उन्नाव बलात्कार कांड की पीड़ित पर जानलेवा हमले के बाद बीजेपी की सरकारों को जवाब देना चाहिए कि भारत में उनका सुशासन चलता है या दबंगों का राज? पुलिस सुरक्षा देने में क्यों विफल है?
एक बहुत ताकतवर विलेन, जिसका दबदबा राजनीति में है। पुलिस भी उसके इशारों पर नाचती है। उसके खिलाफ शिकायत करने वाला बर्बाद हो जाता है। यह 1990 के दशक की बॉलीवुड फिल्म नहीं है। यह उन्नाव केस का सच है, जिसमें विलेन की भूमिका में बीजेपी के नेता कुलदीप सेंगर हैं।
सुशासन का नारा देने वाली पार्टी बीजेपी के विधायक सेंगर पर बलात्कार का आरोप लगाने वाली युवती जिंदगी और मौत से जूझ रही है। दो साल के भीतर वह इस कगार पर पहुंची है। वह अन्याय का विरोध करने की सजा भुगत रही है। पहले बलात्कार की शिकायत दर्ज कराने के लिए उत्तर प्रदेश की पुलिस के सामने कई बार गिड़गिड़ाना पड़ा। धमकियां झेलनी पड़ी। लेकिन युवती और उसका परिवार अडिग रहा।
अदालत ने मामले को अपने संज्ञान में लेते हुए पुलिस को मामला दर्ज करने का आदेश दिया। लेकिन जैसे ही मामला दर्ज हुआ, उसके कुछ ही दिन बाद मामूली विवाद में पिता को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। हिरासत में पिता की मौत हो गई। उत्तर प्रदेश पुलिस पर आरोप लगा कि उसने पिता को पीट पीटकर मार डाला। पिता बलात्कार के मामले में गवाह थे। बाद में एक और गवाह की भी मौत हो गई।
विधायक की गिरफ्तारी के बीच कोर्ट में मामला चलता रहा। इस बीच पीड़ित परिवार जान बचाने के लिए दर दर भटकने लगा। प्रशासन की तरफ से सुरक्षा भी मुहैया कराई गई। लेकिन इसके बावजूद दो साल बाद एक ट्रक ने पीड़िता को ले जा रही कार को टक्कर मार दी। पीड़ित युवती बुरी तरह जख्मी हुई। उसकी मौसी और चाची की मौके पर ही मौत हो गई। वकील भी घायल हो गया।
यह सब 1990 के दशक की बॉलीवुड फिल्म की तरह लगता है। लेकिन यह 2019 के भारत की सच्चाई है। उस भारत की जिसकी बागडोर सुशासन का नारा देने वाली पार्टी के हाथ में है। जिसकी उत्तर प्रदेश समेत ज्यादातर प्रांतों में सरकार है। वह पार्टी बलात्कार और हत्या का मुकदमा झेल रहे विधायक को अब तक नहीं निकाल सकी है। लोक सभा चुनावों में जेल में जाकर बीजेपी के उम्मीदवार उससे समर्थन मांग चुके हैं।
"बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" के नारे के बीच उन्नाव का मामला बताता है कि जमीन पर हालात बदले नहीं है। वहां लोकतांत्रिक भारत नहीं बल्कि दबंगों का भारत बसता है। करीब करीब कांग्रेस मुक्त भारत पर राज करने वाली बीजेपी पर अब ये बताने की जिम्मेदारी है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा में कोई कमी क्यों नहीं आ रही है? पुलिस और कानून से निराश भीड़ लोगों को पीट पीटकर क्यों मार रही है? सुशासन वाली सरकार की पुलिस अब भी स्थानीय दबंगों की कठपुतली क्यों बनी हुई है?