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दुर्योधन को मिला था ये भयंकर श्राप, इसीलिए वह मारा गया

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अनिरुद्ध जोशी

दुर्योधन की जिद, अहंकार और लालच ने लोगों को युद्ध की आग में झोंक दिया था इसलिए दुर्योधन को महाभारत का खलनायक कहा जाता है। महाभारत की कथा में ऐसा प्रसंग भी आया है कि दुर्योधन ने काम-पीड़ित होकर कुंवारी कन्याओं का अपहरण किया था।
 
 
द्यूतक्रीड़ा में पांडवों के हार जाने पर जब दुर्योधन भरी सभा में द्रौपदी का का अपमान कर रहा था, तब गांधारी ने भी इसका विरोध किया था फिर भी दुर्योधन नहीं माना था। यह आचरण धर्म-विरुद्ध ही तो था। जब दुर्योधन को लगा कि अब तो युद्ध होने वाला है तो वह महाभारत युद्ध के अंतिम समय में अपनी माता के समक्ष नग्न खड़ा होने के लिए भी तैयार हो गया।
 
 
महाभारत में दुर्योधन के अनाचार और अत्याचार के किस्से भरे पड़े हैं। पांडवों को बिना किसी अपराध के उसने ही तो जलाकर मारने की योजना को मंजूरी दी थी। ऐसा ही एक किस्सा है दुर्योधन के अहंकार का।
 
 
श्राप का किस्सा 
एक बार महर्षि मैत्रेय हस्तिनापुर पथारे। विश्राम के बाद धृतराष्ट्र ने पूछा- भगवन् वन में पांचों पांडव कुशलपूर्वक तो हैं न। महर्षि ने कहा, वे कुशल है, लेकिन मैंने सुना कि तुम्हारे पुत्रों ने पाण्डवों को जुए में धोखे से हराकर वन भेज दिया?
 
 
ऐसा कहकर पीछे मुड़ते हुए उन्होंने दुर्योधन से कहा, तुम जानते हो पाण्डव कितने वीर और शक्तिशाली हैं? महर्षि की बात सुनकर दुर्योधन ने क्रोध में अपनी जांघ पर हाथ से ताल ठोंक दी। दुर्योधन की यह उद्दण्डता देखकर महर्षि को क्रोध आ गया और उन्होंने कहा, तू मेरा तिरस्कार करता है, मेरी बात शांतिपूर्वक सुन नहीं सकता। जा उद्दण्डी जिस जंघा पर तू ताल ठोंक रहा है, उस जंघा को भीम अपनी गदा से तोड़ देगा। बस यही शाप दुर्योधन को ले डूबा।

 
दुर्योधन की तीन गलतियां:
भीम ने दुर्योधन की जंघा उतार दी थी। वह खून में लथपथ होकर रणभूमि पर गिरा हुआ था। बस, कुछ ही समय में दम तोड़ने वाला था लेकिन भूमि पर गिरे हुए ही उसने श्रीकृष्ण की ओर देखते हुए अपने हाथ की तीन अंगुलियों को बार-बार उठाकर कुछ बताने का प्रयास किया। पीड़ा के कारण उसके मुंह से आवाज धीमी धीमी ही निकल रही थी।

 
ऐसे में श्रीकृष्ण उसके पास गए और कहने लगे कि क्या तुम कुछ कहना चाहते हो? तब उसने कहा कि उसने महाभारत के युद्ध के दौरान तीन गलतियां की हैं, इन्हीं गलतियों के कारण वह युद्ध नहीं जीत सका और उसका यह हाल हुआ है। यदि वह पहले ही इन गलतियों को पहचान लेता, तो आज जीत का ताज उसके सिर होता।

 
श्रीकृष्ण ने सहजता से दुर्योधन से उसकी उन तीन गलतियों के बारे में पूछा तो उसने बताया, पहली गलती यह थी कि उसने स्वयं नारायण के स्थान पर उनकी नारायणी सेना को चुना। यदि नारायण युद्ध में कौरवों के पक्ष में होते, तो आज परिणाम कुछ और ही होता। 
 
दूसरी गलती उसने यह बताई की कि अपनी माता के लाख कहने पर भी वह उनके सामने पेड़ के पत्तों से बना लंगोट पहनकर गया। यदि वह नग्नावस्था में जाता, तो आज उसे कोई भी योद्धा परास्त नहीं कर सकता था।
 
 
तीसरी और अंतीम गलती उसने की थी वो थी युद्ध में आखिर में जाने की भूल। यदि वह पहले ही जाता तो कई बातों को समझ सकता था और शायद उसके भाई और मित्रों की जान बच जाती।
 
 
श्रीकृष्ण ने विनम्रता से दुर्योधन की यह सारी बात सुनी, फिर उन्होंने उससे कहा, 'तुम्हारी हार का मुख्य कारण तुम्हारा अधर्मी व्यवहार और अपनी ही कुलवधू का वस्त्राहरण करवाना था। तुमने स्वतयं अपने कर्मों से अपना भाग्य लिखा।'.... श्रीकृष्ण के कहने का तात्पर्य यह था कि तुम अपनी इन तीन गललियों के कारण नहीं हारे बल्कि तुम अधर्मी हो इसलिए हारे। यह सुनकर दुर्योधन को अपनी असली गलती का अहसास हो गया।
 

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