तुर्की के राष्‍ट्रपति‍ ‘अर्दोआन’ 2020 में जो कर रहे हैं, वो ‘अतातुर्क कमाल पाशा’ के अतीत के ठीक उलट है

नवीन रांगियाल
अतातुर्क कमाल पाशा वो नाम था जिसने तुर्की की स्‍थापना की। इस स्‍थापना में सिर्फ किसी देश की शुरुआत ही नहीं थी, बल्‍क‍ि उसमें एक विचार था। एक ‘सेक्‍यूलर’ विचार जो पूरी दुनि‍या के लिए खुला हुआ था। 

उन्‍हें पता था कि इस विचार को किताबों में लिखने से ही कुछ नहीं होगा। इसलिए उन्‍होंने हर उस जगह को सेक्‍यूलर (धर्मनि‍परेक्षता) का प्रतीक बनाया जो इसकी राह में आड़े आ सकती थी। उन्‍होंने दुनि‍या की सबसे खूबसूरत इमारत हागि‍या सोफि‍या मस्‍जिद को म्‍यूजियम में तब्‍दील किया। जो शरुआत में चर्च थी। उन्‍होंने स्‍कूल, कॉलेज और मस्‍जि‍द तक को धर्मनि‍रपेक्षता का प्रतीक बनाया।

यह सब उन्‍होंने समझते-बूझते हुए किया था। यह बताने के लिए कि हम सेक्युलर हैं और दुनि‍या के शेष मुस्लिम देशों से अलग हैं। हम आधुनिक यूरोपियन की तरह हैं।

लेकिन 2020 में राष्‍ट्रपति‍ रेचेप तैय्यप अर्दोआन के नेतृत्‍व वाला तुर्की अतातुर्क कमाल पाशा के इस विचार के ठीक उलट है। अर्दोआन तुर्की के राष्‍ट्रवादी विचारक जिया गोकाई की भाषा को कॉपी-पेस्‍ट कर रहे हैं। वे अक्‍सर अपने भाषणों में कहते हैं,

'मस्जिदें हमारी छावनी हैं, गुंबदें हमारी रक्षा कवच, मीनारें हमारी तलवार और इस्लाम के अनुयायी हमारे सैनिक हैं' 

जि‍या गोकाई के इस बयान को दोहरा-दोहराकर अर्दोआन दुनिया को क्‍या दिखाना चाहते हैं यह बेहद आसानी से समझा जा सकता है।

इतना ही नहीं, अर्दोआन यह भी कई बार कह चुके हैं कि तुर्की ही एक ऐसा राष्‍ट्र है जो इस्‍लामिक दुनिया की कमान अपने हाथों में ले सकता है।

जाहिर है, अर्दोआन उस तुर्की को बदलना चाहते हैं जो अतातुर्क के विचार पर अब तक खड़ा था। अब इसे बदलने के लि‍ए हर संभव कोशिश की जा रही है। यह अभी-अभी शुरू नहीं हुआ है, दरअसल, अर्दोआन इसके लिए बहुत पहले से तैयारी कर रहे हैं। साल 2106 में इस्‍तांबुल में अपने एक भाषण में उन्‍होंने कहा था-

‘महिलाओं की यह ज़िम्मेदारी है कि वो तुर्की की आबादी को बढाए। हमें अपने वंशजों की संख्या में इजाफा करना बेहद जरुरी है। दुनिया आबादी कम करने और परिवार नियोजन की बात करती है, लेकिन हम मुस्लिम इसे स्‍वीकार नहीं कर सकते। अल्लाह और पैग़म्बर ने यही कहा था और हम लोग इसी रास्ते पर चलेंगे’

इस्‍लामिक कट्टरता हो, दुनि‍या के इस्‍लामिक देशों के खलीफा बनने की बात हो, मुस्‍ल‍िम जनसंख्‍या में इजाफे वाला बयान हो या फि‍र पाकिस्‍तान जैसे मुल्‍क से नजदीकी हो। इन सारे मोर्चों पर अर्दोआन अब खुलकर सामने है। हागि‍या सोफिया म्‍यूजियम को मस्‍जि‍द बनाकर उन्‍होंने अपने इस विचार की सार्वजनि‍क घोषणा ही की है।

अब तुर्की की आबोहवा में एक नई हलचल है। टर्किश टीवी ड्रामा 'दिरलिस एर्तरुल'। यह एक वेबसीरीज है, जिसे तुर्की के राष्‍ट्रवादी बेहद पसंद कर रहे हैं। इसे तुर्की के सरकारी चैनल में प्रसारित किया जा रहा है। इसके अब तक आए कुल 5 सीजन में मंगोलों, क्रुसेडर्स, ईसाई बैजनटाइन और सेल्‍जोक के बारे में दिखाया गया है। इसमें इस्‍लामिक राष्‍ट्रवाद की बू आती है। इस सीरीज की मदद से मुस्‍ल‍ि‍म धर्म को दुनिया में सबसे श्रेष्‍ठ बताने की कोशि‍श की गई है।

बताया गया है कि ईसाई और बैजनटाइन तुर्कों के दुश्‍मन हैं और लड़ाई में तुर्क कबीले के लोग उन्‍हें धड़ाधड़ मार-काट रहे हैं। लाशें बि‍छीं हुई हैं और तुर्क अपनी तलवारों की पूजा-अर्चना कर रहे हैं। यानी सारा तुर्क हिंसा की आराधना कर रहा है।

सबसे दि‍लचस्‍प और कमाल की बात यह है कि पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अपने देशवासियों से इस तुर्की वेब सीरीज को देखने की अपील कर रहे हैं। उन्‍होंने यह भी कहा कि‍ खुद उन्‍होंने यह सीरीज देखी है और हर पाकिस्‍तानी को यह देखना चाहिए।

यानी तुर्की और पाकिस्‍तान के लोग अब इस वेब सीरीज से सामुहिक प्रेरणा ले रहे हैं। जिसमें सिर्फ इस्‍लाम को सबसे श्रेष्‍ठ बताया दिखाया गया है।

तुर्की ने अपनी धर्मनि‍रपेक्षता का जामा उतार फेंका है, पाकि‍स्‍तान इस कातर ध्‍वनि की शुरुआत में तुर्की के पीछे खड़ा होकर कोरस गा रहा है। आने वाले दिनों में दुनिया किस तरफ करवट लेगी, इसकी प्रतीक्षा है।

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