- पांच बार विधायक रहे चाचा-भतीजा
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यहां से तीन चुनाव महेश जोशी लड़े, पांच अश्विन जोशी और अब पिंटू जोशी
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पिंटू जोशी को मिला दिग्विजय का साथ
Madhya Pradesh Assembly Elections 2023: इंदौर की कांग्रेस राजनीति में महेश जोशी का कैसा दबदबा था, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1980 से 2018 तक इंदौर-3 विधानसभा क्षेत्र से आठ बार जोशी परिवार के पक्ष में उम्मीदवारी का फैसला हुआ। इसमें से पांच चुनाव में इन्हें जीत मिली और तीन में शिकस्त खाना पड़ी। इसी परिवार के पिंटू जोशी अब इंदौर-3 से कांग्रेस के उम्मीदवार बनाए गए हैं।
1980 में सबसे पहले महेश जोशी यहां से चुनाव लड़कर विधायक बने थे। 43 साल पहले शुरू हुए इस सिलसिले में सिर्फ 1993 में जोशी परिवार का कोई सदस्य मैदान में नहीं था। इसके पहले महेश जोशी और बाद में अश्विन जोशी हर चुनावी मैदान में दिखे। इस बार कांग्रेस ने महेश जोशी के बेटे पिंटू को मौका दिया है। वैसे देखा जाए तो इंदौर की कांग्रेस राजनीति में 51 साल में जोशी परिवार का यह 11वां टिकट है, क्योंकि इसके पहले महेश जोशी 1972 और 1977 में इंदौर-1 से चुनाव लड़ चुके थे।
1980 में यहां से पहला चुनाव लड़ा था महेश जोशी ने : इंदौर-3 में जोशी परिवार की इंट्री 1980 में हुई, तब महेश जोशी ने इंदौर 3 से चुनाव लड़ा और राजेंद्र धारकर को हराकर विधानसभा में पहुंचे। 1985 में वे फिर इसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और सुमित्रा महाजन को हराकर विधायक बने। 1985 से 90 के दौर में वे मंत्री भी रहे। 1990 में इसी विधानसभा क्षेत्र में गोपी नेमा के हाथों उन्हें शिकस्त खाना पड़ी। 1993 में जोशी चुनाव नहीं लड़े और अपने कट्टर समर्थक अनवर खान को टिकट दिलवाया, लेकिन वे जीत नहीं पाए।
8 साल बाद मिला था अश्विन जोशी को मौका मिला : 1993 से 2003 तक मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार के दौर में महेश जोशी की स्थिति इंदौर में बेताज बादशाह जैसी थी और अपने राजनीतिक दबदबे का उपयोग जोशी ने भतीजे अश्विन को इंदौर 3 से ही टिकट दिलवाया और जितवाया भी। अश्विन छात्र राजनीति की उपज थे और होल्कर कॉलेज एवं इंदौर विश्वविद्यालय की राजनीति में इनका अच्छा प्रभाव था। वे इसी विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक बने।
चाचा की रणनीति और भतीजे ने बाजी मार ली : 1993 में महेश जोशी को गोपी नेमा ने चुनाव हराया था। इस चुनाव में निर्दलीय बाला बेग जोशी की हार का कारण बने थे। 1998 में अश्विन जोशी और गोपी नेमा ही आमने-सामने थे, लेकिन अपने चाचा की रणनीति के चलते अश्विन ने नेमा को शिकस्त देकर चाचा की हार का बदला ले लिया था।
उमा लहर में भी अपराजित रहे : 2003 की उमा लहर में भी कांग्रेस ने अश्विन जोशी को टिकट दिया था। उनका मुकाबला विष्णुप्रसाद शुक्ला के बड़े बेटे राजेन्द्र शुक्ला से हुआ था। बाजी जोशी के पक्ष में रही थी और वे दूसरी बार यहीं से विधायक बने। 2008 में फिर जोशी और नेमा आमने सामने थे और जीत जोशी को ही मिली। वे इस विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार विधायक बनने वाले पहले नेता थे।
2013 और 2018 में मिली हार : 2013 में फिर कांग्रेस ने यहां से अश्विन जोशी को मौका दिया, मुकाबले में उषा ठाकुर थी, उनका यहां से पहला चुनाव था और जोशी को शिकस्त देकर वे यहां से विधायक बनीं। 2018 में अश्विन जोशी और आकाश विजयवर्गीय आमने-सामने रहे और जीत विजयवर्गीय की हुई।
और... ऐसे मिला पिंटू को मौका : 2018 में यहां से कांग्रेस के टिकट के लिए अश्विन जोशी और पिंटू जोशी में प्रतिस्पर्धा थी, तब भी पिंटू का दावा अश्विन से ज्यादा मजबूत था, लेकिन अंतिम समय में दिग्विजय सिंह की मध्यस्थता के चलते महेश जोशी ने बेटे की बजाय भतीजे को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया था। तब अश्विन ने कहा था कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा और अगली बार वे खुद को उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर कर लेंगे।
इस बार पिंटू शुरू से ही यह स्पष्ट कर चुके थे कि वे पीछे हटने वाले नहीं है। अश्विन भी मैदान में आ गए। इन दोनों भाइयों के अलावा प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री अरविंद बागड़ी भी उम्मीदवारी की दौड़ में थे। आखिरी दौर में पिंटू और बागड़ी के बीच फैसला होना था और गुरुवार देर रात जब सूची जारी हुई, उसके पहले तक दोनों नामों को लेकर अटकलबाजी चलती रही।
दिग्विजय का वीटो, कमलनाथ का सर्वे और गेहलोत-अंबिका सोनी की मदद : दिग्विजय सिंह इस विधानसभा क्षेत्र से शुरू से ही पिंटू को मौका देने के पक्ष में थे। उन्होंने अश्विन को यह स्पष्ट भी कर दिया था। आखिरी तक उन्होंने यही स्टैंड रखा। कमलनाथ के सर्वे में पिंटू को दूसरों से भारी बताया गया था। कमलनाथ इसी सर्वे पर अड़े रहे।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत और कांग्रेस की वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी ने महेश जोशी से पुराने संबंधों के मद्देनजर पिंटू की खुलकर मदद की। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से महेश जोशी के खास समर्थक अजय चौरड़िया की नजदीकी भी पिंटू के काम आई।