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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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महाभारत में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को सुखी रहने के लिए सुनाई थी यह कथा

हमें फॉलो करें महाभारत में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को सुखी रहने के लिए सुनाई थी यह कथा
महाभारत के शांति पर्व में एक कथा आती है। यह कथा युधिष्ठिर को भीष्म सुनाते हैं। कथा सुनाने के पहले भीष्म कहते हैं कि जो पुरुष समय से पहले ही कार्य की व्यवस्था कर लेता है उसे 'अनागतविधाता' कहते हैं। और, जिसे ठीक समय पर ही काम करने की युक्ति सूझ जाती है, वह 'प्रत्युत्पन्नमति' कहलाता है। ये दो ही सुख पा सकते हैं, लेकिन दीर्घसूत्री तो नष्ट हो जाता है। मैं दीर्घसूत्री के कर्तव्य-अकर्तव्य के निश्‍चिय को लेकर एक सुन्दर आख्यान सुनाता हूं, सावधान होकर सुनो।
 
 
एक तालाब में, जिसमें थोड़ा ही जल था, बहुत-सी मछलियां रहती थीं। उसमें तीन कार्यकुशल मत्स्य भी थे। वे तीनों एक साथ ही रहा करते थे। उसमें एक दीर्घकालयज्ञ (अनागतविधाता), दूसरा प्रत्युत्पन्नमति और तीसरा दीर्घसूत्री था।
 
एक दिन कुछ मछुआरों ने अधिक मछलियां पकड़ने के उद्देश्य से उस तालाब से सब ओर नालियां निकालकर उसका पानी आसपास की नीची भूमि में निकालना आरंभ कर दिया। तालाब का जल घटता देखकर दीर्घदर्शी मत्स्य ने आगामी भय की शंका से अपने दोनों साथियों से कहा, मालूम होता है इस जलाशय में रहने वाले सभी प्राणियों पर आपत्ति आने वाली है। इसलिए जब तक हमारे निकलने का मार्ग नष्ट न हो तब तक शीघ्र ही हमें यहां से चले जाना चाहिए। यदि आप लोगों को भी मेरी सलाह ठीक जान पड़े तो चलिए किसी दूसरे स्थान को चलें।
 
 
इस पर दीर्घसूत्री मत्स्य ने कहा, तुमने बात तो ठीक ही कही है, किंतु मेरा ऐसा विचार है कि अभी हमें जल्दी नहीं करनी चाहिए। फिर प्रत्युत्पन्नमति बोला, अजी! जब समय आता है तो मेरी बुद्धि युक्ति निकालने में कभी नहीं चूकती। उन दोनों का ऐसा विचार जानकर महामति दीर्घदर्शी मत्स्य तो उसी दिन एक नाली के रास्ते गहरे जलाशय में चला जाता है।
 
कुछ समय बाद जब मछु्आरों ने देखा कि उस जलाशय का जल प्राय: निकल चुका है तो उन्होंने कई जालों में उस जलाशाय की सब मछलियों को फंसा लिया। सबके साथ दीर्घसूत्री भी जाल में फंस गया। जब मछुआरों ने जाल उठाया तो प्रत्युत्पन्नमति भी सब मछलियों के बीच घुसकर मृतक-सा होकर पड़ गया और मछलियों के बीच के थोड़े से जल से ही सांस लेता रहा।
 
 
मछुआरे जाल में फंसी हुई उन सब मछलियों को लेकर दूसरे गहरे जल वाले तालाब आए और उन्हें उसमें धोने लगे। उसी समय प्रत्युत्पन्नमति जाल में से निकलकर जल में घुस गया, किंतु दीर्घसूत्री अचेत होकर मर गया था।
 
इस प्रकार से जो पुरुष अपने सिर पर आए हुए काल को नहीं देख पाता, वह दीर्घसूत्री मत्स्य के समान जल्दी ही नष्ट हो जाता है। और, जो यह समझकर कि मैं बड़ा कार्यकुशल हूं पहले ही से अपनी भलाई का उपाय नहीं करता, वह प्रत्युत्पन्नमति नामक मत्स्य के समान संशय की स्थिति में पड़ जाता है। इसीलिए कहा गया है कि अनागतविधाता और प्रत्युत्पन्नमति ये दो सुखी रहते हैं और दीर्घसूत्री नष्‍ट हो जाता है। जो पुरुष उचित देश और काल में, सोच-समझकर, सावधानी से अच्छी तरह अपना काम करता है, वह अवश्‍य उसका फल प्राप्त कर लेता है।
 
 
संदर्भ : महाभारत शांति पर्व

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