मुंबई के बीचों का बड़ा हिस्सा पहले ही सागर में समा चुका है, अब आसपास की झुग्गियों के भी पानी में समा जाने का खतरा है। भारत की मायानगरी सागर की बढ़ी लहरों को वापस भेजने के लिए बहुत कुछ नहीं कर रही है।
मानसून के दौरान लगभग हर दिन धारावी की झुग्गियों में पानी भरता रहा। यह एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती है और तटवर्ती शहर के इस हिस्से में रहने वाले लोगों की जान आफत में है। धारावी में रहने वाले 38 साल के वेंकटेश नादर कहते हैं, "स्थिति हर साल बदतर होती जा रही है। हमारे घर घुटने तक पानी में डूब जा रहे हैं।"
नादर कहते हैं कि उन्हें अधिकारियों ने नहीं बताया है कि अगर समुद्र तल बढ़ता है तो उनके घर का क्या होगा। ना ही उन्हें अपने परिवार को वहां से हटाने के लिए सरकार से कोई मदद मिली है। वह कहते हैं, "यह खतरनाक है और हमारे बच्चों के भविष्य के लिए चिंताजनक, यहां रहने वाला हर परिवार भगवान की दया पर है।"
संयुक्त राष्ट्र की एक भविष्यवाणी में कहा गया है कि दुनिया का तापमान बढ़ने की आशंकाए सच हुईं तो सागर का तल 2100 में एक मीटर तक बढ़ सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा होने पर मुंबई के करीब एक चौथाई हिस्से पर इसका असर होगा। सागर तल में महज 20 सेंटीमीटर यानी करीब 8 इंच का इजाफा भी मुंबई तट जैसे उष्णकटिबंधीय इलाकों में आने वाली बाढ़ जैसी आपदाओं को दुगुना कर देगा। मुंबई को ब्रिटेन की औपनिवेशिक सरकार ने कई छोटे छोटे द्वीपों को जोड़ कर बनाया था यह पहले से ही बाढ़ का खतरा झेल रहा है क्योंकि इसका बहुत सा हिस्सा उच्च ज्वार की रेखा के नीचे है।
वाचडॉग फाउंडेशन की रिसर्च के मुताबिक पिछले पंद्रह सालों में मुंबई के कुछ बीचों का 20 मीटर से ज्यादा हिस्सा सागर में समा चुका है। यह फाउंडेशन पर्यावरण कार्यकर्ताओं का एक समूह है। बीते दो दशकों में बाढ़ के कारण अरबों डॉलर का नुकसान हुआ है और सैकड़ों लोगों की जान गई है। सिर्फ 2005 में ही आए एक तूफान में 500 लोगों की मौत हो गई थी। बाढ़ का पानी मुंबई के ड्रेनेज सिस्टम की हर साल मानसून में बखिया उधेड़ कर रख देता है।
महाराष्ट्र सरकार ने इससे बचने के लिए अपना पूरा ध्यान सिर्फ 20 समुद्री दीवारों को बनाने में लगाया है। इनमें से चार मुंबई के पास हैं। इसके अलावा राज्य के 720 किलोमीटर लंबे तटवर्ती इलाके में मैंग्रोव के विशाल जंगल लगाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। तटों से कुछ दूर चट्टान और बीचों को दोबारा स्थापित करने की योजना पर भी विचार हो रहा है।
बारिश और तूफान के दौरान आने वाले अतिरिक्त पानी के लिए मैंग्रोव स्पंज की तरह काम करता है। लाखों की तादाद में खारे जल में उगने वाले पौधों और झाड़ियों को भी लगाया जा रहा है ताकि उष्णकटिबंधीय ज्वारीय जंगल सागर की बढ़ती लहरों के लिए बफर जोन का काम कर सकें। वन विभाग के अधिकारी डीआर पाटिल और उनके 300 सहयोगी घुटने तक पानी में उतर कर पेड़ लगा रहे हैं और साथ ही यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि इन पेड़ों को बचाए रखा जाए। मुंबई के एक कोने पर मौजूद आइरोली मैंग्रोव प्लांटेशन में डीआर पाटिल ने बताया, "बाढ़ के लिए मैंग्रोव सुरक्षा की पहली कतार हैं। यहां तक कि चारदीवारी भी शहर को उतना नहीं बचा सकती जितना कि मैंग्रोव।"
महाराष्ट्र सरकार ने मैंग्रोव को संरक्षित घोषित कर दिया है। इसके साथ ही गीली जमीन पर निर्माण को रोकने, झुग्गी बस्तियों को हटाने और दीवारों के निर्माण का अधिकार मिल गया है। पाटिल का कहना है कि अब 30 हजार हेक्टेयर से ज्यादा इलाके में मैंग्रोव हैं। 2015 से 2017 के बीच राज्य में मैंग्रोव वाले इलाके को करीब 82 फीसदी बढ़ाया गया। हालांकि पर्यावरणवादी कहते हैं कि यह कदम आधे मन से उठाया गया है।
पर्यावरण कार्यकर्ता नंदकुमार पवार कहते हैं, "मैंग्रोव जरूरी हैं लेकिन ड्रेनेज के प्राकृतिक तरीके जैसे कि नदियां और खाड़ी भी जरूरी हैं। उन्होंने बताया कि तटों की रक्षा से जुड़े कुछ कानूनों को "आसान" कर दिया गया है। ऐसे में तट के करीब नई इमारतें बनने लगी हैं, यह नदियों और खाड़ियों को खत्म कर रही हैं जिनसे बाढ़ के पानी को निकलने का रास्ता मिलता है।
जलवायु विज्ञानी रॉक्सी मैथ्यू कॉल इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मैटलर्जी से जुड़े हैं। उनका मानना है कि बाढ़ की आपदा के बार बार आने का मतलब है कि मुंबई को अतिरिक्त सुरक्षा की जरूरत है। साथ ही बढ़ती आबादी को बचाने के लिए एक चेतावनी देने वाले तंत्र की भी। कॉल ने कहा, "हमें लंबे समय के लिए इस पर नजर रखने की जरूरत है।"
तमाम आलोचनाओं के बावजूद महाराष्ट्र मैरीटाइम बोर्ड के उपनिदेशक जितेंद्र रायसिंघी कहते हैं कि राज्य सरकार के प्राधिकरण तटों के प्रबंधन की योजना पर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "हम हमारी क्षमता और संसाधनों में जितना संभव है उतना करने की कोशिश कर रहे हैं। यह कभी पर्याप्त नहीं होता, आप और भी बहुत कुछ कर सकते हैं।"