नीरज का जाना यानी गीत का गुमसुम होना, कविता की पलकों का नम हो जाना और मंचों का दीपक बुझ जाना है। नीरज यानी उस जमाने का सेलिब्रिटी कवि, नीरज यानी साहित्य की शीतलधारा को जिसने बॉलीवुड की लहरों में मिलाने का शुभ कार्य किया। साहित्य की धारा फिल्मों में पहले भी शामिल थी लेकिन नीरज ने जिस कोमलता और रोमांस को फूलों के शबाब की तरह घोला, दिल की कलम से दर्शकों को जो इतनी नाजुक पाती लिखी वह कई कई सदियों तक अविस्मरणीय रहेगी।
वे स्वयं डूब कर कविताएं लिखते थे और सुनने वालों और पढ़ने वालों को डुबो देने की क्षमता रखते थे। जब नीरज मंच पर होते थे तब उनकी नशीली कविता और लरजती आवाज श्रोता वर्ग को दीवाना बना देती थी।
जब नीरज ने गुनगुनाया ‘’अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई, मेरा घर छोड़ कर सारे शहर में बरसात हुई।‘’ सुनने वाले सचमुच सावन की तरह झूम उठते हैं। 2008 में नीरज के सुहाने गीतों का कारवां लेकर 'पेंगुईन बुक्स इंडिया प्रकाशन' आए ...मुझे याद है तब वेबदुनिया में वह मेरा पहला दिन था और मुझे उसकी समीक्षा का दायित्व संपादक जयदीप कर्णिक ने सौंपा था।
उस समय नीरज का समग्र रचना संसार वेबदुनिया पर सजा था, आज भी उनकी सारी रचनाएं वेबदुनिया पर है...साहित्य संपादक होने के नाते मुझे उनकी सारी कविताओं को फिर से पूरा पढ़कर देखना था और तसल्ली करनी थी कि कहीं कोई गलती तो नहीं जा रही।
इससे पहले 'स्वप्न झरे फूल से मीत चुभे शूल से' कविता और 'फूलों के रंग से दिल की कलम से' गीत के माध्यम से ही मैं नीरज को जानती थी। पुस्तक और वेबदुनिया के माध्यम से जैसे-जैसे उनकी कविताएं मेरे सामने से गुजरती गई मैं यह जानने को उत्सुक होती गई कि उनके फिल्मों में कौन-कौन से गीत हैं.... और मेरा सौभाग्य यह रहा कि मुझे जल्दी ही पता चला कि बड़े मामाजी स्व. रश्मिकांत व्यास जी के पास वे अक्सर गुप्त यात्रा पर आते रहते हैं।
भारती भवन में एक बहुत लंबी अनौपचारिक बातचीत को सुनने का अवसर मिला। एक से एक गीत, फिल्म और निर्देशकों की यादों का पिटारा खोल कर नीरज हमारे सामने थे और हमारा पूरा परिवार उन्हें सुन रहा था।
वास्तव में वे ऐसे गीतकार थे जिनके गीतों की आध्यात्मिक अनुभूति परत दर परत छुपे उस मन को सहलाती है जो कहीं बहुत भीतर बैठा हैं। बाहर आने से डरता है। नीरज मूलत: प्रेम और दर्द के कवि थे। प्रेम ऐसा जो पवित्र और शाश्वत है और दर्द ऐसा जो अव्यक्त है।
''प्रेम को न दान दो : न दो दया, प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है।'' नीरज के गहरे गीतों में जन-जन के कवि कबीर के दर्शन होते हैं। वहीं वे अपनी पूरी ऊर्जा के साथ युवा वर्ग में भी चिंतन स्फुरित करते दिखाई देते हैं।
छिप छिप अश्रु बहाने वालों मोती व्यर्थ लूटाने वालों कुछ सपनों के मर जाने से-जीवन नहीं मरा करता है।
बकौल नीरज -विश्व चाहे या न चाहे लोग समझे या न समझे, आ गए हैं हम यहां तो गीत गाकर ही उठेंगे... और वह दिन भी आया जब नीरज अपने जीवन के श्रेष्ठतम गीतों को अपनी पूरी जिद के साथ गाकर ही उठे... वे उठे तो जरूर पर दिलों में जो बैठ गए हैं वहां से ना हम उठने देंगे ना वे उठ कर जाएंगे.... अलविदा नीरज...