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साबरमती के संत महात्मा गांधी के आश्रम का इतिहास

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अनिरुद्ध जोशी

, मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019 (17:41 IST)
मोहनदास करमचंद महात्मा गांधी के आश्रम का नाम है साबरबती आश्रम। आओ जानते हैं इसका परिचय और इतिहास।
 
 
आश्रम परिचय : अहमदाबाद की साबरमती नदी के किनारे लगभ 36 एकड़ में फैले इस आश्रम को देखने दुनियाभर के लोग आते हैं। साबरमती आश्रम 365 दिन खुला रहता है, जहां लोग सुबह 8:30 बजे से शाम 7:30 बजे के बीच कभी भी जा सकते हैं। इस आश्रम के आसपास तीन महत्वपूर्ण स्थल है। एक ओर विशाल पवित्र साबरमती नदी, दूसरी ओर श्मशान घाट और तीसरी ओर जेल है।

 
हृदय कुंज- इस आश्रम का मुख्य स्थान हृदय कुंज हैं जहां गांधी जी अपना समय बिताया करते थे। यहां गांधी जी की प्रयोग की जाने वस्तुओं को आज भी सहेज कर रखा गया है।
 
मगन निवास- साबरमती आश्रम की देखभाल करने वाले मगनलाल गांधी का यह निवास स्थान था जो बापू के कजिन थे।
 
विनोबा कुटीर/मीरा कुटीर- आचार्य विनोबा भावे गांधीजी के राष्ट्रीय शिक्षक और आध्यात्मिक उत्तराधिकारी कहलाते हैं। वे इसी स्थान पर बैठकर गांधीजी के साथ चर्चा किया करते थे। इस कुटीर को मीरा कुटीर इसलिए कहा जाता है क्योंकि गांधी से प्रभावित एक ब्रिटिश महिला मीराबेन ने इसी स्थान पर अपना समय बिताया था।
 
नंदिनी- यह आश्रम का वह स्थान है जहां पर अतिथियों को रुकवाया जाता था। इसे गेस्ट हाउस कहा जा सकता है।
 
उपासना मंदिर- आश्रम में प्रर्थना के लिए गांधीजी ने मुख्य रूप से मगन निवास एवं हृदय कुंज के बीच खुले आसमान के नीचे उपासना मंदिर नाम का स्थान बनवाया था। यहीं प्रार्थना के बाद गांधी जी बैठकर उपदेश भी दिया करते थे।
 
गांधी संग्रहालय- गांधी संग्रहालय को पांच इकाइयां में बांटा गया है, यहां एक पुस्तकालय, बुक स्टोर, दो फोटो गैलरी और एक सभागृह है। संग्रहालय का क्षेत्र 24,000 वर्ग फुट का है जिसमें 20 ‘x 20’ के 54 ब्लॉक हैं।
 
  
साबरमती आश्रम का इतिहास:-
जब महात्मा गांधीजी अफ्रीका से भारत वापस आ गए तो उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ज्वाइन की और वे अपनी पत्नी के साथ गुजरात में रहना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने अपने मित्र जीवनलाल देसाई के कहने पर उनके कोचरब बंगला में 25 मई 1915 सत्याग्रह आश्रम का निर्माण करवाया। गांधी अपनी पत्नी और करीबियों के साथ यहां रहने लगे। रहने के हिसाब से अच्छा तो था लेकिन यहां खेतवाड़ी, पशु पालन, गैशाला, ग्रामोउद्योग का निर्माण जैसी गतिविधियां करना संभव नहीं था।
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तब उन्होंने 17 जून 1917 को साबरमती नदी के किनारे 36 एकड़ के लगभग बड़ी जगह पर सत्याग्रह आश्रम फिर से स्थापित करवाया। बाद में इस आश्रम को नदी के नाम से साबरमती आश्रम कहा जाने लगा। कहते हैं कि इस आश्रम को इंजीनियर चाल्स कोरिया ने बनाया था।
 
आश्रम में पहले 40-50 लोगों का गुजारा मुश्किल से होता था लेकिन धीरे-धीरे स्थिति में सुधार होता गया और लोगों की संख्या के साथ सुख-सुविधा बढ़ती गई। यहां शिक्षा के साथ ही कृषि से जुड़ी बातें, मानव श्रम की महत्ता से लोगों को अवगत कराया जाता था। इसके साथ ही गांधीजी ने ग्रामोद्योग और खादी के प्रचलन को बढ़ाने के लिए बहुत कार्य किया। इस आश्रम में गांधीजी चरखा चलाकर खादी के वस्त्र बनाते थे, साथ ही दूसरों को सिखाते भी थे।
 
12 मार्च 1930 को गांधीजी ने साबरमती आश्रम से लगभग 78 लोगों के साथ दांडी यात्रा की शुरुवात की थी। इस आंदोलन को 'नमक सत्याग्रह' कहा गया। दांडी यात्रा इसलिए कहते हैं क्योंकि साबरमती आश्रम से समुद्र के किनारे बसे शहर दांडी तक उन्होंने यह यात्रा की थी, जो लगभग 241 किलोमीटर की थी। नमक कानून के खिलाफ यह यात्रा उन्होंने 24 दिन में पूरी की थी। वहां पहुंचकर उन्होंने अपने हाथ में नमक लिया था। यात्रा के समय तो 78 लोग ही साथ चले थे लेकिन पड़ाव तक पहुंचते पहुंचते लाखों लोग उनके साथ जुड़ गए। 
 
इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार पूरी तरह हिल गई थी। इस सत्याग्रही आंदोलन से जुड़े कई बड़े नेताओं के साथ हजारों लोगों को जेल की सलाखों में डाल दिया गया था। कहते हैं कि 60 हजार के लगभग सत्याग्रहीयों को इस बीच ब्रिटिश सरकार ने जेल में दाल दिया था। इसके साथ ही साबरमती आश्रम को ब्रिटिश सरकार ने अपने कब्जे में लेते हुए सील कर दिया। उनका मानना था, यही पर आंदोलन की रुपरेखा बनी थी।
 
गांधी द्वारा शुरू हुआ यह आंदोलन मार्च 1931 तक चला था, जिसके चलते ब्रिटिश सरकार को भी गांधी जी की मांग को मानना पड़ रहा था। लेकिन मार्च 1931 में गांधी-इरविन समझौते के बाद गांधीजी ने यह आंदोलन समाप्त कर दिया।
 
उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश सरकार ने 1930 में भारतीय नमक पर टैक्स बढ़ा दिया था, साथ ही भारतीयों से समुद्र किनारे नमक का अधिकार भी छीन लिया था, जिससे भारत देश में विदेशी नमक की मांग बढ़ जाए और वह की अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचें। लेकिन इस आंदोलन ने अंग्रेज सरकार की अर्थव्यवस्था को गड़बड़ा दिया था।
 
1917 से 1930 तक इस ऐतिहासिक आश्रम में गांधीजी ने अपना जीवन बिताया था। यहां से जाने के बाद वे अपनी पत्नी एवं करीबी लोगों के साथ महाराष्ट्र में स्थित सेवाग्राम आश्रम में रहने लगे थे। साबरमती आश्रम एक ऐसा ऐतिहासिक स्थल है, जिसने देश की आजादी के पीछे की लड़ाई को करीब से देखा है। गांधीजी एवं उनके साथी स्वतंत्रता संग्रामी देश की आजादी के लिए, ब्रिटिश सरकार के खिलाफ यहीं बैठकर योजना बनाते थे।
 
कुछ समय बाद गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार से इस आश्रम से सरकारी कब्जा हटाने और उन्हें वापस करने का आग्रह किया था, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनकी यह मांग नहीं मानी और साबरमती आश्रम को अपने कब्जे में ही रखा। 1947 में आजादी के बाद भी गांधीजी इस आश्रम में वापस नहीं आ पाए, 1948 में उनकी मौत के साथ यह सपना भी खत्म हो गया। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1963 में इस आश्रम को गांधी संग्रहालय में बदल दिया।

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