हिन्दू धर्म के एकमात्र धर्मग्रंथ है वेद। वेदों के चार भाग हैं- ऋग, यजु, साम और अथर्व। वेदों के सार को उपनिषद कहते हैं और उपनिषदों का सार या निचोड़ गीता में हैं। उपनिषदों की संख्या 1000 से अधिक है उसमें भी 108 प्रमुख हैं। किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह वेद या उपनिषद पढ़ें उनके लिए गीता ही सबसे उत्तम धर्मग्रंथ है।
गीता के ज्ञान को भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कुरुक्षेत्र में खड़े होकर दिया था। यह श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद नाम से विख्यात है, लेकिन श्रीकृष्ण ने यह ज्ञान कहां से प्राप्त किया था?
1.ऋषि संदीपनी : कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के तीन प्रमुख गुरु थे जिनसे उन्होंने शिक्षा और दिक्षा ली थी। उन्होंने सर्वप्रथज्ञ उज्जैन के ऋषि संदीपनी के आश्रम में रहकर वेद और वेदांग के साथ ही 64 कलाओं की शिक्षा प्राप्त की थी।
2.तीर्थंकर नेमिनाथ : उनके दूसरे गुरु जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ थे। नेमिनाथ का उल्लेख हिंदू और जैन पुराणों में स्पष्ट रूप से मिलता है। शौरपुरी (मथुरा) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ। अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वासुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण। इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे। उन्हें अरिष्टनेमि भी कहा गया है। उनकी माता का नाम शिवा था। कहते हैं कि श्रीकृष्ण कभी कभी उनके प्रवचन सुनने उनके पास जाते थे।
3.घोर अंगिरस : उनके तीसरे गुरु घोर अंगिरस थे। ऐसा कहा जाता है कि घोर अंगिरस ने देवकी पुत्र कृष्ण को जो उपदेश दिया था वही उपदेश श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में दिया था जो गीता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। छांदोग्य उपनिषद में उल्लेख मिलता है कि देवकी पुत्र कृष्ण घोर अंगिरस के शिष्य हैं और वे गुरु से ऐसा ज्ञान अर्जित करते हैं जिससे फिर कुछ भी ज्ञातव्य नहीं रह जाता है।
5.काल पुरुष : यह भी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण को यह ज्ञान स्वयं ईश्वर (काल पुरुष) ने दिया था। जब वे गीता का ज्ञान देते थे तब उनकी स्थिति महायोगी अवस्था में होती थी और उसी दौरान काल पुरुष अर्जुन के प्रश्नों का उत्तर देते थे। ऐसा एक किस्सा भी प्रचलित है कि युद्ध की समाप्ति के बाद शिविर में अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा था कि आपने कुरुक्षेत्र में मुझे जो ज्ञान दिया था क्या वह आप फिर से दे सकते हैं? इस पर श्रीकृष्ण ने कहा था कि यह संभव नहीं हो सकता क्योंकि जब मैं ज्ञान दे रहा था तब में योगारूढ़ अवस्था में था और वह ज्ञान कोई और ही दे रहा था।
हालांकि कहा जाता है कि श्रीकृष्ण तो स्वयं विष्णु के अवतार और भगवान थे। उन्हें किसी से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं। वे पूर्णावतर थे। वे लीलाधर थे।
महाभारत के 18 अध्याय में से एक भीष्म पर्व का हिस्सा है गीता। गीता को अच्छे से समझने से ही आपकी समझ में बदलाव आ जाएगा। धर्म, कर्म, योग, सृष्टि, युद्ध, जीवन, संसार आदि की जानकारी हो जाएगी। सही और गलत की पहचान होने लगेगी। तब आपके दिमाग में स्पष्टता होगी द्वंद्व नहीं। जिसने गीता नहीं पढ़ी वह हिन्दू धर्म के बारे में हमेशा गफलत में ही रहेगा।