खतना यानी महिलाओं के जननांगों के बाहरी हिस्से को काटने वाली कुप्रथा के खिलाफ कई संगठन लड़ रहे हैं, लेकिन इसमें कई चुनौतियां हैं। आंकड़ें बताते हैं कि जर्मनी में खतना से पीड़ित महिलाओं की संख्या बढ़ी है।
"मैं तब 11 या 12 साल की थी, उन लोगों ने मुझे पकड़ कर टेबल पर लेटा दिया और मेरे जननांगों के एक हिस्से को काट दिया। मुझे आज भी वो मंजर नजर आता है। मुझे इतना भयानक दर्द उठा था। उसके बाद उन्होंने अंगों को बाहरी हिस्से को सिल दिया और करीब एक महीने तक मेरे पैरों को बांधे रखा ताकि घाव भर जाए।" सोमालिया की रहने वाली 36 वर्षीय इफराह (बदला हुआ नाम) आज भी जब अपने साथ हुए खतने को याद करती हैं तो सिहर उठती हैं।
संयुक्त राष्ट्र संस्था यूनीसेफ के मुताबिक, अरब देशों में सोमालिया में खतना प्रथा के सबसे अधिक मामले पाए जाते हैं। यहां 15 से 49 वर्ष की करीब 98 फीसदी महिलाओं का खतना किया गया है।
महिलाओं के अधिकार के लिए काम करने वाले संगठन 'टेरे देस फेम' के आंकड़ें बताते हैं कि जर्मनी में आप्रवासियों की संख्या बढ़ने के कारण खतना से पीड़ित महिलाओं की संख्या में इजाफा हुआ है। ऐसा इसलिए क्योंकि जर्मनी में आए आप्रवासियों में से कई ऐसे देशों के हैं, जहां यह प्रथा की जाती है। फिलहाल जर्मनी में करीब 65 हजार महिलाएं खतने से पीड़ित है, जो पिछले साल के मुकाबले 12 फीसदी अधिक है।
अपने दर्दनाक अनुभव के बारे में इफराह बताती हैं, ''खतना के लिए चाकू या रेजर का इस्तेमाल किया जाता है। लोगों को पता नहीं होता कि वे क्या कर रहे हैं। बस काट देते हैं।" इसे अंग्रेजी में फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन या एफजीएम कहा जाता है। क्लिटोरिस को काटने से ले कर योनि के एक हिस्से को काटने और सिलाई के कई प्रकार हो सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया में 20 करोड़ महिलाएं एफजीएम से पीड़ित हैं। खतना के बाद योनि में संक्रमण, पीरियड्स के दौर असहनीय दर्द, बच्चा पैदा करने में दिक्कत या यौन इच्छा खत्म होने जैसे कई बुरे असर देखे गए हैं। दर्द नहीं सहन कर पाने की वजह से कई बार किशोरियों की जान चली जाती है। इफराह की बहन की नौ साल की उम्र में मौत हो गई थी। इस कुप्रथा का मानसिक आघात जिंदगी भर रहता है।
कई समुदायों में खतना प्रथा को शादी के लिए अनिवार्य माना जाता है। इफराह बताती हैं, ''हमारे समुदाय में माना जाता है कि अगर किसी महिला के जननांग सिले नहीं हैं, तो इसका मतलब हुआ कि किसी भी पुरुष के साथ उसके संबंध हो सकते हैं।''
मदद कर रहे हैं जर्मनी के क्लिनिक
जर्मनी में करीब ढाई साल बिताने के बाद इफराह अब बर्लिन स्थित एक क्लिनिक में जाकर परामर्श ले रही हैं। इस क्लिनिक में खतना से पीड़ित महिलाओं को नई सर्जरी, दवाइयां और सलाह दी जा रही है। 2013 में खुले डेजर्ट फ्लावर सेंटर नामक इस सेंटर में डॉ. कोर्नेलिया श्ट्रूंत्स ने अब तक 300 महिलाओं को सलाह-मशविरा दिया है। वह बताती हैं, ''मैंने जब मेडिसिन की पढ़ाई की तो खतना के बारे में नहीं पढ़ा था। मेरे ऐसे कई साथी हैं, जिन्हें भी इस प्रथा के बारे में ना के बराबर जानकारी है।''
जर्मनी के महिला कल्याण मंत्रालय ने डॉयचे वेले को बताया कि युवाओं के लिए काम करने वाले विभाग के साथ काम करने की योजना बनाई गई है। हालांकि अभी तक यह साफ नहीं है कि पीड़ित महिलाओं को किसी प्रकार की आर्थिक सहायता मुहैया कराई जा सकती है।
खतना प्रथा को मानने वाले देशों की महिलाओं के लिए जर्मन सरकार भले ही योजनाएं बनाए, लेकिन ये आप्रवासी अपने देश में जाकर इस प्रथा को पूरा कर सकते हैं। टेरे देस फेम का अनुमान है कि फिलहाल जर्मनी में 15,500 ऐसी किशोरियां रह रही हैं जिन्हें उनके देश ले जाकर इस प्रथा को किए जाने का खतरा है। संगठन से जुड़ी शारलॉटे वाइल कहती हैं, ''ऐसे मामलों में समाज को भूमिका निभानी होगी। समाज को जागरूक करने के लिए शिक्षकों और वॉलंटियर्स को आगे आकर अभिभावकों को समझाना होगा।''
इफराह अपनी बेटियों को इस कुप्रथा से बचाने में नामुमकिन रहीं। वह बताती हैं, ''मेरी तीन बेटियां, जो अब भी सोमालिया में रहती हैं, उनका खतना कर दिया गया। लेकिन मेरी 3 साल की बेटी के साथ ऐसा नहीं हुआ है"। वह मानती हैं कि अगर वह सोमालिया वापस भेज दी गई, तो दादा-दादी छोटी बेटी का भी खतना करा देंगे। हालांकि इफराह को उम्मीद है कि जल्द ही इस कुप्रथा पर लगाम लगाने के लिए उपाय किए जाएंगे और उनके देश की बाकि बेटियों को इस असहनीय दर्द से गुजरना नहीं पड़ेगा।