बीआर चौपड़ा की महाभारत के 26 अप्रैल 2020 के सुबह और शाम के 59 और 60वें एपिसोड में बताया गया कि पांडवों का पता चलने के बाद दुर्योधन, शकुनि और कर्ण मत्स्य देश पर हमला करने की योजना पर अमल करते हैं। वह त्रिगट देश के राजा सुशर्मा के साथ मिलकर हमले की योजना बनाते हैं।
इधर, कंक बने युधिष्ठिर मत्स्य देश के राजा विराट के साथ चौसर खेलते हुए बताते हैं। तभी गुप्तचर खबर लाता है कि त्रिगट देश के राजा ने हमला कर दिया है। यह सुनकर राजा विराट तत्क्षण ही युद्ध के लिए निकलते हैं। ऐसे में युधिष्ठिर भी उनके साथ युद्ध के लिए चलने का कहते हैं और वे अपने भाइयों भीम, नकुल और सहदेव को भी ले जाने के लिए राजा को राजी कर लेते हैं। बस, वृहन्नला बने अर्जुन ही रह जाते हैं। सभी मिलकर त्रिगट नरेश को हरा देते हैं। कंक बने युधिष्ठिर के कहने पर त्रिगट नरेश को राजा विराट क्षमा कर देते हैं और वे वहीं विश्राम करने का आदेश देकर दूत से कहते हैं कि जाओ नगर में जाकर हमारी विजय का समाचार सुना दो।
इधर, एक दूसरा दूत विराट नगर के महल में आकर सूचना देता है कि दुर्योधन, कर्ण, भीष्म और शकुनि आदि ने हस्तिनापुर की सेना के साथ हमारी सीमा पर हमला कर दिया है। ऐसे में विराट राजा का पुत्र उत्तर कहता है कि मैं उनसे लड़ने के लिए जाता हूं, तो अर्जुन कहता है कि मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं। उत्तर यह सुनकर हंसता है और कहता है कि तुम तो एक वृहन्नला हो तुम क्या युद्ध लड़ोगी, लेकिन सैरंध्री बनी द्रौपदी कहती है कि ये भी योद्धा है। अर्जुन भी इन्हें अपनी सेना में रखते थे। आखिर अर्जुन सारथी बनकर युद्ध करने चला जाता है। लेकिन युद्ध में जाकर उत्तर हस्तिनापुर की सेना को देखकर डर जाता है और वह रणभूमि से भागने का प्रयास करता है। अर्जुन उसे रोकता है और वह उत्तर को सारथी बनाकर एक वृक्ष से अपने दिव्यास्त्र निकालते हैं। उत्तर के सामने अर्जुन का राज खुल जाता है।
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फिर अर्जुन शंख बजाकर युद्धघोष करता है। दुर्योधन इस शंख की आवाज सुनकर कहता है कि यह तो अर्जुन का देवदत्त शंख है, इसका मतलब यह कि हमने अज्ञातवास भंग कर दिया। अब ये सभी पांडव फिर से 12 वर्ष के वनवास में जाएंगे। भीष्म कहते हैं कि गणित के अनुसार पांडवों का अज्ञातवास समाप्त हो चुका है।
तभी अर्जुन भयंकर युद्ध करता है और अंत में सम्मोहन बाण चलाकर सभी को मूर्च्छित कर देता है और फिर वह गुरु द्रोण और भीष्म को छोड़कर सभी योद्धाओं के वस्त्र उतारकर ले जाता है। फिर अर्जुन युवराज उत्तर से कहते हैं कि आप अपने पिता से कहना कि यह युद्ध आपने जीता है अर्जुन अर्थात वृहन्नला ने नहीं।
इधर, युधिष्ठिर राजा को सांत्वना देते हैं कि आपका पुत्र उत्तर वृहन्नला के साथ गया है तो निश्चित ही जीत कर आएगा। राजा इस बात से क्रोधित हो जाते हैं कि तुम एक नपुंसक वृहन्नला की तारीफ कर रहे हो। बाद में वृहन्नला और उत्तर राजमहल में पधारते हैं और उनका स्वागत होता है।
बाद में उत्तर की बहन उत्तरा जिसे वृहन्नला बनकर अर्जुन नृत्य सिखा रहे थे, उससे कहते हैं कि तुम्हारे लिए योग्य वर तो अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु ही है। मात्र उत्तर को ही मालूम रहता है कि वृहन्नला, सैरंध्री, कंक, बल्लव आदि कौन है। वह अर्जुन से पूछता है कि आप अपने असली रूप में कब आओगे तो अर्जुन कहता है कि हम कल अपने असली रूप में आएंगे।
उत्तर दूसरे दिन सभी को राजदरबार में उचित स्थान देकर सभी का परिचय देते हैं और राजसभा स्तंभ हो जाती है। युधिष्ठिर राजा का आभार प्रकट करते हैं और कहते हैं कि आपने हमें अज्ञातवास में अपनी छत्रछाया में छिपाकर रखा इसके लिए धन्यवाद। अंत में अर्जुन उत्तरा को अपनी पुत्रवधू बनाने का प्रस्ताव राजा के समक्ष रखते हैं और विवाह की तैयारियां होती हैं।
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