रिपोर्ट चारु कार्तिकेय
भारत ने चीन को चेतावनी दी है कि मौजूदा स्थिति अगर ऐसी ही रही तो इससे दोनों देशों के बीच के रिश्तों को नुकसान होगा, वहीं चीन का कहना है कि गतिरोध समाप्ति की जिम्मेदारी उसकी नहीं है।
गलवान घाटी घटना के 10 दिन बाद भारत ने पहली बार चीन को सीमा पर हो रहीं गतिविधियों के संबंध में कड़ा संदेश देने का प्रयास किया है। एक लंबे वक्तव्य में भारतीय विदेश मंत्रालय ने चीन को चेतावनी दी कि मौजूदा स्थिति अगर ऐसी ही रही तो इससे दोनों देशों के बीच के रिश्तों को नुकसान होगा।
मंत्रालय ने यह भी कहा कि मुद्दे के केंद्र में मामला यह है कि मई की शुरुआत से ही चीन की तरफ से वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ साथ सैनिकों की एक बड़ी टुकड़ी और हथियारों की तैनाती हो रही है। मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि यह 1993 के बाद से दोनों देशों के बीच हुए समझौतों के अनुकूल नहीं है।
उन्होंने चीन के सैनिकों द्वारा भारतीय सैनिकों की गश्त में अवरोध पैदा करने की भी निंदा की और कहा कि ये उन सभी मानकों का पूरी तरह से अनादर है जिन पर दोनों देशों के बीच सहमति रही है।
चीन ने हूबहू यही आरोप भारत पर जड़े
चीन ने इन सब आरोपों को नकारते हुए हूबहू वही सारे दावे किए हैं, जो भारत करता आया है। एक भारतीय समाचार एजेंसी को दिए साक्षात्कार में भारत में चीन के राजदूत सून वीडॉन्ग ने कहा कि इस स्थिति की जिम्मेदारी चीन पर नहीं है, क्योंकि चीनी सिपाहियों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा कभी पार ही नहीं की।
उन्होंने आरोप लगाया कि मई से भारतीय सेना के सिपाही ही बार-बार रेखा को पार कर रहे हैं, उन इलाकों में गश्त लगा रहे हैं, जहां उन्हें अनुमति नहीं है और भारत रेखा पर और उसके पार चीन के इलाके में भी निर्माण कार्य कर रहा है। उन्होंने स्पष्ट आरोप लगाया कि सबसे पहले 6 मई को भारतीय सैनिक रात में रेखा पार कर चीन के इलाके में घुस गए थे, जहां उन्होंने दोनों सेनाओं के बीच गतिरोध बनाने के लिए हिंसा भी की और अपनी स्थायी उपस्थिति बनाने के लिए निर्माण कार्य भी किए।
उनके अनुसार गलवान नदी की खाड़ी को पार न करने का आश्वासन देने के बावजूद 15 मई की रात भारतीय सैनिक एक बार फिर चीन के इलाके में घुस आए और जब चीनी सेना के कमांडर उनसे बातचीत करने गए तो भारतीय सैनिकों ने उन पर हमला कर दिया जिसकी वजह से वहां हिंसा हुई और दोनों तरफ के सैनिक मारे गए।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी गुरुवार को यह जानकारी दी कि गलवान घाटी में दोनों तरफ की सेनाओं के बीच पहली झड़प 6 मई को हुई थी। इसके पहले 5 मई को पैंगोंग झील के पास दोनों देशों के सैनिकों के बीच हाथापाई का वीडियो सामने आया था। कई जानकार मान रहे हैं कि इस तरह की दोनों देशों के बीच इस तरह की तीखी बयानबाजी इस बात का संकेत हो सकती है कि सीमा पर गतिरोध खत्म करने की कोशिशें आगे नहीं बढ़ पा रही हैं।
अमेरिका का बयान
इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा है कि अमेरिका दुनियाभर में जो अपने सैनिकों की तैनाती की समीक्षा कर रहा है, उसका उद्देश्य भारत जैसे देशों को चीन के खतरे से बचाना है। एक अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी को संबोधित करते हुए पोम्पियो ने कहा कि कुछ जगहों पर अमेरिकी संसाधन कम किए जाएंगे। कुछ और जगहें होंगी। मैंने अभी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से खतरों की बात की तो अब भारत को खतरा है, वियतनाम को खतरा है, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस को खतरा है और दक्षिण चीनी सागर इलाके में खतरा है।
हालांकि उनके संबोधन से यह स्पष्ट नहीं हुआ कि क्या वे एशिया के इन देशों में अमेरिकी सेना की तैनाती की बात कर रहे हैं?