पाकिस्तान के एक स्वतंत्र आयोग ने देश में जबरन धर्म परिवर्तन और अल्पसंख्यक हिंदू, ईसाई लड़कियों की मुस्लिम युवकों से जबरन शादी पर चिंता जताई है। आयोग ने सांसदों से असरदार कानून बनाने और उसे लागू करने की मांग की है।
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा है कि हिंदू और ईसाई लड़कियों के जबरन धर्म परिवर्तन के एक हजार से ज्यादा मामले पिछले साल केवल सिंध प्रांत में ही दर्ज हुए हैं। आयोग का यह भी कहना है कि वास्तव में कितनी लड़कियां इसकी शिकार हुई हैं यह अभी साफ नहीं है। आयोग के मुताबिक कोर्ट के आदेश के बाद इन लड़कियों को बरामद कर लिया गया लेकिन हालात बेहद खराब हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में, "जबरन धर्म परिवर्तन पर अभी वास्तविक आंकड़े दुर्भाग्य से मौजूद नहीं हैं।"
मानवाधिकार आयोग के वरिष्ठ सदस्य गाजी सलाहुद्दीन का कहना है कि पाकिस्तानी मीडिया पर भी पिछले साल "अप्रत्याशित पाबंदियां" लगाई गई हैं। हालांकि जब उनसे पूछा गया कि क्या प्रेस पर पाबंदी के पीछे सेना का हाथ है तो उन्होंने जवाब नहीं दिया। इस्लामाबाद में आयोग ने 335 पन्ने की रिपोर्ट जारी की है। इसे पाकिस्तान का रिपोर्ट कार्ड माना जाता है। देश में हिंदू, ईसाई और अहमदिया लोग अल्पसंख्यक हैं।
एक हफ्ते पहले ही पाकिस्तान की एक अदालत ने हिंदू समुदाय की दो बहनों को उनके मुस्लिम पतियों के साथ रहने की अनुमति दी थी। कोर्ट ने लड़कियों के मां बाप की इस दलील को खारिज कर दिया कि उनकी बेटियों को अगवा कर जबरन शादी की गई है। सिंध प्रांत के इस मामले की तरफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का भी ध्यान गया और उन्होंने इस मामले में जांच का आदेश दिया है। इस जांच के नतीजे में बताया गया कि लड़कियों की उम्र 18 और 19 साल है और उन्हें धर्म बदलने के लिए मजबूर नहीं किया गया।
मानवाधिकार आयोग के वरिष्ठ सदस्य जोसेफ फ्रांसिस का कहना है कि हिंदू और ईसाई लड़कियों का धर्म परिवर्तन और शादी दक्षिण के सिंध और पूरब के पंजाब प्रांत में बहुत आम है। आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि अल्पसंख्यकों का "अपनी आस्था के मुताबिक सामान्य तौर से रहने पर प्रताड़ना, गिरफ्तारी और यहां तक कि मौत होना भी 2018 में भी जारी है।"
रिपोर्ट में देश के ईशनिंदा कानून के दुरुपयोग पर भी चिंता जताई गई है। 1990 से अब तक इस्लाम का अपमान करने के आरोप में करीब 70 लोगों की हत्या हो चुकी है। रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल 40 लोग इस कानून के तहत दोषी करार दिए जाने के बाद या तो मौत की सजा के इंतजार में हैं या फिर उम्रकैद की सजा काट रहे हैं।"
रिपोर्ट में पिछले साल आसिया बीबी की रिहाई का भी जिक्र है। 54 साल की आसिया बीबी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रिहा किया गया। उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें किसी अज्ञात स्थान पर रखा गया है। आसिया बीबी के मामले ने पूरी दुनिया का ध्यान पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून की तरफ खींचा था। ऐसी कई शिकायतें हैं कि निजी रंजिश की वजह से और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए इस कानून का इस्तेमाल किया जाता है।