यौन हिंसा से बढ़ सकता है डिमेंशिया और ब्रेन स्ट्रोक का खतरा

DW
शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2021 (16:16 IST)
रिपोर्ट : कार्ला ब्लाइकर
 
जिन महिलाओं के साथ यौन हिंसा होती है उनके मस्तिष्क में खून के संचार में रुकावट होने की संभावना अधिक हो जाती है। इससे उन्हें डिमेंशिया या ब्रेन स्ट्रोक होने का खतरा बढ़ जाता है। उत्तरी अमेरिका में हर तीन में से एक महिला को अपने जीवन में कम से कम एक बार यौन हिंसा झेलनी पड़ती है। यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन (सीडीसी) द्वारा प्रकाशित आंकड़ों में यह जानकारी सामने आई है।
 
वैश्विक स्तर पर भी आंकड़ा लगभग यही है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएन विमिन के अनुसार, एक अनुमान के मुताबिक, दुनियाभर की 73.6 करोड़ महिलाओं के साथ उनके साथी और दूसरे लोगों ने कम से कम एक बार यौन हिंसा को अंजाम दिया है। यूएन विमिन ने इस आंकड़े के लिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन का हवाला दिया है। यह संख्या दुनियाभर की 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की सभी लड़कियों और महिलाओं का 30 प्रतिशत है। ऐसे में यह एक बड़ी समस्या है।
 
अब एक अमेरिकी अध्ययन में पाया गया है कि यौन हिंसा का अनुभव करने वाली महिलाओं को हमले के दौरान लगी चोट के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं, जैसे पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, चिंता या अवसाद का सामना करना पड़ सकता है। इससे उनके बीच ब्रेन स्ट्रोक और डिमेंशिया का खतरा बढ़ सकता है।
 
अध्ययन की प्रमुख लेखक और पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय की प्रोफेसर रेबेका थर्स्टन कहती हैं कि यौन हमला एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। इसके बावजूद महिलाओं के लिए बहुत ही सामान्य अनुभव है। वह कहती हैं कि यह एक कष्टदायक अनुभव है। इससे महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। यह अध्ययन महिलाओं में स्ट्रोक और डिमेंशिया के खतरे की पहचान करने की दिशा में बड़ा कदम है।
 
मस्तिष्क में खून के प्रवाह में रुकावट
 
थर्स्टन, पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय में मनोचिकित्सा की प्रोफेसर और महिला बायोबेहेवियरल हेल्थ लेबोरेटरी की निदेशक हैं। उन्होंने नॉर्थ अमेरिकन मेनोपॉज सोसाइटी की 2021 की बैठक में अध्ययन के नतीजे पेश किए। इसे 'ब्रेन इमेजिंग ऐंड बिहेवियर' जर्नल में प्रकाशित किया जाएगा।
 
अध्ययन के लिए थर्स्टन और उनकी टीम ने अमेरिका में प्रौढ़ावस्था में पहुंच चुकीं 145 महिलाओं की जांच की। जांच में शामिल 68% महिलाओं ने बताया कि उनके ऊपर कम से कम एक बार हमला हुआ है। इनमें से 23% महिलाओं ने यौन उत्पीड़न की बात कही। शोधकर्ता यह पता लगाना चाहते थे कि क्या हमले और मस्तिष्क में श्वेत पदार्थ की उच्च तीव्रता के बीच कोई संबंध है। श्वेत पदार्थ खून के प्रवाह में रुकावट के संकेत हैं और इससे मस्तिष्क को नुकसान पहुंच सकता है।
 
मस्तिष्क को स्कैन करने के दौरान श्वेत पदार्थ की उच्च तीव्रता छोटे सफेद धब्बे के रूप में दिखाई देती है। ये धब्बे स्ट्रोक, डिमेंशिया या इसी तरह के अन्य खतरों के शुरुआती संकेत हैं। इन संकेतों से स्ट्रोक और डिमेंशिया के खतरों का दशकों पहले पता लगाया जा सकता है।
 
अध्ययन में शामिल महिलाओं के मस्तिष्क के स्कैन से पता चला है कि जिन महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हुआ है, उनमें उन महिलाओं की तुलना में सफेद पदार्थ ज्यादा थे जिनके साथ दुर्व्यवहार नहीं हुआ। साथ ही, यह भी पता चला कि यौन हमले की वजह से सफेद पदार्थ ज्यादा थे।
 
समय से पहले खतरे की पहचान
 
2018 में भी एक अध्ययन किया गया था। थर्स्टन ने पाया था कि जिन महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न हुआ था, उनमें अवसाद या चिंता विकसित होने की संभावना काफी अधिक थी। साथ ही, इन्हें सामान्य महिलाओं की तुलना में नींद भी कम आती है। अवसाद, चिंता और नींद संबंधी परेशानियां सभी को खराब स्वास्थ्य से जोड़ा गया है। मानसिक स्वास्थ्य की वजह से ह्रदय रोग भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, नींद में कमी की वजह से उच्च रक्तचाप, डायबिटीज और मोटापे का खतरा बढ़ जाता है।
 
थर्स्टन का कहना है कि नया अध्ययन उन पहले के परिणामों पर आधारित है। यहां तक कि जब शोधकर्ताओं ने नए अध्ययन में मानसिक या अन्य स्वास्थ्य स्थितियों की जांच की, तो उन्होंने पाया कि जिन महिलाओं पर हमला किया गया था, उनमें अभी भी सफेद पदार्थ की अधिकता थी। साथ ही, उनमें स्वास्थ्य से जुड़ी दूसरी समस्याएं जैसे कि अवसाद या हमले के बाद पीटीएसडी भी देखी गई।
 
पूरी कहानी ये है कि अध्ययन के अनुसार, डिमेंशिया के शुरुआती लक्षणों को महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार से जोड़ा जा सकता है। थर्स्टन का कहना है कि शोध से पता चलता है महिलाओं के साथ होने वाले यौन दुर्व्यवहार को रोकने की जरूरत है। ऐसा नहीं होने पर उनके जीवन में डिमेंशिया और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाएगा।
 
नॉर्थ अमेरिकन मेनोपॉज सोसाइटी की मेडिकल डायरेक्टर स्टेफनी फोबियन का कहना है कि नया अध्ययन महिलाओं के स्वास्थ्य देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। फोबियान कहती हैं कि स्ट्रोक और डिमेंशिया से बचने के लिए शुरुआती संकेतों की पहचान करना जरूरी है। इस तरह के अध्ययन एक महिला की जिंदगी और मानसिक स्वास्थ्य पर दर्दनाक अनुभवों के दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराते हैं।

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