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कानपुर में दो दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर, गठबंधन बना मुसीबत

हमें फॉलो करें कानपुर में दो दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर, गठबंधन बना मुसीबत

अवनीश कुमार

, शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019 (20:46 IST)
कानपुर। उत्तरप्रदेश चौथे चरण का मतदान 29 अप्रैल को होना है जिसको लेकर सभी पार्टियां किसी प्रकार की  कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही हैं और चौथे चरण में जिन-जिन दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, उनको  जिताने के लिए सभी पार्टी के आलाकमान रात-दिन किए हुए हैं। 
 
इसी के मद्देनजर उद्योग नगरी कहे जाने वाले कानपुर में भी चुनाव बेहद दिलचस्प होता नजर आ रहा है। जहां  एक ओर कांग्रेस ने अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल को एक बार फिर कानपुर  से चुनावी मैदान में उतार दिया है, तो वहीं भारतीय जनता पार्टी ने वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी की जगह  कानपुर से उत्तरप्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री व गोविंद नगर विधानसभा से विधायक सत्यदेव पचौरी पर दांव  लगाया है। साथ ही साथ सपा-बसपा का गठबंधन भी पीछे नहीं है और उसने यहां से रामकुमार निषाद को  प्रत्याशी बनाया है।
 
सभी पार्टियों के प्रत्याशियों के आला नेता मतदान से पूर्व अपने-अपने प्रत्याशी को मजबूत कर चुनावी दंगल में  विजय पताका फहराने के लिए मजबूत करने में लगे हैं। लेकिन वहीं कानपुर के 2 दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर  लगी है। ऐसा होना लाजमी है, क्योंकि जहां कांग्रेस से श्रीप्रकाश जायसवाल हैं, तो वहीं भारतीय जनता पार्टी से  सत्यदेव पचौरी मैदान में हैं।
 
दोनों ही नेता उम्रदराज नेताओं की गिनती में आते हैं और पार्टी में दोनों का अपना-अपना एक बड़ा कद है। लेकिन  अगर अतीत के पन्नों पर नजर डालें तो इस बार का लोकसभा चुनाव कानपुर का बेहद दिलचस्प होता नजर आ  रहा है, जहां 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सत्यदेव पचौरी को उम्मीदवार बनाया था लेकिन वे  चुनाव हार गए थे। तब कांग्रेस के उम्मीदवार श्रीप्रकाश जायसवाल ने 2,11,109 वोट पाकर पचौरी को हराया था।  तब पचौरी को 2,05,471 वोट मिले थे।
 
2009 में पार्टी ने पचौरी को मौका नहीं दिया। उनके बदले में सतीश महाना मैदान में उतरे लेकिन श्रीप्रकाश  जायसवाल से उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा। 2014 के चुनाव में मोदी लहर ने काम किया और वाराणसी  संसदीय सीट छोड़कर आए सांसद मुरली मनोहर जोशी ने कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल को सांसद बनने से रोक  दिया। इस चुनाव में श्रीप्रकाश करीब 2.22 लाख वोटों से हारे थे। लेकिन इस बार कानपुर लोकसभा सीट पर  मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।
 
क्या कहता है समीकरण? : कानपुर लोकसभा सीट में 16 लाख वोटर हैं। इसमें पुरुष वोटरों की संख्या 8,74,299 है व महिला वोटरों की  संख्या 7,23,147, वहीं थर्ड जेंडर की संख्या 145 है। कानपुर लोकसभा क्षेत्र ब्राह्मण बहुल क्षेत्र है। इस सीट में  शहरी क्षेत्र की कानपुर की 5 विधानसभाएं आती हैं जिसमें सामान्य जाति के वोटरों की संख्या 5,16,594, ओबीसी  वोटरों की संख्या 2,90,721, अल्पसंख्यक की संख्या 4,07,182 और अनुसूचित जाति की संख्या 3,80,950 है।
 
दोनों दिग्गजों की अच्छी पैठ है पार्टी में : जानकारों की मानें तो पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के बेहद खास लोगों में से एक श्रीप्रकाश जायसवाल माने  जाते हैं और कांग्रेस पार्टी के अंदर इनका एक बड़ा कद है। कांग्रेस के अंदर वे गांधी परिवार के बेहद करीबी माने  जाते हैं। लोग ऐसा भी कहते हैं कि पार्टी इनकी ईमानदारी व नेक छवि के चलते इन पर बहुत विश्वास करती है।  श्रीप्रकाश जायसवाल कानपुर शहर के मेयर भी रहे हैं। बाद में वे लगातार 3 बार सांसद बने।
 
यूपीए सरकार में वे गृह राज्यमंत्री रहे। इसके बाद केंद्रीय कोयला मंत्री भी रहे, तो वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव  में बीजेपी ने सत्यदेव पचौरी को प्रत्याशी बनाया है। सत्यदेव पचौरी संघ परिवार से जुड़े हैं। संघ परिवार के अंदर  सत्यदेव पचौरी की एक अलग ही और जमीनी नेता के रूप में पहचान है। 
 
पार्टी इन्हें साफ-सुथरा व नेक छवि का नेता मानती है और सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि संघ के करीबी  नेताओं में से एक होने के चलते भारतीय जनता पार्टी ने इन्हें कानपुर से प्रत्याशी बनाया है जबकि सत्यदेव पचौरी  इस समय उत्तरप्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं व गोविंद नगर विधानसभा से विधायक हैं। दोनों ही दिग्गज नेताओं का राजनीतिक सफर बहुत लंबा है व कानपुर से दोनों का बेहद लगाव है। एक बार फिर दोनों दिग्गज  नेता चुनावी मैदान में आमने-सामने हैं।
 
सपा-बसपा गठबंधन : वहीं सपा बसपा गठबंधन होने के बाद सपा ने रामकुमार निषाद को प्रत्याशी बनाया है। कानपुर में बड़ी संख्या में  ओबीसी, अनुसूचित जाति और मुस्लिम वोटर हैं। सपा अब इन्हीं वोटरों पर सेंध लगाना चाहती है। रामकुमार निषाद मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के खास हैं। उन्नाव की सदर विधानसभा से विधायक रह चुके हैं। रामकुमार निषाद के पिता मनोहर लाल 1977 में कानपुर लोकसभा सीट से सांसद भी रह चुके हैं। आपातकाल के वक्त बंद हुए बंदियों की पैरवी कर चुके रामकुमार निषाद की गिनती बड़े अधिवक्ताओं में होती है।

मैदान में उतरे स्टार प्रचारक : कानपुर लोकसभा सीट जितनी महत्वपूर्ण सत्यदेव पचौरी व श्रीप्रकाश जायसवाल के लिए है तो उससे कहीं ज्यादा इस सीट को बचाए रखना बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण है। अब ऐसे में जहां कांग्रेस प्रत्याशी श्रीप्रकाश जायसवाल के पक्ष में प्रियंका गांधी ने रोड शो करके जनता को कांग्रेस के पक्ष में करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है, तो वहीं भाजपा के भी सत्यदेव पचौरी के पक्ष में मैदान में योगी आदित्यनाथ, उमा भारती यह व फायर ब्रांड नेता हैं। जिनकी सभाओं में यह माना जाता है कि यह एक वर्ग को एकजुट करने में महारथ हासिल किए हुए हैं।

इसी के मद्देनजर योगी आदित्यनाथ व उमा भारती ने बीजेपी प्रत्याशी सत्यदेव पचौरी के पक्ष में जनसभा कर पूरा-पूरा प्रयास किया है कि एक वर्ग विशेष को एकजुट किया जा सके। लेकिन इनकी मेहनत कितनी रंग लाती है, यह तो 23 मई को ही पता चल पाएगा।
 
मुसीबत बना गठबंधन : अतीत के पन्नों पर नजर डालें तो कानपुर लोकसभा सीट पर कभी भी सपा और बसपा का जादू नहीं चल पाया लेकिन दोनों ही पार्टियों के प्रत्याशी कहीं न कहीं कांग्रेस व भाजपा के लिए मुसीबत बनकर सामने खड़े रहे। ऐसा ही कुछ 2004 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला था, जब पहली बार सत्यदेव पचौरी व श्रीप्रकाश जायसवाल आमने-सामने थे और ऐसे में समाजवादी पार्टी की ओर से हाजी मुश्ताक सोलंकी थे।
 
उस समय भी स्थितियां ऐसी बन गई थीं कि जहां सत्यदेव पचौरी को 1-1 वोट की लड़ाई करनी पड़ रही थी तो वहीं श्रीप्रकाश जायसवाल का जीत का अंतर बेहद कम रह गया था। इसके पीछे की मुख्य वजह कोई और नहीं, समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी हाजी मुश्ताक सोलंकी थे जिन्होंने ठीक-ठाक वोट बीजेपी का और सर्वाधिक वोट कांग्रेस का काट दिया था और समाजवादी पाले में ले आए थे। इसके चलते बीजेपी के प्रत्याशी को सत्यदेव पचौरी से हार का सामना करना पड़ा था तो वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी श्रीप्रकाश जायसवाल का जीत का अंतर बेहद कम रह गया था।
 
और, अब कुछ ऐसी ही स्थिति 2019 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिल रही है, जहां इस बार समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन के रूप में रामकुमार निषाद को प्रत्याशी बनाया है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो यह गठबंधन कांग्रेस व बीजेपी को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। हार-जीत किसकी होगी, यह तो 23 मई को तय होगा लेकिन अगर स्थिति 2004 जैसी रहे तो यह गठबंधन कहीं न कहीं बीजेपी और कांग्रेस के लिए रोड़ा साबित हो सकता है। इसको लेकर दोनों ही दिग्गज खासे परेशान दिख रहे हैं। कानपुर नगर की सीट त्रिकोणीय संघर्ष के रूप में तब्दील होता नजर आ रही है।
 
क्या बोले प्रत्याशी? : कानपुर से कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशी श्रीप्रकाश जायसवाल ने बताया कि कानपुर की जनता से उनका बेहद लगाव है और जनता उन्हें अपना मानती है इसलिए उसका आशीर्वाद मुझे जरूर से जरूर मिलेगा। इसका मुझे पूर्ण भरोसा है। 5 साल केंद्र में रहते हुए भारतीय जनता पार्टी ने जनता के साथ सिर्फ छलावा ही किया है और इसका जवाब जनता देने के लिए तैयार खड़ी है।
 
कानपुर से बीजेपी लोकसभा प्रत्याशी सत्यदेव पचौरी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश की जनता पुन: प्रधानमंत्री बनाना चाहती है जिसके चलते कानपुर की जनता से बेहद प्यार मिल रहा है। मुझे पूरा भरोसा है कि मैं चुनाव कानपुर से जीतकर दिल्ली जाऊंगा। 2004 के लोकसभा चुनाव व आज के लोकसभा चुनाव में बहुत बड़ा परिवर्तन आ चुका है और जनता जागरूक हो चुकी है। इसलिए 2004 के चुनाव से 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना न करें। कानपुर की जनता भारी मतों के साथ मुझे विजयी बना रही है।
 
कानपुर से सपा-बसपा गठबंधन के लोकसभा प्रत्याशी रामकुमार निषाद ने बताया कि कानपुर की जनता दोनों ही पार्टियों को मौका देकर देख चुकी है और दोनों ही पार्टियों के सांसदों ने सिर्फ कानपुर की जनता के साथ छलावा किया है। इस बार कानपुर की जनता बड़ा परिवर्तन लोकसभा में करने जा रही है। 
 
निश्चित तौर पर सपा-बसपा के गठबंधन को वोट के रूप में प्यार देकर दोनों पार्टियों के अहंकार को तोड़ेगी। जहां पिछले 5 सालों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सिर्फ जुमलेबाजी के साथ-साथ कोई काम नहीं किया है, तो वहीं हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के कार्यकाल में कानपुर का बेहद विकास हुआ था इसलिए हमें पूर्ण भरोसा है कि गठबंधन ही कानपुर में जीत का परचम फहराने जा रहा है। 

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