहीं लिया गया। उसने कहा कि हम भारत में सिविल सोसायटी और संगठनों तथा अपने समर्थक पत्रकारों के साथ इसके लिए काम करना जारी रखेंगे जो हर दिन इनमें से कुछ दुर्व्यवहारों का दस्तावेजीकरण करने के लिए काम कर रहे हैं। इसका अर्थ क्या है?

हम यह कह सकते हैं कि हिंदुओं के संस्कार, चरित्र और  हिंदू धर्म को अपने रीलीजन के अनुसार देखने के कारण भी पश्चिमी एवं अन्य देशों में समस्याएं पैदा होती हैं। किंतु इस बयान से साफ है कि भारत के ही संगठन और पत्रकार इस तरह की रिपोर्ट देते हैं। तो जब हमारे यहां ही आपकसरकार और उससे जुड़े संगठनों को अल्पसंख्यकों का खलनायक साबित करेंगे और उसके अनुसार रिपोर्ट देंगे तो दुनिया की संस्थाएं उन्हें हाथों-हाथ लेंगी। कई बार भारत में इस सच को स्वीकार करने में बहुत लोग बचते हैं कि यहां के बारे में दुष्प्रचार में अपने ही लोगों की भूमिका सबसे ज्यादा होती है। इसके पहले भी अनेक घटनाएं आईं हैं। कोई छोटी सामान्य घटना देखते देखते-देखते दुनिया भर में सोशल मीडिया से लेकर  मुख्य मीडिया तक बड़ी घटना के रूप में प्रचारित हो जाती है और उसका उत्तर देना या खंडन करना कठिन हो जाता है।

रिपोर्ट में जिन घटनाओं का उल्लेख है वह हमारे यहां के लोगों और संगठनों ने ही तैयार किया और बनाया है। विडंबना देखिए कि इसमें संघ प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत के कई बयानों को अल्पसंख्यकों पर जुल्म के प्रमाण के रूप में पेश किया गया है। संघ प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत के कई बयानों को प्रमाण के रूप में पेश किया गया है। एक उदाहरण देखिए– 2021 में भागवत ने कहा था कि देश में हिंदुओं और मुसलमानों के साथ धर्म के आधार पर अलग-अलग व्यवहार नहीं करना चाहिए और गोकशी के लिए गैर हिंदुओं की हत्या हिंदुत्व के विरुद्ध है। जरा सोचिए, जो संगठन वर्तमान शासन वाली पार्टी का भी उद्गम है ,उसके प्रमुख अगर ऐसी बातें कर रहे हैं तो सरकार और संगठन को किस तरह हिंसा को प्रोत्साहित प्रायोजित और संरक्षित करने वाला माना जाए? डॉक्टर भागवत ने भी यह नहीं कहा कि भारत में ऐसी घटनाएं आम हैं। भारत में ऐसी रिपोर्ट का समर्थन करने वाले इस बात का ध्यान रखें कि जब आप भाजपा, संघ और उससे जुड़े संगठनों पर अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा करने के आरोप को प्रचारित करते हैं तो चूंकि ये हिंदुओं के संगठन हैं इसलिए इससे विश्व भर में हिंदुओं की छवि विकृत होती है। इस कारण अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा ऑस्ट्रेलिया सहित कई यूरोपीय देशों में हिंदू नफरती अपराध तथा हिंसा के शिकार हो रहे हैं।

अपनी उत्साहित प्रतिक्रिया देने से पहले इस पहलू पर अवश्य विचार करना चाहिए। दूसरे, अमेरिका के यहां अन्य धार्मिक समुदायों तथा अमेरिकी समाज के क्षेत्रों के साथ क्या कुछ हुआ हो रहा है इसे भी उजागर करना चाहिए। अनेक देशों के मुसलमानों को अमेरीकी भूमि पर उतरने के साथ हवाई अड्डों पर जिस तरह की सुरक्षा जांच का सामना करना पड़ता है उससे बड़ा भेदभाव कुछ हो नहीं सकता।  दूसरे धर्म के लोगों पर वहां नफरत से भरी हिंसा हो रही है।

हिंदुओं के बारे में एक रिपोर्ट कहता है कि पिछले कुछ समय से उनके विरुद्ध घृणा, दुष्प्रचार और हिंसा में 1000 गुना की वृद्धि हुई है। भारत सदियों से अनेक पंथो, संप्रदायों का देश है। विविधता और सहिष्णुता इसकी संस्कृति थी है और रहेगी। इसके लिए हमें किसी बाहरी से सीख लेने की आवश्यकता नहीं है। जो समस्याएं उभरतीं हैं उनको निपटाने में भारत के लोग और संस्थाएं सक्षम हैं। ये बातें मुखरता से अमेरिकी कानों तक पहुंचाना आवश्यक हो गया है।

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