शिव और कृष्ण का जीवाणु युद्ध, वर्णन जानकर चौंक जाएंगे

अनिरुद्ध जोशी
पौराणिक कथाओं के अनुसार बाणासुर नामक दैत्य के कारण भगवान श्रीकृष्ण और शिवजी का प्रलयंकारी युद्ध हुआ था। हालांकि इस युद्ध का जिक्र बहुत कम ही मिलता है। अधिकतर बातें जनश्रुति और मान्यताओं पर आधारित हैं। इस संबंध में विरोधाभासी कथाएं ही मिलती है। सही क्या है, यह तो शोध का विषय है।


इस युद्ध के कारण हाहाकार मच गया था। युद्ध में सभी तरह के अस्त्र और शस्त्रों का प्रयोग हुआ था। कहते हैं कि महाभारत काल में महाभारत के अलावा भी कई प्रलयंकारी युद्ध हुए थे। इस युद्ध में ही हजारों लोग मारे गए थे। आओ जानते हैं कि क्यों और कैसे हुआ था यह युद्ध?
 
 
भगवान श्रीकृष्ण 64 कलाओं में दक्ष थे। एक ओर वे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे, तो दूसरी ओर वे द्वंद्व युद्ध में भी माहिर थे। इसके अलावा उनके पास कई अस्त्र और शस्त्र थे। उनकी नारायणी सेना उस काल की सबसे खतरनाक सेना थी। श्रीकृष्ण ने ही कलारिपट्टू नामक युद्ध कला को ईजाद किया था जिसे आजकल मार्शल आर्ट कहते हैं। श्रीकृष्ण के धनुष का नाम 'सारंग' था। उनके खड्ग का नाम 'नंदक', गदा का नाम 'कौमौदकी' और शंख का नाम 'पाञ्चजन्य' था, जो गुलाबी रंग का था। श्रीकृष्ण के पास जो रथ था, उसका नाम 'जैत्र' और दूसरे का नाम 'गरूड़ध्वज' था। उनके सारथी का नाम दारुक था और उनके अश्वों का नाम शैव्य, सुग्रीव, मेघपुष्प और बलाहक था।
 
 
युद्ध का कारण
श्रीकृष्ण से प्रद्युम्न और प्रद्युम्न से अनिरुद्ध का जन्म हुआ। प्रद्युम्न के पुत्र तथा कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध की पत्नी के रूप में उषा की ख्याति है। अनिरुद्ध की पत्नी उषा शोणितपुर के राजा बाणासुर की कन्या थी। अनिरुद्ध और उषा आपस में प्रेम करते थे। उषा ने एक दिन अपनी मायावी सहेली चित्रलेखा के माध्यम से अनिरुद्ध का हरण करवा लिया था। चित्रलेखा, अनिरुद्ध को हरण करके जिस स्थान पर लेकर आई थी़, वह ओखीमठ नामक स्थान (केदारनाथ के पास) था। कहते हैं कि यहां दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया था। वहां अभी भी उषा-अनिरुद्ध नाम से एक मंदिर है। बाणासुर को जब यह पता चला तो उसने अनिरुद्ध को बंधक बनाकर जेल में डाल दिया। बाणासुर को शिव का वरदान प्राप्त था। भगवान शिव ने उसे उसकी रक्षा करने का वचन भी दिया था। जब भगवान श्रीकृष्ण को इस घटना का पता चला तो वे अपनी सेना लेकर बाणासुर के राज्य में प्रवेश कर गए।
 
 
ऐसे हुआ था युद्ध
जब भगवान श्रीकृष्ण को यह पता चला कि बाणासुर ने अनिरुद्ध को बंधक बना लिया तो वे बलराम, प्रदुम्न, सात्यकि, गदा, साम्ब, सर्न, उपनंदा, भद्रा आदि को साथ लेकर सोणितपुर (वर्तमान तेजपुर, असम) पहुंच गए। बाणासुर को जब इस बात का पता चला तो उसने भगवान शिव का आह्‍वान किया और उन्हें अपनी रक्षा करने का निवेदन किया। ऐसे में भगवान शिव भी रुद्राक्ष, वीरभद्र, कूपकर्ण, कुम्भंदा, नंदी, गणेश और कार्तिकेय के साथ बाणासुर की रक्षा करने के लिए पहुंच गए। वहां बाणासुर और शिव की सेना ने मिलकर भगवान श्रीकृष्ण की सेना से भयानक युद्ध लड़ा।
 
 
दोनों सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ। श्रीकृष्ण ने बाणासुर के असंख्य सैनिकों को मार गिराया तो शिवजी ने भी कृष्ण की सेना का भारी नुकसान किया। बाद में शिवजी ने कृष्णजी पर कई अस्त्र-शस्त्र चलाए लेकिन उससे उनका कुछ नहीं बिगड़ा और कृष्णजी ने भी शिवजी पर कई अस्त्र-शस्त्र चलाए लेकिन वे सभी निष्फल हो गए।
 
 
तब अंत में शिवजी ने भगवान कृष्ण पर पाशुपतास्त्र छोड़ दिया। इसके जवाब ने श्रीकृष्ण ने भी नारायणास्त्र छोड़ दिया। दोनों के अस्त्रों से भयंकर आग उत्पन्न हुई लेकिन दोनों का कोई नुकसान नहीं हुआ। ऐसे में श्रीकृष्ण ने शिवजी को सुलाने के लिए निद्रास्त्र छोड़ दिया। इससे धुंध छा गई और शिवजी सो गए। यह देख बाणासुर की सेना में भय व्याप्त हो गया। उसकी सेना कमजोर हो गई। प्रद्युम्न और कार्तिकेय का भयानक युद्ध हुआ जिसमें कार्तिकेय घायल हो गए। दूसरी तरफ बलरामजी ने कुम्भंदा और कूपकर्ण को घायल कर दिया। यह देख बाणासुर अपने प्राण बचाकर भागने लगा। श्रीकृष्ण उसके पीछे दौड़े और उसे पकड़ लिया और उन्होंने उसकी भुजाएं काटनी शुरू कर दी। युद्ध भूमि में यह दृश्य देख सभी ओर हाहाकार मचने लगा।
 
 
जब बाणासुर की सारी भुजाएं कट गई थीं और केवल 4 शेष रह गई थीं तब शिवजी नींद से जाग उठे और जब उन्होंने यह दृश्य देखा तो वे अतिक्रोधित हुए। क्रोध में शिवजी ने अपना सबसे भयानक शस्त्र 'शिवज्वर अग्नि' या 'माहेश्वर ज्वर' चलाया जिससे चारों ओर अग्नि फैल गई। हर तरफ भयानक जीवाणुओं के कारण ज्वर और बीमारियां फैलने लगीं। यह देख श्रीकृष्ण को न चाहते हुए भी अपना आखिरी शस्त्र 'नारायण ज्वर शीत' चलाना पड़ा। इसे 'वैष्णव ज्वर' भी कहा जाता है। कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के शस्त्र से ज्वर का तो नाश हो गया किंतु अग्नि और शीत का जब बराबर मात्रा में विलय होता है, तो संपूर्ण सृष्टि के प्राकृतिक वातावरण का नाश हो जाता है। सभी ओर हाहाकार मच गया।
 
 
यह भयंकर दृश्य देखकर नारद मुनि सहित सभी देवी-देवता, यक्ष- गंधर्व आदि ब्रह्माजी से इस युद्ध को रोकने का निवेदन करते हैं, लेकिन ब्रह्माजी इस युद्ध को रोकने में अपनी असमर्थता व्यक्त करते हैं। तब वे सभी मिलकर पराशक्ति देवी भगवती मां दुर्गा की आराधना करते हैं। मां दुर्गा प्रकट होकर दोनों पक्षों को शांत करती हैं।
 
 
उस समय श्रीकृष्‍ण कहते हैं कि माते! मैं तो बस अपने पौत्र अनिरुद्ध को स्वतंत्र कराना चाहता हूं। तभी शिवजी कहते हैं कि मैं भी अपने भक्त की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हूं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं बाणासुर का वध नहीं करता चाहता, क्योंकि मैं बाणासुर के पूर्वज प्रहलाद को वरदान दिया था कि दैत्य वंश में उसके परिवार का कोई भी सदस्य मेरे अर्थात विष्णु के अवतार के हाथों नहीं मारा जाएगा।
 
 
मां भगवती की कृपा से श्रीकृष्ण के ऐसे वचन सुनकर बाणासुर को बहुत आत्मग्लानि होती है और वह क्षमा मांगकर कहता है कि मेरे ही कारण यह युद्ध हुआ, इसके लिए मैं बहुत दु:खी हूं। बाद में बाणासुर उषा-अनिरुद्ध का विवाह कर देता है। वैष्णव ग्रंथों में श्रीकृष्ण, तो शैव ग्रंथों में शिवजी की महिमा का वर्णन मिलता है।
 
 
अंत में प्रचलित मान्यता अनुसार कृष्ण ने असम में बाणासुर और भगवान शिव से युद्ध के समय 'माहेश्वर ज्वर' के विरुद्ध 'वैष्णव ज्वर' का प्रयोग कर विश्व का प्रथम 'जीवाणु युद्ध' लड़ा था। हालांकि यह शोध का विषय हो सकता है। इस पर शोध किए जाने की आवश्यकता है कि आखिर क्या वे जैविक अस्त्र-शस्त्र थे?
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Dev Diwali 2024: देव दिवाली पर यदि कर लिए ये 10 काम तो पूरा वर्ष रहेगा शुभ

Shani margi 2024: शनि के कुंभ राशि में मार्गी होने से किसे होगा फायदा और किसे नुकसान?

Tulsi vivah 2024: देवउठनी एकादशी पर तुलसी के साथ शालिग्राम का विवाह क्यों करते हैं?

Dev uthani ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 11 काम, वरना पछ्ताएंगे

शुक्र के धनु राशि में गोचर से 4 राशियों को होगा जबरदस्त फायदा

सभी देखें

धर्म संसार

Dev Diwali 2024: देव दिवाली पर कब, कहां और कितने दीपक जलाएं?

Dev Uthani Gyaras 2024 : देवउठनी एकादशी पर तुलसी एवं शालिग्राम के विवाह की 10 खास बातें

Dev Uthani Gyaras 2024 : देव उठनी ग्यारस का व्रत रखने के 9 फायदे

Surya in vrishchik 2024: सूर्य का वृश्चिक राशि में गोचर, 3 राशियों को रहना होगा सतर्क

Bhishma Panchak 2024 : भीष्म पंचक व्रत आज से, जानें पूजा विधि और महत्व

अगला लेख
More