-जूलियान रायल, टोक्यो से
कुछ समय पहले तक अमेरिकी सैनिकों को रेगिस्तानी इलाकों में ज्यादा प्रशिक्षण दिया जाता था। अब उन्हें इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के जंगलों में प्रशिक्षित किया जा रहा है। साथी भी वहां प्रशिक्षण ले रहे हैं। पर यह बदलाव क्यों? वी-22 ऑस्प्रे जैसे-जैसे लैंडिंग क्षेत्र के पास पहुंचता है, यह थरथराने लगता है।
इसके 2 विशाल प्रोपेलर विमान को आगे धकेलने के बजाए ऊपर उठाए रखने वाली स्थिति में आ जाते हैं। इससे यह विमान हेलिकॉप्टर की तरह मंडराने लगता है और नीचे जमीन पर लैंड कर पाता है। यह विमान उन साधनों में से एक है जिससे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जरूरत पड़ने पर अमेरिका के मरीन सैनिक युद्ध में उतरेंगे।
गोंजाल्वेस कैंप अमेरिकी नौसेना का जंगल वारफेयर ट्रेनिंग सेंटर है। यह जापान में ओकिनावा के मुख्य द्वीप के सुदूर पूर्वोत्तर में 35 वर्ग किलोमीटर से अधिक के जंगल में फैला हुआ है। यह दुनिया की सबसे चुनौतीपूर्ण जगह मानी जाती है।
अमेरिकी सेना की अन्य शाखाओं के साथ-साथ उसके सहयोगियों के बीच भी इस बेस और इसके प्रशिक्षकों की टीम की काफी मांग है। जापान में मौजूद सैन्य टुकड़ी नियमित तौर पर यहां प्रशिक्षण लेती है। पिछले साल ब्रिटिश और डच सैनिकों ने भी यहां प्रशिक्षण लिया था।
बदल रहा है भू-राजनीतिक माहौल
जापान, अमेरिकाऔर उनके सहयोगी इस बात को समझते हैं कि पिछले दशक में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति नाटकीय रूप से बदल गई है। वरिष्ठ अधिकारी संघर्ष की बढ़ती संभावना से जुड़ी चिंता के पीछे किसी देश का नाम नहीं ले रहे हैं। हालांकि, यह पूरी तरह स्पष्ट है कि बढ़ते प्रशिक्षण और अन्य तैयारियों के साथ सुरक्षा उपायों और रणनीतियों में बदलाव चीन को संभावित शत्रु के तौर पर देखते हुए किया जा रहा है।
नाम न जाहिर करने की शर्त पर इस कैंप में प्रशिक्षण से जुड़े नौसेना के एक अधिकारी ने डीडब्ल्यू को बताया, 'हम यहां प्रतिद्वंदी के खिलाफ भविष्य की लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं। हमारा काम सैनिकों को जंगल में लड़ाई के लिए तैयार करना है, ताकि वे इस तरह के माहौल में लड़ने और जीतने के लिए तैयार हो सकें।'
इस अधिकारी ने बताया, 'ओकिनावा के जंगल और पहाड़ काम करने और लड़ने के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण जगहों में से एक हैं। हमें लगता है कि जो कोई भी यहां प्रशिक्षण हासिल करेगा वह दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया सहित दुनिया के सबसे चुनौतीपूर्ण वातावरण में काम करने में सक्षम होगा।'
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में जंगल हैं। इस हिस्से में मौजूद देश फिलीपींस, मलेशिया और वियतनाम, सभी दक्षिण चीन सागर में अपनी दावेदारी को लेकर चीन के साथ विवाद में उलझे हैं। इस सूची में ताइवान भी शामिल है। चीन इसे अपना हिस्सा मानता है और कहता है कि इसे मुख्य भूमि में शामिल किया जाना चाहिए। इसके लिए, वह सैन्य और राजनीतिक दबाव भी बढ़ा रहा है।
रेगिस्तान से जंगल की ओर सफर
गोंजाल्वेस कैंप को 1957 में गुरिल्ला प्रशिक्षण स्कूल के तौर पर स्थापित किया गया था। बाद में यह अमेरिकी सेना का जंगल वारफेयर ट्रेनिंग सेंटर बन गया। हालांकि, सदी के अंत तक अमेरिका का ध्यान मुख्य रूप से मध्य-पूर्व और अफगानिस्तान के रेगिस्तानी और पहाड़ी इलाकों के हिसाब से अपने सैनिकों को प्रशिक्षित करने पर था।
प्रशिक्षण अधिकारी कहते हैं, 'हम रेगिस्तानी वातावरण में लड़ने में बहुत अच्छे हो गए थे, लेकिन यह माना गया कि हमें अन्य क्षेत्रों पर भी ध्यान देने की जरूरत है, जैसे आर्कटिक, जंगल और अन्य संभावित क्षेत्र। हमें नहीं पता कि अगली जगह कौन सी हो सकती है, लेकिन हम जानते हैं कि हमें तैयार रहने की जरूरत है।'
इस वजह से जापान के इस कैंप में प्रशिक्षण कार्यक्रमों को एक बार फिर से बढ़ाया जा रहा है। 2022 में अमेरिका और इसके सहयोगी देशों के करीब 14,000 सैनिकों ने गोंजाल्वेस कैंप में अपना प्रशिक्षण पूरा किया। इस साल के अंत तक पिछले 12 महीनों में 16,000 से अधिक सैनिक यहां प्रशिक्षण ले चुके होंगे।
इस कैंप में प्रशिक्षण से जुड़े कई पाठ्यक्रमों का संचालन किया जाता है। इनमें 5 सप्ताह का कठिन जंगल लीडर प्रोग्राम, जंगल में जिंदगी जीने का तरीका, छोटी यूनिट का नेतृत्व करना, 12 दिनों का जंगल मेडिसिन कोर्स वगैरह शामिल हैं। इन पाठ्यक्रमों के जरिए सैनिकों को कठिन वातावरण में रहने और घायलों की देखभाल करने के लिए तैयार किया जाता है। इनमें यह भी बताया जाता है कि सांप काटने पर किस तरह इलाज करना है और सीधे तौर पर एक व्यक्ति के खून को दूसरे व्यक्ति को कैसे चढ़ाना है।
ट्रेनिंग का चुनौती भरा माहौल
गोंजाल्वेस कैंप प्रशिक्षण केंद्र के बीच एक पहाड़ी है। यहां 5 अलग-अलग क्षेत्र हैं, जहां सैनिकों को अलग-अलग तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। एक क्षेत्र में गांव बसाया गया है, जहां सैनिकों को किसी गांव में रह रहे लोगों या वहां हमला होने पर उससे निपटने का प्रशिक्षण दिया जाता है। जैसे, अगर किसी जगह पर लोगों को बंधक बना लिया जाता है, तो वहां क्या तरीका अपनाया जाए।
इसी तरह दूसरे क्षेत्र में पानी से जुड़े संसाधन, जैसे कि नदियां या कुएं हैं, जहां सैनिकों को इनके हिसाब से प्रशिक्षित किया जाता है। वहीं, एक अन्य हिस्से में जंगल के आखिरी छोर पर प्रशांत महासागर है। यहां सैनिकों को खुले पानी में जिंदा रहने का प्रशिक्षण दिया जाता है। साथ ही, बताया जाता है कि अपने साथियों को आपात स्थिति में किस तरह बाहर निकाला जाए या उन्हें मदद के लिए बुलाया जाए।
यह पूछे जाने पर कि इनमें से कौन सा क्षेत्र सबसे कठिन है, प्रशिक्षक सबसे उत्तरी क्षेत्र की ओर इशारा करते हैं। यह खड़े पहाड़ों से घिरा हुआ क्षेत्र है। गर्मी के महीनों में आम तौर पर उच्च तापमान और आर्द्रता के कारण यह क्षेत्र आने-जाने और यहां रहने के हिसाब से काफी चुनौतीपूर्ण होता है।
अधिकारी ने बताया, 'अभ्यास के दौरान सैन्य टुकड़ी को 48 घंटे की अवधि में इस पहाड़ की शृंखला और 2 नदियों को पार करना होता है। इस दौरान हर समय व्यक्ति का शरीर गीला रहता है। वह या तो बारिश से, नदियों के पानी से या पसीने से लथपथ होता है।'
इस कैंप में 6 किलोमीटर का एक अन्य मुख्य ट्रेनिंग कोर्स है। इसमें सैनिकों को शुरुआत में 20 मीटर की विशाल चट्टान पर चढ़ाई करनी होती है। अपनी टुकड़ी के साथ काम करते हुए सैनिकों को अपनी सहनशक्ति की चरम सीमा तक पहुंचने से पहले पानी से जुड़ी बाधाओं और अन्य शारीरिक चुनौतियों को पार करना होता है। इस दौरान उन्हें एक बड़े गड्ढे को भी पार करना होता है।
दो नौसैनिक कटीले तार में उलझकर गंदे पानी के तालाब में गिर जाते हैं। पानी उनकी ठुड्डी तक आ जाता है। एक प्रशिक्षक के हाथ में लंबा और झुका हुआ डंडा है और वह इस वातावरण में मौजूद जहरीले 'हाबू' सांपों पर कड़ी नजर रख रहे हैं। नौसैनिक पूल से गुजरते हैं और दूसरे छोर पर मौजूद पानी से भरी खाई में प्रवेश करते हैं। वे ऊपर लटकते पत्तों के नीचे रेंगते हुए, कटीले तार के नीचे से आगे बढ़ते हैं।
इसके बाद उन्हें पानी के बड़े और बंद टैंक में जाना होगा। खुद को छत के नीचे की ओर तब तक खींचना होगा जब तक कि वे दूसरे छोर पर न आ जाएं। उसके बाद, वे गहरी खाइयों और कटीले तारों के नीचे से तब तक आगे बढ़ते हैं जब तक ये खत्म नहीं हो जाते। वे कीचड़ में लिपटे होते हैं, लेकिन उनके चेहरे पर मुस्कान होती है।(फ़ाइल चित्र)