दुनिया बच्चों से किया अपना वादा निभाए वरना ये दिवस रस्म अदायगी भर रह जाएंगे : सुमेधा कैलाश

वेबदुनिया की फीचर संपादक स्मृति आदित्य की सुमेधा कैलाश से बातचीत

स्मृति आदित्य
श्रीमती सुमेधा कैलाश एक जानी-मानी बाल अधिकार कार्यकर्ता और राजस्थान के विराटनर स्थित बच्चों के दीर्घकालिक पुनर्वास केंद्र बाल आश्रम की सह-संस्थापिका हैं।बच्चों के अधिकारों के लिए संघर्षरत नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी की यात्रा की सहयात्री के रूप में उनकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।बाल श्रम विरोधी दिवस के अवसर पर सुमेधा कैलाश से हुई वेबदुनिया की बातचीत का संक्षिप्त अंशः    
 
प्रश्न- 12 जून बाल श्रम विरोधी दिवस है. बच्चों को बाल श्रम से निकालने की दिशा में आपके और कैलाश जी के किए गए प्रयासों से सब परिचित हैं। इस दिवस पर समाज को आप क्या संदेश देगी?
 
सुमेधा कैलाशः बचपन बचाओ आंदोलन ने 1998 में बाल श्रम के विरोध 80 हजार किलोमीटर लंबी एक विश्वयात्रा की थी। 103 देशों से गुजरकर वह यात्रा जिनेवा स्थित आईएलओ के दफ्तर में संपन्न हुई थी। तब हमने मांग की थी कि बाल श्रम मुक्त दुनिया बनाने के संकल्प के साथ एक ऐसा दिवस भी होना चाहिए।चार साल बाद 2002 से 12 जून को बाल श्रम विरोधी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।यह वास्तव में पूरी दुनिया को वह वादा याद दिलाने का दिवस है जो उन्होंने बच्चों से किया है कि वे उनके हाथों से कुदाल-फावड़े और दूसरे औजार छीनकर उनमें किताबें थमाएंगे, उन्हें उनका बचपन लौटाएंगे।
 
मैं तो यही कहूंगी कि सरकारें अपने भीतर झांकें और खुद से पूछें कि क्या बच्चे सच में कुछ ऐसा मांग रहे हैं जिसके वे हकदार नहीं हैं और क्या उनकी मांग पूरी करना सच में इतना मुश्किल है! जवाब मिलेगा-नहीं. फर्क बस नीयत का है। जिस दिन सरकारें और समाज ठान लें, बाल मजदूरी बंद हो जाएगी। मैं सरकारों से फिर से अनुरोध करूंगी कि वे बच्चों के प्रति इसलिए निर्दयी न हों क्योंकि वे वोटर नहीं हैं। समाज से भी कहूंगी कि कच्ची उम्र में जो हाड़-तोड़ मेहनत कर रहे हैं वे हमारे ही बच्चे हैं।उनके बारे में सोचें।समाज और सरकारों का दिल बच्चों के लिए नहीं पिघला तो फिर हम अगले 100-200 साल तक केवल बाल श्रम विरोधी दिवस मनाने की रस्मअदायगी करते रह जाएंगे।
प्रश्न-2. वर्तमान में देश की क्या स्थिति है, क्या किया जाना चाहिए और इसका समाधान क्या हो सकता है?
 
सुमेधा कैलाशः 1998 की विश्वयात्रा के बाद एक माहौल बना था।पहले के दो दशकों में बाल मजदूरों की संख्या में लगभग 10 करोड़ की कमी आई थी और वह उत्साहजनक थी।लेकिन कोरोना काल में दुनिया ने अपनी पिछली बढ़त गंवा दी। मजदूरी या यौन शोषण के लिए बच्चों की बेतहाशा ट्रैफिकिंग की खबरें कोरोना के दौरान आने लगीं। ऐसा कोई दिन नहीं बीतता जब कोई परिवार हमारे संगठन की हेल्पलाइन पर अपने बच्चों को छुड़ाने के लिए मदद की गुहार न लगाता हो। इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि हालात कितने भयावह हैं।
 
बच्चों का शोषण रोकने के कानून दुनियाभर में बने हैं, हमारे देश में भी है. लेकिन आपको घरों में काम करते, किसी ढाबे पर काम करते, कालीन, कपड़े की फैक्ट्रियों से लेकर पटाखे और माचिस की फैक्ट्रियों जैसी खतरनाक जगहों पर, बड़ी आसानी से बाल मजदूर दिख जाएंगे। कानून तो अपनी जगह है, वह तो जो काम करेगा सो करेगा लेकिन समाज क्या कर रहा है? क्या उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं है? जिस दिन हम उन ढाबों या होटलों में खाना बंद कर देंगे जहां बच्चों को काम पर लगाया गया हो या फिर ऐसे घरों की मेहमाननवाजी स्वीकारना बंद कर देंगे जहां घरेलू नौकर के रूप में बच्चे काम करते हों, फर्क दिखने लगेगा।जिस दिन समाज यह कहने लगेगा कि वह जैसा बर्ताव अपने बच्चों से बर्दाश्त नहीं करता वैसा बर्ताव वह किसी और के बच्चों के साथ न तो करेगा और न होने देगा, बाल मजदूरी का अभिशाप पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।    
प्रश्न-3. बाल श्रम के कारण कौन से हैं?
 
सुमेधा कैलाशः सबसे बड़ा कारण है गरीबी और अशिक्षा। बच्चों को बेचने वाले ट्रैफिकर्स गरीब परिवारों को यह कहकर बहका लेते हैं कि बच्चा दो पैसे कमाकर लाएगा तो परिवार की हालत सुधरेगी।इसी लालच में लोग अपने बच्चों को ट्रैफिकर्स के हवाले कर देते हैं।उसके बाद बच्चे के साथ कैसा अमानवीय अत्याचार होता है न तो उन्हें इसकी जानकारी होती है न अंदाजा. यह तो अपने बच्चों को एक तरह से किसी कसाई के हाथों सौंपने जैसा है।जब ट्रैफिकर किसी माता-पिता को उसके बच्चे के लिए काम का ऑफर लेकर आता है तभी उसे दो टूक कहना चाहिए कि उसके बदले मुझे काम दिला दो।लेकिन ऐसा होता नहीं। उन्हें लगता है कि अगर काम करेगा तो बच्चे का खुद का पेट भी भरेगा और परिवार को भी थोड़ी मदद हो जाएगी।अगर वे थोड़े भी शिक्षित या जागरूक होते तो उन्हें पता होता कि आजकल स्कूलों में बच्चों के लिए खाना, किताबें, स्कूल ड्रेस वगैरह सब मुफ्त मिलने लगे हैं।जो बच्चे उन्हें बोझ लग रहे हैं वे थोड़े पढ़-लिख जाएं तो बड़े होकर परिवार के लिए बेहतर कमाई कर सकते हैं।   
 प्रश्न 4. आप कैसे काम करती हैं? क्या चुनौतियां आती हैं?
 
सुमेधा कैलाशः हमारे संगठन का काम कई स्तर का है। सबसे पहले तो हमारा जोर रहता है कि ग्रामीण गरीब आबादी, जहां से सबसे ज्यादा बच्चे बाल श्रम या दूसरे तरह के शोषण में फंसते हैं, को जागरूक किया जाए कि वे बच्चों को बोझ न समझें, उन्हें पढ़ाएं-लिखाएं। हम उन्हें तमाम सरकारी योजनाओं से जोड़ने की कोशिश करते हैं ताकि उनकी हालत सुधरे और बच्चों को अपने से अलग करने का ख्याल भी न आए।बच्चे स्कूलों में बने रहें, पढ़ाई बीच में न छोड़ें, इसके लिए भी काम किया जाता है. यह सब काम हम बाल मित्र ग्रामों और बाल मित्र मंडलों के माध्यम से करते हैं।
 
इसके अलावा हम उन बच्चों को मुक्त कराने के प्रयास करते हैं जो बाल मजदूरी या देह व्यापार कराने वाले गिरोहों में फंस गए हैं।प्रशासन की मदद से हम उन्हें मुक्त कराते हैं।प्रताड़ना के शिकार इन बच्चों को शारीरिक के साथ-साथ मानसिक देखभाल की भी जरूरत होती है।हम इसकी व्यवस्था करते हैं।उनके परिवारों को खोजकर उनके पास पहुंचा दिया जाता है। कई बार परिवारों की जानकारी नहीं मिल पाती या फिर परिवार परिवार बच्चों को साथ रखने से हाथ खड़े कर देते हैं तो ऐसे बच्चों को नया जीवन देने के लिए हमने राजस्थान के जयपुर जिले के विराटनगर में एक पूर्णकालिक पुनर्वास केंद्र- बाल आश्रम भी बनाया है।
 
चुनौतियां तो बहुत अलग-अलग तरह की आती हैं।बच्चों को छुड़ाने की कोशिशों में हमारी टीम पर जानलेवा हमले हुए हैं। एक बार तो कैलाश जी मरते-मरते बचे।हमारे कई साथियों ने जान गंवाई भी है और कई बुरी तरह घायल हुए हैं।छुड़ाए गए बच्चे कई बार बच्चे इतने डरे होते हैं कि वे कुछ बोल ही नहीं पाते या फिर उन्हें कुछ याद ही नहीं रहता कि उन्हें कहां से चुराया गया था।कई बच्चे नशे के शिकार होते हैं, उनको संभालना एक अलग तरह की चुनौती होती है। उनके परिवारों तक पहुंचाना और फिर नजर रखना कि वे दोबारा ट्रैफिकिंग के शिकार न हो जाएं।जिनके घर-परिवार का कोई सुराग नहीं मिलता उनकी व्यवस्था करना, यह सब बहुत चुनौतीपूर्ण है।
प्रश्न-5. अब तक लगभग कितने बच्चे बालश्रम से मुक्त कराए जा चुके हैं?
 
सुमेधा कैलाशः सरकार और दूसरे संगठन भी अपने-अपने तरीके से इसमें योगदान दे रहे हैं लेकिन अगर मैं हमारे संगठन की बात करूं तो बचपन बचाओ आंदोलन ने सीधी छापामार कार्रवाई के जरिए पिछले चार दशकों में एक लाख से अधिक बच्चों को बाल मजदूरी और दूसरे प्रकार से शोषणों से मुक्त कराया है और यह संख्या प्रतिदिन बढ़ रही है।
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