जिस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, वह दिन ही मकर संक्रांति कहलाती है। मकर संक्रांति से उत्तरायन आरंभ होता है। उत्तरायन के छः माह उत्तम होते हैं।
मकर संक्रांति से रथ सप्तमी तक का काल पर्वकाल होता है। इस पर्वकाल में दान एवं पुण्य के कर्म विशेष फलदायी होते हैं। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक संक्रांति में तीर्थ स्नान पुण्यकाल होता है। मकर संक्रांति के काल में तीर्थ स्नान का विशेष महत्व है।
गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी नदियों के तीर पर बसे क्षेत्रों में स्नान करने से महापुण्य का लाभ मिलता है। मकर संक्रांति के समय तीर्थ क्षेत्रों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती हैं। ऐसा माना जाता है कि संक्रांति देवी जिसे स्वीकार करती हैं, उसके पापों का नाश होता है।
इस दिन तिल का तेल व उबटन, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल मिश्रित पानी पीना, तिल होम, तिल का दान, इन पद्धतियों से तिल का उपयोग करने वालों के सर्व पाप नष्ट होते हैं।
संक्रांति के पर्व काल में दांत मांजना, कठोर बोलना, वृक्ष, घास काटना, काम, तथा विषय सेवन जैसे कृत्य नहीं करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन नए बर्तन, वस्त्र, अन्न, तिल, तिल पात्र, गुड़, गाय, घोड़ा, सुवर्ण व भूमि का यथाशक्ति दान अवश्य करना चाहिए।
खास तौर पर इस दिन सुहागिनें दान करती हैं, उसके उपरांत तिल-गुड़ देती हैं। इस दिन 13 या 14 महिलाओं को हल्दी-कुंमकुम लगाकर चीजें भेंट करने का बहुत महत्व है।