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मौत का महीना और सरकारी मलहम

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अमित शर्मा

पत्रकारों और लेखकों के कलम तोड़ने के बाद स्वास्थ्य मंत्री जी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं, हमें मंत्री जी का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उन्होंने अपने अमूल्य समय से कुछ समय जनता के लिए निकाल कर यह बहुमूल्य ज्ञान उगला। मंत्री जी ने अपनी शहद भरी वाणी से इतनी सुगमता से ज्ञान उपलब्ध करवाया कि कोई भी हंसते-हंसते शहीद होना चाहेगा। स्वास्थ्य मंत्री ने मुख से ज्ञान की गंगा बहाई और हाथ से अपनी पीठ हौले-हौले से थपथपाते हुए यह भी कहा कि इस साल पिछले साल की तुलना में कम मौतें हुई है। मंत्री जी ने साबित कर दिया की लोकतंत्र में ज्यादा संख्याबल सरकार बचाता है और कम संख्याबल लाज। मासूम भले ही काल के गाल में समा गए हों लेकिन मंत्री जी अपनी सरकार की उपलब्धि पर फूले नहीं समा रहे हैं।
 
करुणानिधान मंत्री जी अगर बच्चों की अकाल मृत्यु से व्यथित होकर ज्ञान की "उल्टी" नहीं करते, तो यह "सीधी" बात जनता के दिमाग में नो-एंट्री का बोर्ड देखकर वापस लौट जाती है। स्वास्थ्य मंत्री पर जनता के काम का बोझ बहुत रहता है। सरकार के स्वास्थ्य के साथ-साथ जनता के स्वास्थ्य का ध्यान रखने का अतिरिक्त प्रभार भी मंत्री जी के मजबूत कंधों पर है, इसलिए उन्होंने बच्चों के मरने का महीना तो बता दिया लेकिन यह बताना भूल गए कि नेताओं की मति मारे जाने का कोई महीना तय नहीं है, वो लचीली होती है इसलिए किसी भी माह में मति, वीरगति को प्राप्त हो सकती है। हमें स्वास्थ्य मंत्री जी का आभारी होना चाहिए कि उन्होंने बच्चों की अकाल मृत्यु से शोकाकुल जनता को गीता सार समझाया कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। जनता को इस बात की खुशी और गर्व होना चाहिए की भले ही अभी तक गीता को राष्ट्रीय पुस्तक घोषित ना किया गया हो लेकिन अभी से ही हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधि गीता का अनुसरण कर रहे है।
 
सूबे की सरकार और स्वास्थ्य मंत्री जी जनहितैषी है और जनहितैषी होने का अधिकार उन्होंने पिछले चुनावों में प्रचंड बहुमत से हासिल किया है, अब अगले 5 सालों तक जनता का हित करने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता, जनता भी नहीं! चुनावों के समय पार्टी की प्रचंड आंधी चली थी, जिसमें सारे मुद्दे और विपक्ष उड़ गया था। लोकतंत्र में पक्ष और विपक्ष को कदम मिलाकर चलना चाहिए इसलिए शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री और बाकि मंत्री भी हवा में उड़ने लगे ताकि जमीनी स्थिति का हवाई सर्वेक्षण आसानी से किया जाए सके।
 
सरकार के उड़ने के शौक के चलते कुछ लोग अफवाहें भी उड़ा रहे हैं कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी के चलते हुई जिसका सामूहिक खंडन करने की आवश्यकता है क्योंकि मुख्यमंत्री और बाकि मंत्रिमंडल ने पिछले पर्यावरण दिवस पर सैकड़ों फोटो खिंचवाते हुए दर्जनों पेड़ लगवाए थे ताकि पेड़ क्षण प्रतिक्षण ऑक्सीजन छोड़ सकें और सरकार निश्चिंत होकर लंबी-लंबी छोड़ सकें। भ्रष्टाचार  के आरोप लगाकर सरकार का मनोबल तोड़ने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। सरकार अभी नई-नई है उसे लाल फीता काटने से फुर्सत मिले तो वो लालफीताशाही से भी लड़ लेगी।

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