एक वक्त में दुनिया के सामने तुर्की को मुस्लिम लोकतंत्र का आदर्श स्थापित करने के इरादे से म्यूजियम में बदली गई मस्जिद अब फिर से अपने पुराने रूप में नजर आने वाली है। दरअसल तुर्की के सुप्रीम कोर्ट ने इस्तांबुल के प्रसिद्ध हागिया सोफिया म्यूजियम को मस्जिद में बदलने का फैसला सुनाया है।
तुर्की को अब तक धर्मनिरपेक्ष महत्व के साथ देखा जाता रहा है। लेकिन इस फैसले के बाद यहां के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दुआन का रुख भी स्पष्ट हो गया है। अर्दुआन के इस कदम से अब यह साफ हो गया है कि देश वापस कट्टर इस्लाम की ओर बढ़ सकता है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस विश्व प्रसिद्ध इमारत का निर्माण एक चर्च के रूप में हुआ था। 1453 में जब इस शहर पर इस्लामी ऑटोमन साम्राज्य का कब्जा हुआ तो इस इमारत में तोड़फोड़ कर इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया गया। इसके बाद अतातुर्क ने 1934 में मस्जिद को म्यूजियम में बदल दिया क्योंकि वह धर्म की जगह पश्चिमी मूल्यों से प्रेरणा चाहते थे। तुर्की के इस्लामी और राष्ट्रवादी समूह लंबे समय से हागिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद में बदलने की मांग कर रहे थे। हालांकि, अर्दुआन का कहना है कि इसे सांस्कृतिक धरोहर के तौर पर रखा जाएगा और पर्यटकों के लिए यह खुली रहेगी।
तुर्की रिपब्लिक की नींव रखने वाले मुस्तफा कमाल अतातुर्क उर्फ मुस्तफा कमाल पाशा ने धर्म को खत्म करते हुए यूरोप से प्रेरणा लेना शुरू किया था। इस्लामिक कानून (शरिया) की जगह यूरोपीय सिविल कोड्स आ गए, संविधान में धर्मनिरपेक्षता को शामिल किया गया, समाज में महिला-पुरुष को एक करने की कोशिश की और एक मुस्लिम बहुल देश की शक्ल बदल दी। हालांकि, देश में डेढ़ दशक से ज्यादा सत्ता में रहने वाले राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दुआन ने धीरे-धीरे अतातुर्क के एक मुस्लिम लोकतंत्र के आदर्श देश को बदलना शुरू कर दिया।
अतातुर्क तुर्की की परंपरा और संस्कृति का इस तरह से प्रचार करते थे कि लोगों के मन में राष्टट्रवाद से ज्यादा वैश्विक मुस्लिम समुदाय की भावना जागे। वह कमालिज्म (Kemalism) के आदर्श पर धर्मनिरपेक्ष लोगों के साथ सरकार चलाते थे। उन्होंने जिस राजनीतिक और कानून व्यवस्था की नींव रखी थी, उसके आधार पर उन्होंने मुस्लिमों को कुछ भी ऐसा करने की आजादी नहीं दी जिससे धार्मिक जमीन, रेवेन्यू जैसे मुद्दों पर उनका असर हो सके। यहां तक कि इस्लाम का समर्थन करने वाले राजनेताओं पर नकेल कसने के लिए कानून भी बना डाले।
अर्दुआन के समर्थकों का कहना है कि अतातुर्क के समय में धर्मनिरपेक्षता का भी किसी धर्म की तरह ही जबरदस्ती पालन कराया जाता था। पारंपरिक परिधान की जगह भी पश्चिमी सूट-टाई ने ले ली। सरकारी दफ्तरों, अस्पतालों, यूनिवर्सिटी और स्कूलों में हिजाब पहनने की इजाजत नहीं थी। इसे धर्म का पालन करने वाले मुस्लिम किसी अत्याचार से कम नहीं मानते थे। इसलिए जब अर्दुआन की AK पार्टी सत्ता में आई तो अतातुर्क के नियमों को ढील दी गई जिसे लोगों ने राहत के तौर पर भी देखा। पार्टी ने दावा किया कि देश हमेशा धर्मनिरपेक्ष रहेगा भले ही व्यवस्था बदल जाए।
हालांकि, अर्दुआन ने हमेशा इस्लाम और मुस्लिमों के अधिकारों को धर्मनिरपेक्षता के ऊपर तरजीह दी। यहां तक कि उन्होंने देश की समस्याओं के लिए धर्मनिरपेक्षता को कई बार जिम्मेदार ठहराया है। माना जा रहा है कि हागिया सोफिया को भी मस्जिद में तब्दील करने का फैसला इसलिए किया गया है ताकि कन्जर्वेटिव समाज को खुश किया जा सके। उन्होंने यहां तक कहा कि हागिया को मस्जिद बनाए जाने से मुस्लिम 'सामान्य हालात' के युग में लौटे हैं। कुछ का यह भी कहना है कि वह देश की आर्थिक हालत से ध्यान हटाना चाहते हैं।
खास बात यह है कि पहले चर्च होने की वजह से हागिया को मुस्लिम और ईसाई धर्म का संगम माना जाता रहा है। यह दुनिया में एक मिसाल के तौर पर कायम रही है। अर्दुआन के इस कदम को सीधे-सीधे ईसाई समाज की नाकदरी के तौर पर देखा जा रहा है। पड़ोसी देश ग्रीस के साथ पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों के बीच इस फैसले ने आग में घी का काम किया है। ग्रीस के लिए हागिया का बड़ा महत्व रहा है। ग्रीस के प्रधानमंत्री Kyriakos Mitsotakis ने भी इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि तुर्की के इस कदम का असर यूरोपियन यूनियन, यूनेस्को और विश्व से संबंध पर पड़ेगा। हालांकि, अर्दुआन के फैसले से समझा जा सकता है कि वह आखिरकार अतातुर्क की छाया से बाहर निकलना तय कर चुके हैं। (मीडिया रिपोर्ट इनपुट्स के आधार पर)