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कास्ट पॉलिटिक्स की ओर मध्यप्रदेश की सियासत, भाजपा और कांग्रेस में जातीय समीकरण को साधने की होड़

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विकास सिंह

, शुक्रवार, 19 अगस्त 2022 (14:43 IST)
भोपाल। मध्यप्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए सियासी दलों ने अपनी बिसात बिछाना शुरु कर दिया है। 2023 के सियासी चौसर पर जातिगत और समुदाय विशेष की राजनीति केंद्र में आ गई है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही कास्ट पॉलिटिक्स के सहारे अपने वोट बैंक को मजबूत कर 2023 का चुनावी रण फतह करने की तैयारी में दिखाई दे रही है। बिहार और उत्तर प्रदेश की पहचान तरह अब मध्यप्रदेश में भी कास्ट पॉलिटिक्सि केंद्र में आ गई है। प्रदेश की सिसासत में ओबीसी के साथ अब आदिवासी और दलित सियासत के केंद्र में आ गए है।
 
ओबीसी वोटबैंक पर सबकी नजर?- मध्यप्रदेश में ओबीसी वोट बैंक पर भाजपा और कांग्रेस दोनों की नजर है। पिछले दिनों सरकार की आई एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के मतदाता लगभग 48 प्रतिशत है। वहीं मध्यप्रदेश में कुल मतदाताओं में से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के मतदाता घटाने पर शेष मतदाताओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता 79  प्रतिशत है। ऐसे में ओबीसी वोटर 2023 विधानसभा चुनाव में भी बड़ी भूमिका निभाने जा रहे है। 
 
ओबीसी वोटरों को साधने के लिए भाजपा और कांग्रेस किस तरह आतुर है इसका नजारा पिछले दिनों कि पंचायत और निकाय चुनाव में दिखाई दिया जब ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण को लेकर भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते रहे। वहीं दोनों ही दलों ने चुनावी मैदान में बड़ी संख्या में ओबीसी वर्ग को टिकट देकर उनको साधने की कोशिश की। 
 
दलित लगाएंगे बेड़ा पार?- मध्यप्रदेश में दलित राजनीति इस समय सबसे केंद्र में है। छिटकते दलित वोट बैंक को अपने साथ एक जुट रखने के लिए भाजपा लगातार दलित नेताओं को आगे बढ़ रही है। बात चाहे बड़े दलित चेहरे के तौर पर मध्यप्रदेश की राजनीति में पहचान रखने वाले सत्यनारायण जटिया को संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में शामिल करना हो या जबलपुर से सुमित्रा वाल्मीकि को राज्यसभा भेजना हो। भाजपा लगातार दलित वोटरों को सीधा मैसेज देने की कोशिश कर रही है।

दरसल मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति (SC) के लिए 35 सीटें रिजर्व है। वहीं प्रदेश की 84 विधानसभा सीटों पर दलित वोटर जीत हार तय करते है। मध्यप्रदेश में 17 फीसदी दलित वोटर बैंक है और विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी के साथ यह वोट बैंक एकमुश्त जाता है वह सत्ता में काबिज हो जाती है।

आदिवासी वोटर बनेगा गेमचेंजर?-मध्यप्रदेश में 2023 विधानसभा चुनाव से पहले आदिवासी वोटरों को रिझाने में भाजपा और कांग्रेस दोनों एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए है। दरअसल मध्यप्रदेश की सियासत में आदिवासी वोटर  गेमचेंजर साबित होता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक मध्यप्रदेश की आबादी का क़रीब 21.5 प्रतिशत एसटी हैं। इस लिहाज से राज्य में हर पांचवा व्यक्ति आदिवासी वर्ग का है। राज्य में विधानसभा की 230 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। वहीं 90 से 100 सीटों पर आदिवासी वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है। 

2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोट बैंक भाजपा से छिटक कर कांग्रेस के साथ चला गया था और कांग्रेस ने 47 सीटों में से 30 सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया था। वहीं 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी। ऐसे में देखा जाए तो जिस आदिवासी वोट बैंक के बल पर भाजपा ने 2003 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की थी वह जब 2018 में उससे छिटका को भाजपा को पंद्रह ‌साल बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा। 

भाजपा आदिवासी वोट बैंक को अपने साथ लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की मौजदूगी में पार्टी राजधानी भोपाल से लेकर जबलपुर तक पिछले दिनों बड़े कार्यक्रम कर चुकी है। वहीं कांग्रेस आदिवासी समुदाय पर अत्याचार को लेकर (सिवनी आदिवासी मॉब लिंचिंग, लटेरी में आदिवासी की हत्या आदि) को लेकर शिवराज सरकार को लगातार घेर रही है।
 
2023 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा आने वाले दिनों में आदिवासी समुदाय से आने वाले किसी नेता को बड़ी जिम्मेदारी सौंपकर आदिवासी वोट बैंक को सीधा संदेश दे सकती है। आदिवासी वोट बैंक को लेकर संघ भी लगातार अपनी चिंता जताता है। 
 
मध्यप्रदेश के 2023 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटर सियासी दलों के लिए ट्रंप कार्ड साबित होने वाला है। कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में जो आदिवासी वोटर उसके साथ आया था वह बना रहा है और एक बार फिर वह प्रदेश में अपनी सरकार बना सके। 

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