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'गड्‍ढे' में व्यापार, इंदौर के प्रशासन और नगर निगम से व्यापारी नाराज

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-धर्मेन्द्र सांगले
इंदौर। कोरोना महामारी के बाद शहर के हृदय स्थल राजवाड़ा क्षेत्र में बाजारों में चहल-पहल तो बढ़ी है, लेकिन कुछ इलाकों में खुदाई के चलते व्यापारी वर्ग में खासी नाराजगी है। क्योंकि गड्‍ढों के कारण ग्राहकों को दुकानों तक पहुंचने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में भीड़ और गड्‍ढों के चलते कई ग्राहक तो राजवाड़े के बाजारों की ओर रुख ही नहीं कर रहे हैं। साइन बोर्ड के टैक्स को लेकर भी व्यापारियों में गुस्सा है। 
 
कपड़ा बाजार, सराफा बाजार, बर्तन बाजार आदि राजवाड़ा क्षेत्र के बाजारों के व्यापारियों में इस बात को लेकर गुस्सा है कि दिवाली के आसपास ही खुदाई की गई, उनका मानना है कि यह काम दिवाली बाद भी किया जा सकता था। चूंकि अभी धंधे का समय है, ऐसे में उनकी ग्राहकी पर भी इसका साफ असर दिखाई दे रहा है। इससे पहले गत वर्षों में भी निगम दिवाली के आसपास तोड़फोड़ करवा चुका है।
 
सोना-चांदी व्यापारी संघ के अध्‍यक्ष अनिल रांका ने वेबदुनिया से बातचीत में कहा कि इस बार बाजार में रौनक है। लोग लाइटवेट एवं रेगुलर यूज के लिए ज्वेलरी खरीद रहे हैं। फैंसी आइटमों में रुझान है। कोविड के बाद लोगों के मानस में भी बदलाव आया है। निश्चित ही बाजार के लिए यह अच्छे संकेत हैं। 
वहीं रांका यह भी कहते हैं कि राजवाड़ा के आसपास खुदाई से बाजारों की ग्राहकी पर असर पड़ा है। यह काम दिवाली के एक माह बाद भी किया जा सकता था। हालात यह हैं लोग बिना धक्का-मुक्की के आगे नहीं बढ़ पाते। जहां तक दुकान पर साइन बोर्ड का सवाल है तो हम हमारी दुकान में कितना भी बड़ा बोर्ड लगाएं, किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यदि नगर निगम का रुख नहीं बदलता है तो हम इसका पुरजोर विरोध करेंगे, जरूरत पड़ी तो सड़क पर उतरकर आंदोलन भी करेंगे। 
 
इंदौर रेडीमेड वस्त्र व्यापारी संघ के अध्‍यक्ष आशीष निगम ने कहा कि खुदाई से व्यापारी परेशान हैं, लेकिन व्यापार अच्छा होने से लोगों की नाराजगी कम हुई है। लोग खरीदारी के लिए राजवाड़ा जरूरत आते हैं। साइन बोर्ड की जहां तक बात है तो गारमेंट इंडस्ट्री को इसकी जरूरत नहीं होती, लेकिन अन्य व्यापारियों को इससे समस्या है तो इसे दूर करना चाहिए। 
 
रिटेल गारमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष अक्षय जैन ने सड़क की खुदाई पर कहा कि गड्‍ढों में व्यापार दब गया है। यह कहीं न कहीं नगर निगम और प्रशासन की रणनीति में चूक है। ग्राहक दुकानदारों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। पेट काटकर विकास नहीं होना चाहिए। ग्राहक और व्यापारी सभी प्रशासन को कोस रहे हैं। हम पहचान के आधार पर ही व्यापार-व्यवसाय करते हैं। ऐसे में पहचान पर टैक्स लगाना गलत है। हम साइन बोर्ड पर टैक्स लगाने के फैसले का विरोध करेंगे। 
 
कपड़ा व्यवसायी श्रीनी अग्रवाल कहती हैं कि स्मार्ट सिटी के कामों ने व्यापारियों को काफी परेशान किया है। 11 अप्रैल से शुरू हुई खुदाई के बाद से ही व्यापारी परेशान हैं। ग्राहकों को आने में मुश्किल होती है। नगर निगम के झोनल अधिकारियों को किसी समस्या को लेकर फोन लगाते हैं तो वे या तो फोन नहीं उठाते या फिर उनका फोन स्विच ऑफ होता है। 
बर्तन व्यापारी महेन्द्र जैन कहते हैं बाजार सामान्य हैं। लोग जरूरी सामान ही खरीद रहे हैं। लक्जरी आइटमों में लोगों की रुचि नहीं हैं। हम 16-16 घंटे काम करते हैं, सरकार को जीएसटी चुकाते हैं, फिर भी व्यापारियों को परेशान किया जाता है। फुटपाथ पर लोगों को कारोबार की अनुमति देने से हमारे धंधे पर नकारात्मक असर पड़ा है।  
 
हालांकि बर्तन निर्माता एवं विक्रेता संघ के अध्‍यक्ष राजेश मि‍त्तल का मानना है कि पिछले सालों के मुकाबले व्यापार में करीब डेढ़ गुना की वृद्धि हुई है। इस बार तांबे के बर्तनों की मांग ज्यादा है। नगर निगम की साइन बोर्ड पर टैक्स लगाने की नीति का मित्तल विरोध करते हैं। वे कहते हैं कि खुदाई से व्यापारियों और ग्राहकों दोनों में ही आक्रोश है। 
क्या कहते हैं महापौर : शहर के महापौर पुष्य मित्र भार्गव ने कहा कि कोई भी दुकानदार अपनी दुकान के बाहर खुद की दुकान का एडवरटाइज करने के लिए तीन बाय तीन फुट को साइन बोर्ड निशुल्क लगा सकता है। अपनी दुकान पर किसी और कंपनी लगाने पर 2017 से ही शुल्क लिया जा रहा है। अभी भी उन्हीं होर्डिंग के लिए नोटिस भेजा गया है, जो कि दीपावली तक नहीं लेने के लिए हम कह चुके हैं। खुद की दुकान का कोई शुल्क नहीं है। कुछ लोग इसको लेकर भ्रम फैला रहे हैं। इस भ्रम का कोई इलाज नहीं है। कोई नया टैक्स नहीं वसूला जा रहा है। 
 

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