कानपुर। औद्योगिक नगरी कानपुर की मिलों को चालू करने के लिए 1990 के बाद हर लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा बड़े-बड़े वादे किए जाते थे। इसके बावजूद यहां की मिलों की चिमनियों से आज तक धुआं नहीं निकल सका। इस बार लोकसभा चुनाव में तो उम्मीदवारों द्वारा मिलों के चालू करने पर चुप्पी साध ली गई है।
कोई भी उम्मीदवार किसी भी जनसभा अब इसे मुद्दा नहीं बना रहा है। कानपुर की जनता अब यह समझने लगी कि अब शायद ही कानपुर की चिमनियों से धुआं निकल पाएगा। कानपुर में उद्योग की शुरुआत अंग्रेजों के समय हुई थी और देश की आजादी तक कानपुर ने भारत ही नहीं विश्व में औद्योगिक नगरी के रूप में अपनी पहचान बना ली थी।
यह सिलसिला आजादी के बाद 1990 तक चलता रहा और दूर दराज के लोगों को रोजगार का कानपुर माध्यम बन गया था। इसके बाद 1995 आते-आते धीरे-धीरे यहां की मिलें बंद होती गईं और लोगों का रोजगार छिनता चला गया। हालांकि लाल इमली चलती रही पर आज उसकी भी स्थित दयनीय हो गई है और इन दिनों बंदी पर है। इसके साथ ही वेतन न मिलने से कर्मचारियों को भारी परेशानियों का सामना करान पड़ रहा है।
वहीं, दूसरी ओर कानपुर की बीआईसी व एनटीसी की बंद मिलें जो बीते लगभग तीन दशकों से विभिन्न सियासी दलों के लिए वोट बटोरने का जरिया बनती चली गईं, लेकिन चुनाव बाद किसी दल या नेता ने इन्हें बदहाली से उबारने की कोशिश करना तो दूर, इनकी चर्चा तक करना पसंद नहीं किया। इसे यूं भी कह सकते हैं कि बीते चुनावों में जीता-हारा कोई भी हो लेकिन छली हमेशा बंद मिलों की ठंडी पड़ी चिमनियां ही गई हैं।
हड़तालों ने बिगाड़ा खेल : ब्रिटिश इंडिया कॉरपोरेशन (बीआईसी) की एल्गिन मिल नंबर एक व नंबर दो, लाल इमली, एनटीसी की म्योर मिल या लक्ष्मीरतन जैसी पांच बड़ी मिलों की चिमनियों का एक समय धुआं बराबर निकलता था। इसके साथ ही कानपुर में करीब एक दर्जन मिलों से हजारों कामगारों की रोजी-रोटी जुड़ी थी। इन मिलों में पुरानी टेक्नोलॉजी की मशीनों का नवीनीकरण न करने और प्रबंधन की खामियों के चलते भारी कर्ज में डूबती चली गईं। रही-सही कसर श्रमिक हड़तालों ने पूरी कर दी। हड़ताल होने से यहां की मिलें भारी घाटे में चलने लगीं और धीरे-धीरे धीरे-धीरे इनमें ताला पड़ गया।
सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप का चला दौर : ब्रिटिश काल से चल रही इन मिलों की आर्थिक दशा 1990 तक इतनी बिगड़ गई कि इन मिलों पर बंदी का खतरा मंडराने लगा। सरकार, प्रबंधन या कर्मचारी यूनियनों, किसी भी पक्ष ने मिलों की बदहाली या इन पर मंडरा रहे बंदी के खतरे को गंभीरता से नहीं लिया।
नतीजतन वर्ष 1995 आते-आते लाल इमली छोड़ शेष लगभग सभी मिलें बंद हो गईं। बस इसके बाद शुरू हुआ इन बंद मिलों का सियासी इस्तेमाल और चुनाव ही नहीं इसके आगे-पीछे भी कानपुर आने वाले सभी सियासी दलों के नेताओं ने मिलों की बंदी को लेकर आरोप-प्रत्यारोप के साथ-साथ आश्वासनों और घोषणाओं का सिलसिला शुरू कर दिया। लेकिन, कानपुर की इन मिलों की चिमनियों से धुआं नहीं निकल सका और अब तो लोग मिलों में रोजगार की आस भी छोड़ चुके हैं।
सिर्फ सबने किया वादा : एक-एक कर मिलों की चिमनियों के ठंडा होने के बाद इनमें फिर से धुआं उगलने यानी चालू होने की आस 1996 में बंधी थी। यहां पर भाजपा को सत्ता में लाने को प्रयासरत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने फूलबाग मैदान की चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि अगर भाजपा सरकार में आई तो कानपुर की बंद मिलों में से कम से कम एक को तत्काल चालू करा दिया जाएगा।
इसके बाद वर्ष 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 यानी बारहवीं लोकसभा से लेकर सोलहवीं लोकसभा के चुनावों तक मिलों की बंदी कानपुर से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और सियासी दलों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा बनी रही। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने भी यहां की मिलों को चालू करने का वादा किया था।
इस बार तो मुद्दा ही नहीं बन रहा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, मनमोहन सिंह और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावों में यहां की मिलों को चालू करने का वादा भी किया था। लेकिन अबकी बार लोकसभा चुनाव में तो मिलों को चालू करने का मुद्दा ही नहीं बन पा रहा है। किसी भी पार्टी का उम्मीदवार जनसभाओं में इस बात की अब चर्चा भी नहीं कर रहा है। यहां की जनता जो रोजगार की आस लगाए थी, वह अब टूटती दिख रही है।
सरकार से थी आस : इंडियन इंड्रस्ट्रीज एसोसिएशन (आईआईए) के अध्यक्ष सुनील वैश्य का कहना है कि जब प्रदेश में भाजपा की सरकार आई तो उम्मीद बंधी थी कि प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया के चलते कानपुर की मिलें चालू हो जाएंगी। यह उम्मीद तब और बढ़ गई जब प्रदेश सरकार ने कानपुर से दो विधायकों को मंत्री बना दिया। लेकिन आज भी स्थित ज्यों का त्यों बनी हुई है। यह अलग बात है कि डिफेंस, इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल एवं होजरी, चमड़ा की जरूरतों के आधार पर बनने वाले टूल रूम का शिलान्यास 18 अक्टूबर 2016 को अथर्टन मिल परिसर में केंद्रीय एमएसएमई मंत्री कलराज मिश्र ने किया था।
शहर की शान हो सकती हैं एनटीसी और बीआईसी : सुनील वैश्य का कहना है कि एक समय था जब मिलों के सायरन से यह शहर चलता था। अब तो उद्योग से जुड़े शहर से ही दो मंत्री हैं, चाहें तो इन मिलों को फिर से चला सकते हैं। ये मिलें चालू हुईं तो फिर शहर की शान हो सकती हैं। बताया कि नगर में एनटीसी के अंतर्गत लक्ष्मी रतन कॉटन मिल, अथर्टन वेस्ट कॉटन मिल, स्वदेशी कॉटन मिल, न्यू विक्टोरिया मिल और म्योर मिल आती हैं। इसी तरह बीआईसी के अंतर्गत लाल इमली, एल्गिन मिल नंबर एक, एल्गिन मिल नंबर दो आती हैं।