जिंदगी और मौत दोनों का जीना दुश्वार कर दिया कोरोना ने। अभी तक मौत जिंदगी को डराती थी लेकिन पहली बार जब मौत खद डरी हुई है कि अगर वो अभी मर गई तो उसे कंधे कौन देगा...जनाजा उठेगा या नहीं, अर्थी निकलेगी या नहीं....शमशान में कहीं लकडि़यां तो खत्म नहीं हो गई...या कब्रिस्तान में अब कब्र के लिए जगह बची है भी या नहीं....और बस इसी वजह से मौत खुद डरी हुई है।
कितनी अजीब बात है कोरोना ने तो जिंदगी के मायने ही बदल दिए...न सिर्फ जिंदगी के सुकून को छिना बल्कि मौत को भी आराम नहीं दिया...जैसे जिंदगी और मौत दोनों कतार में लगी हुई है...लेकिन मोर्चे पर तैनात शूरवीरों ने जिस तरह मोर्चे को संभाला ऐसा तो कोई योद्धा ही कर सकता है। दूसरों की जिंदगी बचाने में उन्होंने खुद ही मौत को गले लगा लिया...शूरवीरों के प्रोत्साहन के लिए तालियां बजवाई, हेलीकॉप्टर से फूलों की बरसात की, तो कभी रात में मोमबत्ती जलाकर कोरोना वॉरियर्स को रियल हीरो अलग-अलग तरह से खूब हौसला अफजाई की गई....लेकिन अफसोस सरकार के पास उनके ही मौत के आंकड़े नहीं है।
यह जानकर आश्चर्य होता है जब पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ही इससे पलड़ा झाड़ लें। जब पूर्व स्वास्थ्य मंत्री रहे हर्षवर्धन से स्वास्थ्य कर्मियों की मौत का आंकड़ा पूछा गया तो उन्होंने कहा था कि, ''सरकार के पास कोरोना से मरने वाले स्वास्थ्य कर्मियों का कोई डेटा नहीं है। सरकार ने बनाया ही नहीं है।''
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने 16 जून 2021 के आसपास आंकड़े जारी किए गए थे। जिसमें बताया गया था करीब 730 डॉक्टर की मौत कोरोना से हुई है। और सबसे अधिक बिहार में। जी हां, करीब 115 डॉक्टर की मौत हुई। आलम यह रहा जिस कॉलेज में शिक्षक रहे वहीं पर ही कोई सुविधा नहीं रही। इतना बेसहारा कोई नहीं हो कभी। कोरोना के आगे इस इंसानियत का सिर झुका देने वाले पल फिर कभी लौटकर नहीं आए...
एक तरफ जहां डॉक्टर्स ने मोर्चा संभाल रखा था वहीं घरों से बाहर पुलिसकर्मी तैनात रहें...इतना कहकर अलविदा कह दिया, ''अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों...'' सदा के लिए अलविदा कह देने वाले पुलिसकर्मी साथियों के शहीद होने के बाद कोई दूसरा सिपाही बिना देर किए उस मोर्चे को संभाल लेता था...यहां जंग बमबारी, बंदूक, गोले की नहीं बल्कि जिंदगी और मौत के बीच की रही....जिसमें जिंदगी को बचाने का अथक प्रयास किया....हालांकि कोरोना की लड़ाई अभी भी खत्म नहीं हुई...न मालूम ये बेहया सफर अब और कितना तय करना बाकी है...
लेकिन आज जिस तरह से स्वास्थ्य कर्मी...पुलिसकर्मियों द्वारा ये जंग सबसे अधिक लड़ी जा रही है...यह किसी गर्व के पल से कम नहीं है...कोरोना से लड़ रहे लोगों की जिंदगियों पर कब पूर्ण-विराम लग जाता है कोई नहीं जानता। वहीं दूसरी ओर एक आंकड़ा इन योद्धाओं का भी है जो इलाज करते-करते काल के गाल में समा रहे हैं....
वे अलिवदा जरूर कह गए लेकिन गर्व हैं उन पर... अगर, मगर बस अब जल्द खत्म हो ये अंधा सफर....