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भारत में चोरी छिपे लड़ाए जा रहे हैं खूंखार कुत्ते

हमें फॉलो करें भारत में चोरी छिपे लड़ाए जा रहे हैं खूंखार कुत्ते

DW

, गुरुवार, 15 सितम्बर 2022 (08:37 IST)
आमिर अंसारी
जिस तरह से रिंग में दो बॉक्सर फाइट करते हैं, बिल्कुल उसी तरह से भारत में खूंखार कुत्तों को लड़ाया जा रहा है। इस गैरकानूनी खेल को लोगों ने पैसे और शोहरत की लालसा में पेशेवर बना दिया है। लड़ाई में कुत्ते मर भी रहे हैं।
 
छोटे से गांव, गली और मोहल्लों, बड़े शहरों के फ्लाईओवर के नीचे और रात के अंधेरे में एक ऐसा खूनी खेल हो रहा है जिसके बारे में भारत के अधिकतर लोगों को बहुत जानकारी नहीं है। ये बहुत ही खतरनाक और जानलेवा खेल है। यहां इंसान आपस में नहीं भिड़ते बल्कि कुत्तों को लड़ाया जाता है। वह भी कुछ मिनटों के लिए नहीं बल्कि तीन-तीन घंटों के लिए, कुत्ते लड़ते रहते हैं। वे तब तक लड़ते हैं जब तक वे हार नहीं मान जाए या फिर सामने वाले कुत्तों उसे चीर कर मार ना डाले। कई बार कुत्ते इतने जख्मी हो जाते हैं कि उनकी मौत कुछ दिनों बाद हो जाती है।
 
कुत्तों की लड़ाई या डॉगफाइटिंग को देखने के लिए कई बार पूरा का पूरा गांव ही शामिल हो जाता है और कई बार छोटे स्तर पर आयोजन होता है। हैरानी की बात यह है कि इस तरह की लड़ाई अवैध है और अक्सर लोग बेजुबानों का लड़ता देख मजा लेते हैं। क्या पढ़े लिखे, क्या अनपढ़ और क्या बुजुर्ग यहां तक कि 11वीं और 12वीं तक के छात्र इस तरह के खेल को देखने के लिए पहुंचते हैं।
 
पीपल्स फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) और दिल्ली के गैर लाभकारी संगठन फौना पुलिस ने एक साल के भीतर ऐसे खेलों की पड़ताल की और कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। कुत्तों के इन लड़ाइयों में कुत्तों को सट्टे के लिए लड़ाया जाता है। लड़ने वाले कुत्तों को इस तरह से तैयार किया जाता है कि वह अधिक से अधिक खूंखार हो सके और अपने प्रतिद्वंद्वी जानवर को हमलाकर जमीन पर गिरा दे या फिर उसे मौत के घाट उतार दे।
 
पेटा इंडिया ने अपनी पड़ताल में पाया कि इन लड़ाइयों में कुत्तों को गंभीर चोटें लगती हैं। पेटा का कहना है कि यह एक तरह का खूनी खेल है, जिसे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के साथ दिल्ली और जम्मू-कश्मीर जैसे केंद्र शासित राज्यों में अवैध रूप से आयोजित किया जाता है। पेटा ने कुछ वीडियो अपने सोशल मीडिया साइट पर भी पोस्ट किए हैं, जिनमें कुत्तों को लहूलुहान होता दिखाया गया है। कुत्ते एक दूसरे को मरने मारने पर आमादा नजर आ रहे हैं।
 
इस तरह की डॉगफाइटिंग का आयोजन छोटी से लेकर बड़ी चैंपियनशिप तक के रूप में हो रहा है। और विजेता कुत्ते के मालिक को इनाम के तौर नकद तो मिलता ही है, साथ ही वह जीत के बाद आगे और लड़वाने की चुनौती पेश करता है। जब एक बार कुत्ता जीत जाता है तो उसकी कीमत बढ़ जाती है और उसको हाथोहाथ कोई खरीददार मिल जाता है।
 
पंजाबी गानों का संबंध
दिल्ली के गैर लाभकारी संगठन फौना पुलिस के अभिनव श्रीहरन ने डीडब्ल्यू को बताया कि इस तरह की डॉगफाइट का चलन पंजाबी गायकों के गाने के बाद से तेजी से फैला जिसमें आक्रामक कुत्तों को दिखाया जाता और हिंसक दिखने वाले कुत्तों को ग्लैमरस अंदाज में पेश किया जाता।
 
उन्होंने कहा, "हम एक साल के भीतर 1,100 से लेकर 1,200 तक डॉगफाइट के वीडियो और 1,200 से लेकर 1,300 तक वीडियो जंगली जानवरों के शिकार के लेकर सामने आए हैं।"
 
श्रीहरन कहते हैं कि कई बार कुत्ते लड़ाने वाले शौक के लिए वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं या फिर अपने ग्रुप में उसे साझा करते हैं। उनका कहना है कि लोग ऐसा अपना रुतबा बढ़ाने के लिए करते हैं।
 
पेटा का कहना है कि कुत्तों को लड़ाने के साथ-साथ लोग जानवरों पर दांव भी लगाते हैं और कुछ लोग तो सिर्फ इस क्रूरता को देखने के लिए जमा होते हैं। कई बार कुत्ते आपस में लड़ते हुए मारे जाते हैं। कुत्तों को लड़ाने के करीब 2,500 वीडियो पेटा इंडिया और फौना पुलिस को मिले हैं।
 
श्रीहरन का दावा है कि उनके पास ऐसे भी वीडियो हैं जो इन कुत्तों द्वारा शिकार कराने के हैं। उन्होंने बताया कि रेसिंग कुत्तों और बुली कुत्तों का इस्तेमाल पैंगोलिन, एशियाई सिवेट, लोमड़ी, तेंदुए और जंगली सूअर और अन्य जीवों के शिकार के लिए किया जा रहा है जो कि वन्य जीवन (संरक्षण),अधिनियम 1972 का गंभीर उल्लंघन है।
 
पेटा इंडिया के वेटनरी पॉलिसी एडवाइजर डॉ। नितिन कृष्णगौड़ा के मुताबिक, "इन डॉगफाइटर्स द्वारा गुप्त ठिकानों का चयन किया जाता है। वे वहां कुत्तों की लड़ाई करवाने व आपस में खूनी लड़ाई के लिए उकसाते हैं।"
 
भारत में कैसे हुई शुरुआत
वैसे तो भारत में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत जानवरों को एक दूसरे से लड़ाने के लिए उकसाना अवैध है, लेकिन फिर भी देश भर में इस तरह के आयोजन होते रहते हैं। पिटबुल को इस तरह की लड़ाइयों में इस्तेमाल के लिए पाला जाता है या भारी जंजीरों में बांधकर हमला करने वाले कुत्तों के रूप में रखा जाता है। जिस कारण उन्हें पूरे जीवन शोषण का सामना करना पड़ता है।
 
श्रीहरन डीडब्ल्यू से कहते हैं कि चीन और कोरिया जैसे देशों में इस तरह की डॉगफाइट हो रही है और वहां की चैंपियन ब्लड लाइन (चैंपियन कुत्तों के बच्चे) को अवैध तरीके से भारत लाया जा रहा है। ऐसे कुत्तों को प्रजनन कर के बेचा जा रहा है। वे कहते हैं कि ऐसे कुत्तों को हमलावर प्रवृत्ति के साथ ही बड़ा किया जा रहा है और डर इस बात का है कि कहीं ये कुत्ते किसी के घर में पालतू जानवर के रूप में आ जाएं तो एक गंभीर खतरा खड़ा हो सकता है।
 
पेटा ने अपनी पड़ताल में पाया कि कुत्तों की लड़ाई में इस्तेमाल होने वाले पाकिस्तानी "बुली" कुत्तों और अन्य मिश्रित नस्ल के कुत्तों को एशियाई पाम सिवेट, लोमड़ियों, तेंदुओं और जंगली सूअरों को मारने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। इस गैरकानूनी काम के लिए कुत्तों के बच्चों को छोटे से ही एक दूसरे से लड़ने के लिए उकसाया जाता है।
 
पिटबुल पालने का चलन बढ़ा
भारत में पिटबुल कुत्तों को पालने का चलन हाल के सालों में बढ़ा है। खासकर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोग अपनी शान बढ़ाने के लिए इसे पालते हैं लेकिन कई बार इन कुत्तों के हमले जानलेवा भी साबित हुए हैं। एक साल के भीतर पिटबुल कुत्ते के हमले के कई मामले सामने आ चुके हैं। इसी साल लखनऊ में एक बुजुर्ग महिला की मौत पालतू पिटबुल के हमले के बाद हो गई थी, इससे पहले मेरठ में भी पिटबुल ने एक लड़की पर हमला कर दिया था जिसमें वह गंभीर रूप से जख्मी हो गई थी। पंजाब में 13 साल के लड़के के कान को इस प्रजाति के कुत्ते ने काट लिया था और उसके बाद हरियाणा के गुरुग्राम में एक महिला पर इस खतरनाक कुत्ते ने हमला कर दिया था।
 
लखनऊ की घटना के बाद कई लोग अब पिटबुल को घर पर रखना नहीं चाहते हैं और वे कुत्तों की देखभाल करने वाले एनजीओ के पास अपने पालतू जानवर को छोड़ रहे हैं। नोएडा के एक एनजीओ हाउस ऑफ स्ट्रे एनिमल्स के पास पिछले दो महीनों में पांच से छह मालिक अपने पिटबुल कुत्ते छोड़ गए हैं।
 
पेटा इंडिया द्वारा मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय से पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (कुत्ता प्रजनन और विपणन) नियम, 2017 में बदलाव कर इस प्रकार की लड़ाइयों के लिए इस्तेमाल होने वाले पिटबुल और अन्य "बुली" नस्लों के कुत्तों के पालन और प्रजनन पर रोक लगाने की मांग की गई है।
 
श्रीहरन कहते हैं कि कुछ साल पहले तक डॉगफाइट सिर्फ छोटे मोहल्लों में होती थी लेकिन इसका विस्तार हुआ है और यह महाराष्ट्र और चेन्नई जैसे राज्यों तक जा पहुंचा है। जीतने वाले कुत्ते के मालिक को हजार रुपये से लेकर लाखों रुपये तक इनाम में मिल रहा है और आरोप लग रहे हैं कि तमाम कोशिशों के बाद भी पुलिस और प्रशासन इस गैर कानूनी खेलों पर लगाम नहीं कस पा रही है।
 
श्रीहरन का कहना है कि उन्हें कई बार डॉगफाइट कराने वालों से धमकी मिल चुकी है लेकिन वह देश में बढ़ते इस खतरनाक खेल के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे।
 

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