सन्निपात में सच

Truth in typhus
गिरीश पांडेय
सच वर्षों से बीमार चल रहा है। झाड़ फूंक से लेकर एलोपैथ, आयुर्वेद, होम्योपैथ, यूनानी आदि हर विधा से इलाज हो चुका है। पर, कोई लाभ नहीं। किसी को मर्ज ही नहीं समझ में आ रहा है। 
 
इधर वर्षों की बीमारी से सच इतना अशक्त हो गया है कि उसका खड़ा होना भी मुश्किल लग रहा है। कुछ नैतिक, संस्कारी, आदर्शवादी और सैद्धांतिक लोग कभी-कभार उसे देखने आते हैं। कभी-कभार, क्योंकि ऐसे लोग हैं ही कितने? ये लोग भरोसा देते हैं कि शीघ्र ही तुम पहले जैसे चंगे हो जाओगे। अंत में जीत सत्य की ही होती है। हर जगह कहा गया है, 'सत्यमेव जयते'। पर, ठीक होने को कौन कहे, एक दिन एक ऐसी घटना हुई कि सच सन्निपात में चला गया।
 
सच और झूठ की पूरी कहानी कुछ इस प्रकार है। दरसल सच और झूठ दोनों सहोदर भाई हैं। एक ही मां के संतान। साथ-साथ पले-बढ़े, खेले-कूदे और पढ़े। दोनों में प्रेम भी बहुत था। एक दूसरे पर जान छिड़कते थे। झूठ, सच का बहुत सम्मान करता था।

हुआ यह कि झूठ की दोस्ती उन लोगों से हो गई जिनके बारे में रामचरितमानस में तुलसीदास ने लिखा है, 'बरु भल बास नरक कर ताता। दुष्ट संग जनि देइ बिधाता"। दोस्ती का दायरा बढ़ा तो इसमें दुष्ट के साथ मक्कार, कमीने और धूर्त आदि भी शामिल हो गए। बावजूद इसके झूठ अपनी बीबी और बच्चों से लगातार यह कहता था कि बड़े भैया की इज्जत करना। उनको ही अपना आदर्श मानना।
 
इधर झूठ को अपने बाकी साथियों की दोस्ती रास आई। वह दिन दूना, रात चौगुना तरक्की करने लगा। वह जहां भी हाथ डालता, वहीं से उसको अभूतपूर्व सफलता मिलती। ठेकेदारी से लेकर नेतागिरी तक हर क्षेत्र में उसकी तूती बोलने लगी। रोज शाम को उसकी बेहद शानदार महफिल सजती। उसमें बड़े-बड़े नामचीन लोग शिरकत करते।
 
उधर सच लगातार अपने घर परिवार और समाज में उपेक्षित होकर अलग-थलग पड़ता गया। वह खुद को थका और कमजोर महसूस करने लगा। धीरे-धीरे वह गहरे अवसाद में चला गया। घर पर हर तरह के इलाज से कोई लाभ नहीं हुआ। नौबत अस्पताल में भर्ती कराने की आई। मुश्किल से घर वालों ने उसे भर्ती कराया। इलाज शुरू हुआ तो देखा कि मक्कार उसका बुखार नाप रहा है। धूर्त बीपी की मशीन लिए खड़ा है। खून के नमूने लेने के लिए मोटी सिरिंज लेकर कमीना खड़ा है।

यह सब देख सच की आंखें फटी जा रही थीं। कुछ देर बाद सफेद एप्रन पहने, गले में आला और मुंह पर मास्क लगाए बड़े डॉक्टर साहब आए। मुंह से मास्क हटाकर जैसे ही उसने सच से उसके रोग के बाबत कुछ पूछना चाहा, वह बेहोशी में चला गया। दरअसल डॉक्टर के भेष में उसके सामने साक्षात उसका सहोदर भाई झूठ खड़ा था।
(ये लेखक के अपने विचार हैं, वेबदुनिया का इससे सहमत होने आवश्यक नहीं है) 

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