भोपाल। मध्यप्रदेश में उपचुनाव में विजयपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस की जीत ने पार्टी के कार्यकर्ताओं में नया जोश भर दिया है। पहले विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद विजयपुर विधानसभा में पार्टी उम्मीदवार मुकेश मल्होत्रा की जीत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के लिए संजीवनी से कम नहीं है। विजयपुर में कांग्रेस की जीत ने जीतू पटवारी के नेतृत्व पर लग रहे सवालिया निशान और विरोधियों को बैकफुट पर ला दिया है। वहीं विजयपुर में भाजपा की हार ने मध्यप्रदेश भाजपा में नई और पुरानी भाजपा की अंदरूनी लड़ाई और खींचतान को सतह पर ला दिया है।
विजयपुर में जीत से जीतू पटवारी को मिली संजीवनी-विजयपुर विधानसभा सीट में मिली जीत ने कांग्रेस को एक बार फिर खड़ा कर दिया है। विजयुपर में कांग्रेस प्रत्याशी मुकेश मल्होत्रा ने कैबिनेट मंत्री औऱ भाजपा उम्मीदवार रामनिवास रावत को हराया है। इसलिए इस जीत की अहमियत बढ़ जाती है। विजयपुर की जीत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के नेतृत्व में पहली जीत है। इस जीत से मध्यप्रदेश की सियासत में उनके विरोधियों की आवाज दबेगी और केंद्रीय नेतृत्व के सामने जीतू पटवारी का कद बढ़ेगा।
पिछले साल के आखिरी में मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी आलाकमान ने युवा नेतृत्व में पार्टी की कमान सौंपते हुए जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनया था। जीतू पटवारी के पार्टी की कमान संभालते हुए उनके नेतृत्व पर सवाल उठने लगे थे। लोकसभा चुनाव मे कांग्रेस का सूफड़ा साफ होने और पार्टी के कई दिग्गज नेताओं के साथ बड़ी संख्या कांग्रेस कार्यकर्ताओं के पार्टी छोड़ने से जीतू पटवारी के विरोधी काफी मुखर हो गए थे और प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की मांग करने लगे थे। लोकसभा चुनाव के बाद अमरवाड़ा विधानसभा के हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था।
विजयपुर उपचुनाव में कांग्रेस की जीत और बुधनी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को तगड़ी चुनौती देने से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का जोश हाई है। विजयपुर में जीत के बाद जिस अंदाज में जीतू पटवारी ने भाजपा को चुनौती दी उससे यह समझा जा सकता है कि विजयपुर की जीत सियासी करियर के लिए कितनी अहम है। दरअसल विधानसभा चुनाव में हार के बाद प्रदेश कांग्रेस बिखरती चली गई है, उसके कई सीटिंग विधायकों ने पार्टी छोड़ दी वहीं कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का पार्टी से मोहभंग होने लगा था। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी की अगुवाई में पार्टी को यह पहली जीत मिली है।
साल 2023 के बुधनी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक लाख से अधिक वोटों से हार का सामना करना पड़ा था वहीं इस बार उपचुनाव में कांग्रेस को मात्र 13 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में उपचुनाव में कांग्रेस तकरीबन 90 हजार मतों के अंतर को पाटने में सफल हुई है। ऐसे में बुधनी और विजयपुर उपचुनाव के नतीजे पीसीसी चीफ जीतू पटवारी के लिए काफी अहम हो गए है। विजयपुर में चुनाव परिणान आने से ठीक पहले भोपाल में जीतू पटवारी की नई टीम की बैठक से जिस तरह से कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने दूरी बनाई थी उसके उनके नेतृत्व पर सवालिया निशान उठ गए थे। ऐसे में विजयपुर की जीत से अब जीतू पटवारी की संगठन पर पकड़ मजबूत होगी।
बीना विधानसभा पर अब कांग्रेस की नजर- विजयपुर में जीत के बाद अब कांग्रेस की नजर बीना विधानसभा सीट पर है। बीना से कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे ने लोकसभा चुनाव में पाला बदलते हुए भाजपा में शामिल हो गई थी और वह लगातार भाजपा के मंचों पर शिरकत करने के साथ भोपाल में भाजपा मुख्यालय में अपनी हाजिरी लगा रही है। हलांकि अभी निर्मला सप्रे ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया। वहीं कांग्रेस ने निर्मला सप्रे की सदस्यता खत्म करने को लेकर विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के पास याचिका लगा चुकी है। वहीं दिसंबर में विधानसभा की शीतकालीन सत्र होना है तब कांग्रेस काफी अक्रामक नजर आएगी।
चरम पर पहुंचेगी नई और पुरानी भाजपा की लड़ाई- विजयपुर उपचुनाव में कांग्रेस से भाजपा में आए रामनिवास रावत की हार से अब पार्टी में नई और पुरानी भाजपा की लड़ाई और तेज होगी। विजयपुर में हार के बाद रामनिवास रावत ने इसका ठीकरा भाजपा के कुछ लोगों पर फोड़ कर इसका आगाज कर दिया। सोमवार को रामनिवास रावत ने कहा किकुछ लोगों को उनका मंत्री पद रास नहीं आया और उन्होंने लोगों के साथ भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं को बरगलाया। रामनिवास रावत ने कहा कि कुछ लोगों ने भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं को बरगलाया कि इसे आगे बढ़ने से यह अपने लोगों को ही आगे बढ़ाएगा।
विजयपुर की हार के बाद बाद अब ग्वालियर-चंबल संभाग से लेकर बुदेलखंड और महाकौशल में नई और पुरानी भाजपा में टकराव बढ़ेगा। सागर में पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह और कांग्रेस से भाजपा में आए कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह राजपूत अब पूरी तरह आमने सामने आ चुके है। भूपेंद्र सिंह लगातार पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं की हक की आवाज उठा रहे है। वहीं महाकौशल में पूर्व मंत्री अजय विश्नोई लगातार पार्टी में कांग्रेस नेताओं के शामिल होने पर सार्वजनिक रूप से अपना विरोध दर्ज करा चुके है।
विजयपुर की हार के बाद अब ग्वालिय-चंबल में नई और पुरानी भाजपा की लड़ाई सतह पर आती हुई दिख रही है। साल 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद पूरी भाजपा दो खेमों में बंटी हुई दिखाई दे रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों ने जिस तरह से विजयपुर उपचुनाव से दूरी बनाई, उसे भी विजयपुर में भाजपा की हार की बड़ी वजह माना जा रहा है। ऐसे में आने वाले समय में ग्वालिय-चंबल संभाग में पार्टी की अंदरूनी सियासत और तेज हो गई। अब देखना होगा कि भाजपा नेतृत्व विजयपुर में कैबिनेट मंत्री की हार की समीक्षा करने के बाद क्या कदम उठाता है।