हाल ही में लालू प्रसाद यादव के पुत्र (बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री) तेज प्रताप यादव का विवाह हुआ। इस अवसर पर पटना में राबड़ी देवी के सरकारी आवास के बाहर लगे पोस्टर में तेज प्रताप को भगवान शिव और दुल्हन ऐश्वर्या को पार्वती के रूप में प्रस्तुत किया गया।
यह देख कर मन में एक खेदजनक ग्लानि का भाव उभरा। जिस देश में सार्वजनिक शुचिता की परंपरा के पालन का इतिहास रहा हो,जहां राजनीति को किसी संकुचित आधार पर प्रस्थापित करना निंदनीय माना जाता रहा हो और जहां धर्म को आस्था का विषय समझा जाता रहा हो, वहां इस प्रकार की घटिया सोच का परिचय देना अत्यंत अशोभनीय है।
हिंदू धर्म ग्रंथों में सृष्टि की उत्पत्ति,स्थिति एवं संहार के अधिपति भगवान शिव माने गए हैं। वह अनादि सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं।
त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की महत्वपूर्ण अवधारणा में वे तीसरे देव हैं। माता पार्वती उनकी पत्नी हैं। वे आदिशक्ति हैं और विभिन्न देवी रूप उनके अवतार माने गए हैं।
हिंदुओं के लिए पूज्यनीय ऐसे शिव पार्वती के स्वरुप में व्यक्ति विशेष का प्रदर्शन सर्वथा अनुचित है। इस बात को कोई संकुचित साम्प्रदायिक रंग देना मेरा उद्देश्य कदापि नहीं है। बस,स्वयं को ईश्वर के समकक्ष बताने पर आपत्ति है।
तेजप्रताप राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं। स्वयं भी कुछ समय पूर्व राजनेता बने हैं। अभी उन्हें इस क्षेत्र में काफी लंबा सफर तय करना है। उन्हें राजनीति में अपनी स्वच्छ छवि बनाने पर ध्यान देना चाहिए।
दुर्भाग्य से उनके पिता श्री लालू प्रसाद यादव प्रतिष्ठित पदों पर रहने के बावज़ूद अपनी सार्वजनिक छवि को बेदाग नहीं रख पाए। अभी भी वे चारा घोटाले के आरोप में जेल में बंद हैं और पहले भी ऐसे अनेक संदर्भों में जेल जा चुके हैं। अपने दीर्घकालीन राजनीतिक कैरियर में उन्होंने एक भी ऐसा महान जनहितकारी कर्म नहीं किया,जिसका गर्व से उल्लेख किया जा सके।
तेज प्रताप की माता जी राबड़ी देवी भी बिहार की मुख्यमंत्री रहीं,लेकिन उनके हाथों भी ऐसा कोई शुभ कार्य नहीं हुआ बल्कि वे तो कठपुतली की भांति रहीं क्योंकि असली सत्ता लालू प्रसाद जी ही संचालित करते थे। बिहार के सुधार और विकास में किसी भी प्रकार का सराहनीय योगदान लालू प्रसाद जी ने नहीं दिया। हाँ,अपने परिवार का विकास उन्होंने भरपूर किया। अपनी शक्ति और अधिकारों का अधिकतम उपयोग निजी लाभों को लेने में किया। इसलिए वे एक सीमित समूह के लोकप्रिय नेता होंगे,लेकिन देश के सर्वप्रिय नेता नहीं हैं।
तेजप्रताप जी को यदि वास्तव में ऐसा सर्वप्रिय नेता बनना है, तो सर्वप्रथम अपने पिता की राह पर चलना छोड़ना होगा। उन्हें अपनी दृष्टि विशाल और उदार करना होगी। परिवार की स्वार्थपूर्ण संकुचितता को त्यागकर जन-जन के कल्याणार्थ कर्म करना होगा।
मात्र पोस्टर में शिव बन जाने से कुछ हासिल नहीं होगा। वस्तुतः शिव होने के लिए विषपान भी करना पड़ता है और पार्वती होने के लिए तपस्या करनी होती है।
क्या तेज प्रताप 'जनता के नेता' बनने की कंटकाकीर्ण राह पर चलकर उस में आने वाली अनेक बाधाओं रूपी विष को पीने के लिए तैयार हैं और ऐश्वर्या लोक कल्याण को साधने के दीर्घकालीन संघर्ष का तप करने हेतु तत्पर हैं ?
यदि हां, तो जब वह ऐसा कर गुज़रेंगे,तब जनता स्वयं उन्हें भगवान का दर्जा देगी। लेकिन उसके पहले जो हैं, वही रहें और उसमें बेहतरी के प्रयास करें।
आत्मश्लाघा के स्थान पर अपने कर्मों पर ध्यान दें। अंततः कर्म ही तो समाज में स्थान तय करते हैं कि आप मनुष्य से कमतर रहे या बेहतर मानव बने अथवा मानव से ऊपर भगवान हो गए। लेकिन वह समय आने में अभी देर है। तब तक के लिए फिलहाल भगवान को तो बख़्श दें।