एससी एसटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ हुए भारत बंद और प्रदर्शनों के रूप में विरोध की बानगी देखने के बाद अब भाजपा सरकार अब संभलती नजर आ रही है। दलितों के पक्ष में इस अध्यादेश को लाने के बाद सवर्णों के मुखर होते स्वर शायद भाजपा के कानों में अब गूंजने लगे हैं, और यही कारण है कि अब उसे यह चिंता सताने लगी है कि कहीं एससी-एसटी वर्ग को साधने के चलते उसके हाथ से एक बड़ा वोटबैंक न निकल जाए।
अध्यादेश लाने के बाद पार्टी के पास कदम वापस खींचने का तो कोई विकल्प नहीं है, लेकिन हां वह फूक-फूक कर कदम रखने में जरूर विश्वास कर रही है। राजनीतिक गलियारों से आ रही खबरें बता रही है कि भाजपा अब कोई बीच का रास्ता खोजने में जुट गई है।
मध्यप्रदेश में भारत बंद के व्यापक असर ने सरकार की चिंता को और बढ़ा दिया है क्योंकि इसी साल के अंत में यहां चुनाव होने हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए अध्यादेश लाने के बावजूद एससीएसटी वोट बैंक तो बड़ा सवाल है ही, अब सवर्णों को साधना भी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती बन गया है।
दिल्ली में हुई बीजेपी मुख्यमंत्रियों की बैठक में इस मुद्दे पर विचार किया गया और इससे निपटने के लिए अब खास तौर से मध्यप्रदेश में सवर्ण नेताओं की मदद ली जा रही है। एक तरफ बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि सवर्ण नेता अपने समर्थकों को समझाएं तो दूसरी ओर केंद्र सरकार इस मामले में एक और बड़ा कदम उठाने की तैयारी में है।
सूत्रों के हवाले से जो खबर आ रही है उसके अनुसार गृह मंत्रालय राज्यों को सलाह दे सकता है कि इस कानून का उपयोग सोच-समझकर और बहुत ज्यादा जरूरी होने पर ही किया जाए और इस कानून के इस्तेमाल में विशेष सावधानी बरती जाए।
अब सरकार ये बताने का भी प्रयास कर रही है कि वह इस कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए भी उतनी ही गंभीर है जितनी दलितों के अधिकार के लिए।