संजय पटेल/ वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी
अभयजी के संपर्क में अस्सी के दशक की शुरुआत में आया। ज़रिया बना लता अलंकरण समारोह जिसके संचालन के लिए उन्होंने मुझ पर विश्वास किया था। बाद में नईदुनिया की वर्षगाँठ प्रसंग (6 जून) में जब अभिनेत्री शबाना आज़मी और पूर्व मुख्यमत्री सुन्दरलाल पटवा ख़ास मेहमान बनकर आए तब मैंने पहली बार नईदुनिया के किसी कार्यक्रम का संचालन किया था। यह सिलसिला कई बरसों तक जारी रहा। दूर से देखें तो उनसे एक अव्यक्त ख़ौफ़ रहता था। लगता था वे बहुत मितभाषी हैं लेकिन जब वे आपके हुनर से वाक़िफ़ हो जाते तो लगता कि उनसे बेहतर बतियाने वाला व्यक्ति शहर में दूसरा नहीं हो सकता। आप कोई भी विषय ले लीजिए, वे ज्ञान के समंदर नज़र आते थे। यदि वे किसी विषय के बारे में नहीं जानते तो उसके विशेषज्ञ पर विश्वास करते या ख़ुद शोध से उसकी थाह पाकर ही मानते।
अस्सी से दो हज़ार तक का समय उनकी प्रतिष्ठा, सफलता और सम्मान का शिखर काल था। पत्रकारिता की पूरी एक पौध को चुनने, प्रशिक्षित करने, अवसर देने और अपने जीवन में सफल होने का करिश्माई काम उन्होंने किया। नेतृत्वकर्ता भी आख़िर मनुष्य ही होता है अत: नईदुनिया प्रबंधन बदलने के बाद या किसी कर्मचारी के नईदुनिया संस्थान से विलग होने के बाद अभय जी की कार्यप्रणाली और शख़्सियत पर बातों के कई प्रिय-अप्रिय सिलसिले फ़िज़ाओं में गूँजते थे लेकिन यह निर्विवाद सत्य है कि किसी रिसाले, शहर और उसके विकास के बारे में चिंता करने वाला उन शख़्स मिलना अब नामुमकिन ही है।
एक बार किसी कटु प्रसंग को लेकर मेरा मन विचलित था लेकिन अभय जी शांत और निरपेक्ष भाव से मेरे सामने मौजूद थे। मैंने उसने पूछ ही लिया कि इस विषय पर आप इतने शांत कैसे हैं? उनका उत्तर था मैं ऐसे कारोबार में जिसमें सुबह उठने से लेकर रात को बिस्तर पर लौटने तक कटुताएँ ही कटुताएँ हैं, ईर्ष्या है, ग्लानि है, अहंकार हैं। मैने अभ्यासपूर्वक इन बातों से दूरी बनाई है। ये तो नहीं कहता कि मैं इनसे सर्वथा परे हूँ लेकिन कोशिश करता हूँ। इन ऐसी बातों का जितना स्मरण करूँ, अपने जीवनक्रम में व्यवधान पाता हूँ।
होशंगाबाद में आई भीषण बाढ़ से सैकड़ों लोगों को बचाने वाली नाविका वीरबाला सरस्वती देवी के सम्मान सबसे पहला आयोजन था जिसमें अभय जी का संबोधन और वक्तृत्व शैली चर्चा का विषय बनी थी। उसके बाद तो कई ऐसे अवसर आए जब उन्हें सुनना इसलिए विस्मय देता था कि तमाम व्यस्तताओं के बाद वे छोटे-बड़े फ़र्क़ किए बिना कार्यक्रमों में शामिल होते थे। देश के शीर्षस्थ राजनेताओं, कलाकारों,प्रशासकों, खिलाड़ियों और पत्रकारों से जीवंत संपर्क, एक अख़बार मालिक, राष्ट्रीय स्तर के संगठनों में पदाधिकारी और अलंकरणों-सम्मानों के बाद भी अहंकार उन्हें नहीं छूता था। उनकी सादगी, दूरदृष्टि, लीडरशीप और जीवंतता में निर्भयता का सदगुण भी शामिल था। अभयजी पर स्मृति शेष लिख तो दिया है लेकिन कई ऐसी स्मृतियाँ हैं जिनका ज़िक्र हमेशा शेष रहेगा।