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जन्म पत्रिका में दो ग्रहों के संयोग से बनता है 'युति' योग, जानिए कैसे बनते हैं शुभाशुभ योग

हमें फॉलो करें जन्म पत्रिका में दो ग्रहों के संयोग से बनता है 'युति' योग, जानिए कैसे बनते हैं शुभाशुभ योग
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पं. हेमन्त रिछारिया

Yoga in Kundali
जानिए कैसी होती हैं युतियां...?

 
ज्योतिष शास्त्र के फलित में अनेक ग्रहयोग व युतियों का प्रभाव होता है। कुछ योग सुप्रसिद्ध योगों की श्रेणी में आते हैं जिन्हें राजयोग कहा जाता है। लेकिन जन्म पत्रिका में कुछ ग्रहयोग ऐसे भी होते हैं, जो दो ग्रहों के संयोग से बनते हैं जिन्हें 'युति' आधारित योग कहा जाता है। आज हम 'वेबदुनिया' के पाठकों को कुछ ऐसी महत्वपूर्ण युतियों व उनसे बनने वाले शुभाशुभ योगों के बारे में जानकारी देंगे।

 
1. बुध व सूर्य युति- सूर्य नवग्रहों का राजा है वहीं बुध को ज्योतिष शास्त्र में राजकुमार माना गया है। जब भी किसी जन्म पत्रिका में बुध एवं सूर्य एकसाथ एक ही भाव में स्थित होते हैं तो इसे सूर्य-बुध कहते हैं। इस युति को ज्योतिष में 'बुधादित्य' योग के नाम से जाना जाता है। यह एक शुभ योग होता है।

 
2. गुरु व चंद्र युति- बृहस्पति को नवग्रहों के गुरु माना गया है, वहीं चंद्र को नवग्रहों में रानी की पदवी प्राप्त है। जब भी किसी जन्म पत्रिका में गुरु व चंद्र एक ही भाव में स्थित होते हैं अर्थात चंद्र व गुरु की युति होती है तो इस युति को 'गजकेसरी' योग कहा जाता है। यह एक सुप्रसिद्ध राजयोग है। यह युति अत्यंत शुभ होती है।
 
3. चंद्र व शुक्र युति- शुक्र को ज्योतिष में नैसर्गिक भोग-विलास एवं दांपत्य का कारक माना गया है। शुक्र दैत्यों के गुरु भी हैं। शुक्र एक सौम्य व शुभ ग्रह होते हैं। यदि किसी जन्म पत्रिका में चंद्र व शुक्र एक ही भाव में अकेले स्थित होते हैं तो इस युति 'केसरी' योग कहा जाता है। चंद्र व शुक्र की युति अर्थात 'केसरी योग' भी शुभ माना गया है।
 
4. चंद्र व राहु की युति- चंद्रमा मन का कारक होता है, वहीं राहु एक अलगाववादी व पृथकताजनक क्रूर ग्रह है। यदि किसी जन्म पत्रिका में चंद्र व राहु एक ही भाव में स्थित होते हैं अर्थात चंद्र व राहु की युति होती है तो इसे 'ग्रहण' योग कहा जाता है। ग्रहण योग एक अशुभ योग है, अत: जातक की पत्रिका में चंद्र व राहु की युति होना अशुभ फलदायक होता है।
 
 
5. सूर्य व केतु की युति- राहु की भांति ही केतु भी एक क्रूर व अशुभ ग्रह है। राहु जहां पृथकताजनक ग्रह है, वहीं केतु मारणात्मक प्रवृत्ति वाला ग्रह है। जब किसी कुंडली में सूर्य व केतु एकसाथ एक ही भाव में स्थित होते हैं तो इस युति को भी 'ग्रहण' योग कहा जाता है। जैसा कि पूर्व में बताया जा चुका है कि 'ग्रहण योग' एक अशुभ योग है, जो जातक को जीवन में अशुभ फल प्रदान करता है।
 
6. शनि व चंद्र युति- शनि को ज्योतिष में न्यायाधिपति माना गया है। शनि स्वभाव से क्रूर ग्रह होते हैं। जब किसी जन्म पत्रिका में शनि व चंद्र एकसाथ एक ही भाव में स्थित होते हैं तो इस युति को 'विषयोग' के नाम से जाना जाता है। ग्रहण योग की ही भांति 'विषयोग' भी एक अशुभ योग होता है, जो जातक के लिए अनिष्टकारी होता है।

 
7. सूर्य व शुक्र युति- ज्योतिष में यह एकमात्र ऐसी युति है, जो दो शुभ ग्रहों की होती किंतु इसका फल अशुभ होता है, क्योंकि शुक्र सूर्य के समीप आकर अस्त होकर अपना शुभ फल खो देता है। सूर्य व शुक्र की युति जातक के दांपत्य के बड़ी हानिकारक होती है। अधिकांश कुंडलियों में जिनमें सूर्य व शुक्र की युति होती, उस जातक को दांपत्य सुख में बहुत अवरोध आता है। उसका विवाह विलंब से होता है और उसे शुक्र संबंधी रोगों के कारण कष्ट होता है।
 
(उपर्युक्त युतियों में अशुभ युतियों के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए क्रूर व अशुभ ग्रह की विधिवत वैदिक शांति करवाकर लाभ प्राप्त किया जा सकता है।)
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केंद्र

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