भारत दौरे पर आए जॉन केरी ने भारत को इशारों में कोयले का इस्तेमाल कम करने को कहा है। भारत जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के प्रति अपने दायित्व और कोयले के उपयोग में कमी लाने के लिए जरूरी खर्च के सवालों के बीच फंसा हुआ है।
केरी इस समय जलवायु परिवर्तन पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के राजदूत के रूप में भारत के दौरे पर हैं। बाइडन अप्रैल 22-23 को जलवायु परिवर्तन पर एक वर्चुअल वैश्विक शिखर सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं और केरी उसी की तैयारी में जुटे हुए हैं। वो इस सिलसिले में नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मिले और अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल में भारत की अग्रणी भूमिका की सराहना की।
उन्होंने साउथ एशिया वीमेन इन एनर्जी लीडरशिप समिट को सम्बोधित करते हुए कहा कि 2030 तक 450 गीगावॉट ऊर्जा अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों से बनाने के जिस लक्ष्य की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की है वो बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं का विकास स्वच्छ ऊर्जा से कैसे हो इसका एक मजबूत उदाहरण है।
केरी ने कहा कि अभी से भारत में सौर ऊर्जा बनाना दुनिया में सबसे सस्ता हो चुका है। यह जो तीव्र इच्छा भारत ने दिखाई है, वैश्विक जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए दुनिया को इसी की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह भारत में हरित ऊर्जा में निवेश के लिए बेहद आकर्षक अवसर है। हालांकि उन्होंने भारत की दुखती रग पर हाथ भी रखा।
बिना भारत का नाम लिए, उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया इस समय जिस गति से कोयले का इस्तेमाल घटा रही है, कोयले के इस्तेमाल को धीरे-धीरे खत्म करने के लिए इससे 5 गुना तेज गति की जरूरत है। केरी ने कहा, हमें 5 गुना तेज गति से पेड़ लगाने की, 6 गुना तेज गति से अक्षय ऊर्जा बढ़ाने की और 22 गुना तेज गति से बिजली से चलने वाले वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ाने की जरूरत है।
उन्होंने यह भी बताया कि पृथ्वी पर अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए करोड़ों रुपयों के खर्च की जरूरत है। उन्होंने आश्वासन दिया कि वो भारत में स्वच्छ ऊर्जा के अवसरों की तरफ निवेश बढ़ाने के लिए वो भारत के साथ नजदीकी से काम करेंगे। उनके साथ मुलाकात के बाद मोदी ने एक बयान में कहा कि हरित तकनीकों को इजाद करने और तेजी से लागू करने के लिए धन उपलब्ध कराने में भारत और अमेरिका के बीच सहयोग का दूसरे देशों पर सकारात्मक असर पड़ेगा।
भारत को दुनिया में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करने वाले तीसरे सबसे बड़े देश के रूप में जाना जाता है। देश लगभग अपनी दो-तिहाई ऊर्जा को बनाने के लिए जीवाश्म ईंधनों या फॉसिल फ्यूल पर निर्भर है। ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने में भारत की भूमिका को अति आवश्यक माना जाता है।
ब्लूमबर्ग समाचार ने पिछले महीने कहा था कि भारत सरकार के उच्च अधिकारी इस बात पर विमर्श कर रहे हैं कि इस शताब्दी के मध्य तक शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को दर्जनों दूसरे देशों की तरह स्वीकार करे या नहीं। यह लक्ष्य चीन के लक्ष्य से 1 दशक आगे है। हालांकि यह संभव है कि भारत इस लक्ष्य का विरोध करे, क्योंकि इसे हासिल करने के लिए भारत को कोयले पर बुरी तरह से निर्भर अपनी अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाव लाने पड़ेंगे।
इसके लिए बड़ी मात्रा में निवेश की भी जरूरत पड़ेगी। फरवरी में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत का कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन 2040 तक 50 प्रतिशत बढ़ने वाला है और यह इसी अवधि में यूरोप में उत्सर्जन में संभावित रूप से होने वाली कमी को पूरी तरह से बेकार कर देगा।
आईईए के मुताबिक अगले 20 सालों में भारत को लंबे समय तक चल सकने वाले एक रास्ते पर लाने के लिए अतिरिक्त 1400 अरब डॉलर के जरूरत है, लेकिन इस समय भारत की नीतियां जो इजाजत देती हैं वो इससे 70 प्रतिशत कम है। भारत और दूसरे विकासशील देश चाहते हैं कि अमीर देश उत्सर्जन कम करने में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाएं, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए वो ज्यादा जिम्मेदार हैं और उनके प्रति व्यक्ति कार्बन पदचिन्ह भी कहीं ज्यादा बड़े हैं।
व्हाइट हाउस ने कहा है कि शिखर सम्मलेन से पहले अमेरिका 2030 तक उत्सर्जन के एक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य की घोषणा करेगा। सम्मलेन में मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी भाग लेंगे।