टीम बीबीसी हिन्दी
नई दिल्ली। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 15-16 सितंबर को उज़्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित हो रही एससीओ (शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन) समिट में हिस्सा लेने जा रहे हैं। इस मौके पर पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाक़ात होने के कयास लगाए जा रहे हैं।
इससे पहले दोनों नेताओं के बीच साल 2019 में तमिलनाडु में आयोजित भारत-चीन अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाक़ात हुई थी।
लेकिन साल 2019 से 2022 के बीच दोनों देशों के रिश्तों में काफ़ी तल्ख़ी आई है। भारतीय क्षेत्र लद्दाख में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक संघर्ष होने के बाद से एलएएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर कई जगहों पर तनाव बना हुआ है। कई जगहों पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं।
इस तनाव को ख़त्म करने के लिए अब तक कमांडर स्तर पर कई दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं। इसके बाद भी सैन्य टुकड़ियों के पीछे हटने की प्रक्रिया में पर्याप्त प्रगति नहीं होने की बात कही जाती रही है।
लेकिन इस शिखर सम्मेलन से कुछ समय पहले ही लद्दाख के पेट्रोल प्वॉइंट - 15 पर दोनों देशों की सैन्य टुकड़ियों के पीछे हटने की ख़बर आ रही है।
चीन और भारत के रिश्ते
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भारत और चीन के बीच लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश समेत कई जगहों पर सीमा से जुड़ा विवाद जारी है
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दोनों देश इन विवादों को सुलझाने के लिए बातचीत करते रहने के पक्षधर हैं
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दोनों देशों के बीच व्यापार से लेकर शिक्षा के क्षेत्र में साझेदारी जारी है
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हालिया सालों में दोनों देशों के बीच डोकलाम और लद्दाख पर सीमावर्ती तनाव गंभीर रूप ले चुका है
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इस बीच भारत के प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अब तक 18 से ज़्यादा मुलाकातें हो चुकी हैं
ये घटनाक्रम एससीओ में दोनों नेताओं के बीच मुलाक़ात होने की संभावनाओं के लिहाज़ से काफ़ी अहम है क्योंकि 2019 के बाद ये पहला मौका होगा जब दोनों नेता एक ही समय पर एक जगह पर मौजूद होंगे।
यही नहीं, ये पहला मौका है जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग किसी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए कोविड के दौर के बाद अपने मुल्क से बाहर निकल रहे हैं।
इसके साथ ही यूक्रेन युद्ध के बाद ये पहला मौका होगा जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलेंगे।
पश्चिमी दुनिया में इस शिखर सम्मेलन को बेहद दिलचस्पी से देखा जा रहा है। लेकिन भारत के लिए सबसे बड़ा सवाल ये है कि इस मौके पर पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच किसी तरह की द्विपक्षीय मुलाक़ात होगी या नहीं। और क्या इस मुलाक़ात से दोनों देशों के बीच मौजूदा तनाव को कम करने का रास्ता निकल सकता है।
क्या मोदी से मिलेंगे जिनपिंग?
नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच मुलाक़ात की संभावनाओं पर दोनों देशों की ओर से स्पष्ट जानकारी नहीं दी जा रही है।
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने दोनों नेताओं के बीच मुलाकात की संभावनाओं पर भी कुछ भी कहने से इनकार किया है। बीते मंगलवार को माओ निंग से पूछा गया कि क्या शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति पुतिन और भारतीय प्रधानमंत्री मोदी से मिलेंगे।
इसके जवाब में उन्होंने कहा, "चीन और रूस के आपसी रिश्तों में लगातार सुधार के लिए राष्ट्र-प्रमुख स्तर पर कूटनीतिक बातचीत जारी रहना सबसे अहम है। एक लंबे समय से दोनों देशों के राष्ट्रपति एक दूसरे के संपर्क में रहे हैं और रणनीतिक मुद्दों पर अलग-अलग माध्यमों से बातचीत करते रहे हैं। लेकिन इस ख़ास सवाल का जवाब देने के लिए मेरे पास कोई जानकारी नहीं है। अगर हमारे पास कोई जानकारी होगी तो उसे हम सही समय पर जारी करेंगे।"
भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से इस बारे में अब तक कोई सटीक जानकारी सामने नहीं आई है। लेकिन इस शिखर सम्मेलन से कुछ घंटों पहले ही पेट्रोल प्वॉइंट 15 से सैन्य टुकड़ियों के पीछे हटने ने नई संभावनाओं को जन्म दिया है।
मोदी - जिनपिंग बैठक की चुनौतियां
पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच संभावित मुलाक़ात को लेकर कोई पुख़्ता जानकारी अब तक सामने नहीं आई है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मामलों पर नज़र रखने वाले विश्लेषक इसे बेहद चुनौतीपूर्ण बैठक बता रहे हैं क्योंकि दोनों नेताओं के बीच साल 2020 के अप्रैल महीने में एलएसी पर तनाव बढ़ने के बाद से सीधी बातचीत नहीं हुई है।
यही नहीं, भारत एससीओ के साथ-साथ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान वाले संगठन क्वॉड का भी सदस्य है। इस संगठन और इसमें भारत की सदस्यता पर भी चीन को एतराज़ रहा है।
ऐसे में सवाल उठता है कि इस पृष्ठभूमि में मुलाक़ात के लिए पहल कौन करेगा और इस मुलाक़ात से क्या हासिल होगा।
पूर्व भारतीय राजदूत विष्णु प्रकाश मानते हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री मोदी एक ऐसे समय में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ हंसते-मुस्कुराते हुए नज़र नहीं आ सकते, जब अपनी ही सीमा पर चीन के साथ तनाव जारी हो।
दूरदर्शन के साथ बातचीत में पेट्रोल प्वॉइंट 15 पर सैन्य टुकड़ियों की टाइमिंग पर टिप्पणी करते हुए विष्णु प्रकाश कहते हैं, ''चीन इस समय कई तरह की चुनौतियां झेल रहा है। दुनिया भर में चीन के प्रति इतना नकारात्मक रुख़ कभी नहीं रहा। ताइवान के मुद्दे पर भी अमेरिकी रुख़ में सख़्ती आई है। ऐसे में ये फ़ैक्टर एक भूमिका निभा रहे हैं।''
वे कहते हैं, "चीनी राष्ट्रपति इन चुनौतीपूर्ण हालातों में एससीओ समिट के लिए समरकंद जा रहे हैं। मैं सैन्य टुकड़ियों के पीछे हटने के समय को एक तरह के रणनीतिक क़दम की तरह देखता हूं। इसमें कोई शक़ नहीं है कि ये एक स्वागत योग्य क़दम है। लेकिन ये क़दम काफ़ी रणनीतिक है और इसमें किसी तरह का स्थायित्व नहीं है। सिर्फ़ सैन्य टुकड़ियां पीछे हट रही हैं। मैं ये नहीं कह रहा हूं कि ये अच्छा नहीं है। लेकिन वे सिर्फ़ अपने क़दम पीछे ले रहे हैं। इसे तनाव में कमी के रूप में नहीं देखा जा सकता।
इसे किस तरह देखा जाएगा (ऑप्टिक्स), इस पर बात की जाए तो राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नज़रिये से पीएम मोदी के साथ उनकी बैठक के वीडियो उनके लिए काफ़ी फायदेमंद साबित होंगे। ऐसे में मुझे लगता है कि ये भारत की प्रतिक्रिया को देखने की कोशिश है और अपेक्षा ये है कि इससे कुछ सकारात्मक चीज़ें सामने आएंगी।या ऑप्टिक्स के स्तर पर कुछ सकारात्मकता देखने को मिलेगी।
हम बात करने से कभी भी पीछे नहीं हटे हैं। हम बात कर रहे हैं। लेकिन असल मुद्दा ये है कि बैठक से कोई हल निकलना चाहिए। इसके ऑप्टिक्स की बात करें तो हम चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ हंसते-मुस्कुराते हुए नज़र नहीं आ सकते, जब हम अपनी ही सीमा पर चीन की ओर से नकारात्मक रुख़ देख रहे हों।"
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ''मुझे हंसने-मुस्कराने से कोई एतराज़ नहीं है, लेकिन मैं एक ऐसी बैठक के पक्ष में नहीं हूं, जो सिर्फ़ बैठक करने के लिए की जा रही हो।''
डोकलाम से गलवान तक भारत चीन रिश्ते
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफे़सर हर्ष पंत भी पूर्व राजदूत विष्णु प्रकाश से सहमत नज़र आते हैं।
दूरदर्शन के साथ बातचीत में वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि भारत पहले भी ऐसी स्थिति का सामना कर चुका है। अगर आप डोकलाम संकट को याद करें तो वह संकट इसलिए सुलझ गया था क्योंकि चीन ब्रिक्स सम्मेलन आयोजित कर रहा था जिसमें वह पीएम मोदी की उपस्थिति चाहता था। ऐसे में वे पीछे हट गए। अब डोकलाम या गलवान को देखें तो दोनों में ज़्यादा लंबा अंतर नहीं है।
ऐसे में मुझे लगता है कि हमें चीन की ओर से इस तरह के प्रयासों को लेकर काफ़ी सावधान रहना चाहिए क्योंकि इसका मकसद भारत और दुनिया को ये दिखाना है कि हम सीमा पर तनाव के बाद भी भारत के साथ तारतम्यता बनाए रखे हुए हैं, हम एक निश्चित जगह पर पीछे हट गए हैं जिससे सकारात्मक माहौल बना है। ऐसे में बातचीत और मुलाकात होनी चाहिए।
मैं यहां पूर्व राजदूत विष्णु प्रकाश की बात से सहमत हूं कि भारत को चीन के साथ अपने रिश्तों के इतिहास को ध्यान में रखते हुए भविष्य को लेकर बेहद सावधान रहना चाहिए क्योंकि चीन इस समय दुनिया में अलग-थलग पड़ा हुआ है। इसी समय में वैश्विक पटल पर भारत काफ़ी अच्छी स्थिति में है। ऐसे में ऑप्टिक्स के लिहाज़ से शी जिनपिंग और मोदी की मुलाक़ात, जिनपिंग के लिए पासा पलटने जैसा दांव होगी क्योंकि वो वापस जाकर कह सकते हैं कि भारत के साथ कोई समस्या नहीं है।
ऐसे में भारत को ऑप्टिक्स के लिहाज़ से काफ़ी संवेदनशील रहना चाहिए क्योंकि कूटनीति में बहुत-सी चीज़ें ऑप्टिक्स की वजह से होती हैं। इस मामले में भारत को कमज़ोर नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि इस मुलाक़ात को जिस तरह देखा जाएगा, उससे भारतीयों में और पूरी दुनिया में एक अलग ही कहानी जाएगी।"